हर बीमारी का इलाज संभव है लेकिन भ्रम का कोई इलाज नहीं होता. भ्रम एक ऐसी चिंगारी है जो वक्त गुज़रने के साथ आग बन जाती है और अच्छे-भले आदमी को भी बीमार कर देती है. आज हम आपको इस लेख में किसी शारीरिक बीमारी के बारे में नहीं बताएंगे बल्कि आज का यह लेख मानसिक रोग पर टिका हुआ है. हर आदमी की अपनी एक अलग और निश्चित सोच होती है और वह संसार को अपनी उसी निश्चित सोच के चश्मे से देखता है. पहले तो वह बिना जांच के घरेलू इलाज करके खुद डॉक्टर बनता है और जब बीमारी को लंबा समय हो जाता है तो वह अपने दिमाग में उस बिमारी को लेकर न जाने क्या-क्या गढ़ने लगता है. तो आइए जानते हैं कि क्या है इसका इलाज -
आप डॉक्टर नहीं हैं इसलिए डॉक्टर न बनें
सर्दी-ज़ुकाम हो या कोई दूसरी बिमारी, सबसे पहले हम स्वंय के डॉक्टर बन जाते हैं और तरह-तरह के इलाज और हथकंडे अपनाना शुरु कर देते हैं. इससे बीमारी तो ठीक नहीं होती बल्कि उसे शरीर में अपनी जगह मिल जाती है और वह वक्त के साथ और मज़बूत होता जाता है. इसलिए सबसे पहले आप नज़दीकी डॉक्टर के पास जाएं और उसे अपनी परेशानी बताएं.
तुरंत कराएं अल्ट्रासाउंड और दूसरी जांच
शुरुआत में डॉक्टर द्वारा दी गई दवाईयों का सेवन करें और यदि आराम न मिले तो तुरंत डॉक्टर के पास जाएं. आप देखेंगे की डॉक्टर आपको संबंधित बीमारी के लिए जांचों की सलाह देगा. क्योंकि डॉक्टर भी किसी बीमारी में रिस्क नहीं ले सकते. वह तुरंत जांच के आदेश देते हैं और रिपोर्ट मंगवाते हैं. इसके बाद ही वह आगे इलाज की प्रक्रिया को बढ़ाते हैं. अलग-अलग जांचे, जैसे - खून की जांच, बलगम की जांच, पेशाप की जांच, अल्ट्रासाउंड, एक्स-रे, सीटी-स्कैन और एम.आर.आई आदि से रोगी के रोग की अच्छे और बेहतर ढंग से पहचान हो जाती है और रिपोर्ट के आधार पर ही आगे सटीक इलाज चलाया जाता है.
भ्रम है सबसे बड़ा रोग
बीमारी छोटी हो या बड़ी, उसे अधिक लंबे समय तक शरीर में रहने न दें. आयुर्वेद हो होम्योपैथी या फिर एलोपैथी, किसी का भी प्रयोग करके आप अपने रोग का इलाज करें. क्योंकि अधिक समय तक रहने वाली बीमारी हमारे अंदर उदासी, नकारात्मकता और मायूसी को जन्म दे देती है और इससे हमारा मस्तिष्क भी प्रभावित होता है और यह रोग हमारे अंदर नकारात्मक सोच को बढ़ावा देता है.