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Updated on: 24 June, 2025 3:01 PM IST
जायडेक्स कंपनी का जायटॉनिक टेक्नोलॉजी आधारित जायटॉनिक गोधन (Zytonic Godhan) उत्पाद, फोटो साभार: कृषि जागरण

Zytonic Godhan: भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां लाखों किसान खेती पर निर्भर हैं. वर्षों पहले जब भारत में हरित क्रांति आई, तो देश ने खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त की. उस समय उच्च उपज देने वाले बीज (HYV), मशीनीकृत खेती, रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ा. इससे उत्पादन तो बेहतर हुआ, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभावों ने खेती की ज़मीन और पर्यावरण पर गहरा असर डाला.

हरित क्रांति में मशीनीकृत खेती में पशुपालन का महत्व भी घटा क्योंकि अब बैल और अन्य खेती में  प्रयोग होने वाले गैर-दूध देने वाले पशुओं की ज़रूरत नहीं रह गई. इस कारण अधिकतर किसान सिर्फ दूध देने वाले पशु ही रखने लगे, जिससे खेतों के लिए उपलब्ध गोबर की मात्रा घटने लगी और रासायनिक खादों पर निर्भरता बढ़ती गई. इससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति, जैविक संरचना और जीवन शक्ति कमजोर हो गई.

मिट्टी में मौजूद जरूरी जैविक तत्व, जैसे कि कवक और सूक्ष्म जीव, नष्ट हो गए, जिसके कारण मिट्टी की उर्वरता निरंतर घटती गई. इसका सीधा असर रसायनों की आवश्यकता पर पड़ रहा है. इसका प्रभाव कृषि उत्पादों की गुणवत्ता पर भी पड़ा है.  

जैविक खेती की आवश्यकता और चुनौतियां

आज के समय में दुनिया भर में जैविक और प्राकृतिक खेती की मांग बढ़ रही है. रासायनिक खेती के कारण उपज की गुणवत्ता और मिट्टी की सेहत दोनों पर बुरा असर पड़ा है. ऐसे में जैविक खेती ही भविष्य की सुरक्षित और स्थायी खेती का रास्ता है. जैविक खेती के लिए सबसे जरूरी है - मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों को बढ़ाना. इसके लिए गोबर से बनी जैविक खाद, जिसे फार्म यार्ड मैन्योर (FYM) कहते हैं, सबसे किफायती और प्रभावी तरीका है.

आज अधिकतर किसान पारंपरिक तरीके से गोबर और बचे हुए चारे को ढेर लगाकर 8 से 12 महीने तक रखकर यह खाद बनाते हैं जो अधिकतर आधी पची होती है और इसकी गुणवत्ता कम होती है. इस खाद को प्रति एकड़ 6-8 टन की मात्रा में डालना पड़ता है, जिससे इसकी लागत बढ़ जाती है और किसान इसे अपने पूरे खेत में नहीं डाल पाते. नतीजतन, मिट्टी की कार्बनिक तत्वों की आवश्यकता पूरी नहीं हो पाती है.

जायटॉनिक गोधन: एक सरल और प्रभावी तकनीक द्वारा समाधान

किसानों की इन्हीं समस्याओं को समझते हुए जायडेक्स कंपनी ने जायटॉनिक टेक्नोलॉजी आधारित जायटॉनिक गोधन (Zytonic Godhan) उत्पाद को प्रस्तुत किया है. यह एक ऐसी आधुनिक और सरल तकनीक है जो गोबर और जैविक अवशेषों को सिर्फ 45 से 60 दिनों में समृद्ध जैविक खाद में बदल देती है.

इस प्रक्रिया में जैव कवक जैव-पाचन तकनीक का इस्तेमाल होता है, जो गोबर के अंदर मौजूद लिग्निन और सेल्युलोज को ह्यूमस और ह्यूमिक एसिड में बदल देता है जिससे काली, भुरभुरी और मिट्टी के लिए बेहद पोषक जैविक खाद प्राप्त होता है. यह खाद वर्मीकम्पोस्ट के समान गुणवत्ता वाली होती है.

जायटॉनिक गोधन से पचित जैविक खाद की मुख्य विशेषताएं/लाभ:

  1. तेजी से पाचन: पारंपरिक खाद बनाने में जहां 8 से 12 महीने लगते हैं, वहीं जायटॉनिक गोधन से सिर्फ 45-60 दिन में खाद तैयार हो जाता है.

  2. उच्च गुणवत्ता: यह खाद पूरी तरह से पची हुई होती है और मिट्टी में तेजी से घुलती है, जिससे पौधों को तुरंत पोषण मिलता है.

