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Updated on: 12 June, 2025 2:13 PM IST
जायटॉनिक नीम, फोटो साभार: कृषि जागरण

Zytonic Neem: भारत एक कृषि प्रधान देश है, और यहां की अधिकांश जनसंख्या खेती-किसानी पर निर्भर है. हमारे किसान खरीफ मे मेहनत करके धान, कपास, मक्का, सोयाबीन, मूंगफली जैसी फसलें उगाते हैं. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इन फसलों में कीटों का प्रकोप बहुत ज्यादा बढ़ गया है. खासतौर पर कपास की फसल में पिंक बॉल वर्म (गुलाबी सुंडी), सफेद मक्खी और थ्रिप्स; मक्का और धान मे तना छेदक,  जैसे कीट बड़ी समस्या बन गए हैं. मूंगफली और सोयाबीन मे सफेद मक्खी के कारण वायरस की समस्या भी बढ़ रही है जिस पर नियंत्रण का एकमात्र उपाय इन केटों पर समय से नियंत्रण करना ही है. 

किसानों ने इन कीटों से बचाव के लिए लंबे समय से रासायनिक कीटनाशकों का सहारा लिया है. लेकिन अब समस्या यह हो गई है कि एक जैसे कीटनाशकों के बार-बार प्रयोग से कीटों ने उनमें प्रतिरोधक क्षमता (resistance) विकसित कर ली है. यानी वही दवाइयां जो पहले असर करती थीं, अब बेअसर हो रही हैं. ऐसे में किसानों को न केवल दवाओं की मात्रा बढ़ानी पड़ रही है, बल्कि नए महंगे कीटनाशक खरीदने पड़ते हैं, जिनका खर्च भी ज्यादा होता है और असर भी कुछ समय बाद घटने लगता है.

कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग - नुकसान किसे?

रासायनिक कीटनाशकों का अत्यधिक और लगातार उपयोग न केवल फसलों के लिए हानिकारक है, बल्कि मिट्टी, जल और पर्यावरण के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा है.

जैसे कपास की फसल का ही उदाहरण लें – इसमें लगभग 12 तरह के कीट नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन 172 तरह के कीट ऐसे भी होते हैं जो मित्र कीट (Beneficial insects) होते हैं. ये मित्र कीट प्राकृतिक रूप से हानिकारक कीटों को नियंत्रित रखकर फसल की रक्षा करते हैं. लेकिन जब किसान रासायनिक कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं, तो वह अच्छे-बुरे सभी कीटों को मार देता है. इससे फसल पर जो प्राकृतिक संतुलन बना रहता है, वह टूट जाता है.

मित्र कीटों की संख्या कम होती जाती है, और हानिकारक कीटों की संख्या तेजी से बढ़ने लगती है क्योंकि अब उन्हें रोकने वाला कोई प्राकृतिक शत्रु नहीं बचता. साथ ही ये कीट इतने तेज़ी से अनुकूलन कर लेते हैं कि किसी भी कीटनाशक के खिलाफ जल्दी प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं.

फसल पर कीटनाशकों का असर कब तक रहता है?

आमतौर पर जब किसान दवा छिड़कते हैं, तो वह पहले कुच्छ समय तक पत्ते पर रहती है. इसके बाद वह पत्तों के अंदर चली जाती है, जहां पौधा अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्युनिटी) से उस रसायन से लड़ना शुरू कर देता है. ठीक वैसे ही जैसे इंसान के शरीर में कोई ज़हर पहुंचने पर इम्यून सिस्टम सक्रिय हो जाता है. पौधा भी उस रसायन को खत्म कर देता है, और 4-5 दिनों में उसका असर भी खत्म हो जाता है. साथ ही फसल की वृद्धि पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और फसल की बढ़वार भी कुछ समय के लिए रुक जाती है. 

इसका मतलब यह हुआ कि जो दवा किसान ने छिड़की, उसका असर जल्दी समाप्त हो जाता है और बार-बार छिड़काव करने से कोई बड़ा लाभ भी नहीं मिलता है. इसका सीधा असर किसानों की जेब पर पड़ता है – लागत बढ़ती है और लाभ घटता है.

इस समस्या का समाधान क्या है?

किसानों को अब जरूरत है एक ऐसा विकल्प अपनाने की जो लंबे समय तक असर करे, पर्यावरण और मिट्टी के लिए सुरक्षित हो, और मित्र कीटों को नुकसान ना पहुंचाए. ऐसा ही एक समाधान है - माइक्रोएनकैप्सुलेशन टेक्नोलॉजी आधारित जायटॉनिक नीम.

नीम - प्रकृति का वरदान

नीम को आयुर्वेद और कृषि दोनों में अमूल्य औषधि माना गया है. नीम के तेल में मौजूद एजाडिरेक्टिन (Azadirachtin) नामक तत्व कीटों के जीवन चक्र को प्रभावित करता है. यह न केवल कीटों के अंडों को नष्ट करता है, बल्कि उन्हें अंडा देने से भी रोकता है. यही नहीं, कीट जब नीम से कड़वे हुए पत्ते खाते हैं, तो उनकी प्रजनन क्षमता घट जाती है. इसके साथ ही नीम मित्र कीटों और पर्यावरण के लिए नुकसानदायक नहीं है. इसलिए इसकी सिफारिश विभिन्न कृषि विश्वविद्यालय और अनुसंधान संस्थान जैसे (हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (HAU), पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (PAU), राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय) भी कर चुके हैं.

नीम का सही इस्तेमाल – ध्यान देने योग्य बातें

नीम तेल का प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि उसमें Azadirachtin की मात्रा कितनी है. यदि यह मात्रा ज़्यादा हो जाए, तो यह लाभकारी कीटों को भी नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए संतुलित मात्रा में Azadirachtin वाला नीम उत्पाद ही प्रयोग करना चाहिए.

जायटॉनिक नीम - नई तकनीक, बेहतर परिणाम

ज़ायडेक्स कंपनी द्वारा निर्मित जायटॉनिक नीम में एजाडिरेक्टिन (Azadirachtin) नामक तत्व 300 ppm तक रखा जाता है. वही इस नीम तेल को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए इसमें कंपनी ने माइक्रोएनकैप्सुलेशन टेक्नोलॉजी का उपयोग किया है. इसे हम "बूंद पर मजबूत पकड़" वाली तकनीक भी कह सकते हैं. इसी तकनीक का प्रयोग नीम तेल के फार्मूलेशन में किया गया है. माइक्रोएनकैप्सुलेशन टेक्नोलॉजी से तैयार जायटॉनिक नीम का पत्तियों पर जब छिड़काव किया जाता है, तो निम्नलिखित फायदे होते हैं-

  • पत्तों पर असर लंबे समय तक बना रहता है, क्योंकि यह इसको पत्ते पर लंबे समय तक रोक कर रखता है.

  • नीम तेल की वजह से पत्ते कड़वे हो जाते हैं, जिससे कीट अंडे नहीं दे पाते.

  • मित्र कीट सुरक्षित रहते हैं.

  • जैविक तरीका होने से मिट्टी और पर्यावरण पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ता.

  • दूसरे कीटनाशकों (इन्सेक्टिसाइड, फंगीसाइड, हर्बीसाइड) के साथ मिलाकर उनके असर को भी बढ़ाया जा सकता है.

  • लागत कम होती है क्योंकि बार-बार छिड़काव करने की जरूरत नहीं पड़ती.

जायटॉनिक नीम का उपयोग कैसे करें?

  • फसल में कीड़ों के आने से पहले बचाव करने के लिए जायटॉनिक नीम का 500 मिली प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें.

  • अगर कीट आ चुके हैं और किसान कीटनाशक उपयोग भी कर रहे है, तो कीटनाशक के साथ 1-2 ml प्रति लीटर पानी के हिसाब से जायटॉनिक नीम मिलाकर छिड़काव करें.

  • यदि आप कीटनाशी के साथ नीम का प्रयोग कर रहे हैं तो ध्यान रखें कि पहले नीम और रासायनिक दवाई को एक साथ मिला लें और उसके बाद इस घोल को पानी मे मिलाएं. इससे माइक्रो एनकपसूलेशन तकनीक का पूरा लाभ मिलेगा और दवाई का असर बढ़ेगा.

मिट्टी के कीड़ों पर भी जायटॉनिक नीम काफी प्रभावशाली देखा गया है, जायटॉनिक नीम को पानी मे मिलाकर मिट्टी डालने से मिट्टी में मौजूद हानिकारक कीट भी नियंत्रित होते हैं और फसल का जड़ तंत्र भी सुरक्षित रहता है.

कपास में IPM (एकीकृत कीट प्रबंधन) में नीम का बड़ा रोल

कपास की फसल में गुलाबी सुंडी (पिंक बॉल वर्म) बहुत नुकसान पहुंचाती है. इसका जीवन चक्र तो छोटा होता है लेकिन यह बहुत तेजी से बढ़ती है और कीटनाशकों के प्रति जल्दी प्रतिरोधक बन जाती है. ऐसे में वैज्ञानिकों की राय है कि शुरुआत में ही नीम के तेल का छिड़काव किया जाए ताकि इस कीट की आबादी को नियंत्रित किया जा सके.

जायटॉनिक नीम माइक्रोएनकैप्सुलेशन तकनीक के कारण इस उद्देश्य के लिए बहुत उपयुक्त है और पहला छिड़काव करने से प्रारम्भिक अवस्था में कीड़ों पर प्रभावी नियंत्रण मिलता है. बाद के दवाओं के छिड़काव में भी जायटॉनिक नीम को मिलाकर प्रयोग करने से ना सिर्फ दवाई का असर बढ़ता है, बल्कि नीम के प्रभाव के कारण कीड़ों का जीवन चक्र बाधित होता है और फसल लंबे समय तक सुरक्षित रहती है.

कपास के अलावा भी अन्य सभी फसलों पर जायटॉनिक नीम के बेहतरीन परिणाम हैं. इसके प्रयोग से ना सिर्फ प्रभावी कीट नियंत्रण मिलता है, साथ ही फसल और वातावरण को सुरक्षित रखने में भी सहायता मिलती है. जायटॉनिक नीम सभी फसलों मे विभिन्न रस चूषक कीटों के नियंत्रण के लिए प्रभावी पाया गया है. साथ ही इसको कीटनाशकों मे मिलाकर प्रयोग करने से सभी कीटों का असर बढ़ने से किसान को बेहतर परिणाम कम खर्च मे मिलते हैं.  

English Summary: zytonic neem natural solution crop pest control natural and sustainable farming
Published on: 12 June 2025, 02:22 PM IST

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