  3. कम मात्रा में अधिक प्रभाव: इस खाद की प्रभावशीलता इतनी अधिक है कि इसे पारंपरिक खाद की तुलना में 6 से 8 गुना ज्यादा क्षेत्र में डाला जा सकता है.

  4. पानी की बचत: "प्रकल्प संजीवनी" विधि के तहत उपयोग करने से सिंचाई में 40-50% पानी की बचत होती है.

  5. रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता घटे: लगातार उपयोग से किसान रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग काफी हद तक कम या बंद कर सकते हैं.

  6. सभी प्रकार की फसलों के लिए उपयुक्त: चाहे वह अनाज हो, सब्जियां हों या पोषण प्रधान फसलें - यह खाद सभी के लिए उपयोगी है.

जायटॉनिक गोधन (Zytonic Godhan) उपचारित जैविक खाद, फसल चक्र में 3 से 6 महीने तक मिट्टी के सूक्ष्म जीवों (बैक्टीरिया, कवक और अन्य जैव प्रजातियों) के लिए महत्वपूर्ण खाद्य के रूप में कार्बनिक पदार्थों को उपलब्ध करने मे सहायक है, जो जैविक कृषि की सफलता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है.

जायटॉनिक गोधन के उपयोग के दौरान बरती जाने वाली सावधानियां

क्या करें:

  • 2 से 4 महीने पुराना गोबर प्रयोग करें .

  • जायटॉनिक गोधन की सही मात्रा का उपयोग करें. 1 मीट्रिक टन गोबर के लिए 2 किलोग्राम जायटॉनिक गोधन डालें.

  • गोबर की ऊंचाई 1 मीटर (लगभग 3 फीट) तक ही रखें ताकि हवा आसानी से अंदर जा सके.

  • पूरा ढेर जायटॉनिक गोधन के घोल से अच्छी तरह भिगो दें, ताकि पाचन प्रक्रिया सही ढंग से हो.

  • ढेर को जरूर ढकें, लेकिन ऐसी सामग्री से ढकें जो हवा आने-जाने दे, जैसे फसल के अवशेष (पराली) या जूट की बोरी.

क्या न करें (Don’ts):

  • कच्चा (ताजा) गोबर उपयोग न करें.

  • गोबर में मिट्टी या रेत न मिलाएं जब आप जायटॉनिक गोधन से खाद तैयार कर रहे हों.

  • गोबर का ढेर 3 फीट से ज्यादा ऊंचा न बनाएं. इससे हवा रुक जाती है और सड़न ठीक से नहीं होती.

  • बहुत अधिक पानी न डालें.

बिना दूध देने वाले पशुओं को फिर से उपयोगी बनाना

जायटॉनिक गोधन (Zytonic Godhan) सिर्फ मिट्टी की उर्वरता ही नहीं बढ़ाता, बल्कि किसानों के पशुपालन के आर्थिक गणित को भी बदल सकता है. आज किसान दूध ना देने वाले जानवरों जैसे बूढ़ी गायों और बैलों को अनुपयोगी मानते हैं. लेकिन अगर किसान ऐसे पशु का गोबर लेकर उच्च गुणवत्ता वाली खाद बनाएं, तो ये पशु फिर से लाभकारी बन सकते हैं.

एक साधारण गणना देखें:

बिना दूध देने वाले पशु (बूढ़ी गाय / बैल) का गोधन प्रौद्योगिकी अर्थशास्त्र

लागत/आय (रु.)

चारा और रखरखाव लागत

25,000

जायटॉनिक गोधन तकनीक की लागत

3,600

तैयार खाद (6 टन @ 5,000 - 6,000 प्रति टन प्रति पशु उपज)

₹30,000 – ₹36,000

कुल लाभ

₹1,400 - ₹7,400 प्रति पशु प्रति वर्ष


इस तरह बिना दूध देने वाले पशु भी किसान के लिए सालाना मुनाफा देने वाले साधन बन सकते हैं. इससे एक ओर जहां पशुओं की उपेक्षा नहीं होगी, वहीं दूसरी ओर टिकाऊ खेती को बल मिलेगा.

ऐसे में हम कह सकते हैं कि आज के समय में, जब खेती की लागत लगातार बढ़ रही है और मिट्टी की गुणवत्ता घटती जा रही है, तब जायटॉनिक गोधन (Zytonic Godhan) जैसी तकनीकें किसानों के लिए आशा की किरण बनकर उभर रही हैं. जायटॉनिक गोधन का उपयोग करके किसान न केवल जैविक खेती को अपनाकर अपनी उपज में सुधार कर सकते हैं, बल्कि लागत घटाकर टिकाऊ खेती की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी उठा सकते हैं.

English Summary: zytonic godhan benefits for modern organic farming and livestock management solution
Published on: 24 June 2025, 03:13 PM IST

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