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Updated on: 28 July, 2025 3:16 PM IST
जायडेक्स कंपनी द्वारा विकसित उन्नत उत्पाद “जायटॉनिक एक्टिव”

Zytonic Active: भारत में खेती का तरीका बहुत तेजी से बदल रहा है और इसके साथ-साथ कृषि रसायन उद्योग में भी अनुसंधान एवं नवाचार की गति तेज हो गई है. देश की प्रमुख एग्रोकेमिकल कंपनियां विभिन्न फसलों की सुरक्षा के लिए नए उत्पाद और मोलिक्यूल्स लगातार विकसित कर रही हैं. इन उत्पादों का उद्देश्य कीट, रोग और खरपतवारों पर प्रभावी नियंत्रण प्राप्त करना होता है, जिससे किसानों की उपज में वृद्धि हो और उनकी आय सुनिश्चित हो सके.

हालांकि, व्यवहार में यह देखा गया है कि जब ये उत्पाद लंबे समय तक उपयोग में लाए जाते हैं, तो विभिन्न कारणों से इनकी कार्यक्षमता में धीरे-धीरे कमी आने लगती है. जलवायु में बदलाव, छिड़काव की तकनीकी गलतियां, पानी की pH गुणवत्ता, या एक ही मोलिक्यूल का बार-बार प्रयोग, ये सभी कारण मिलकर उत्पाद की दक्षता को प्रभावित करते हैं. परिणामस्वरूप, कीट और खरपतवारों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है और वही उत्पाद जो शुरूआत में बेहतरीन परिणाम दे रहा था, समय के साथ कम प्रभावशाली हो जाता है.

अधिक डोज़ का असर: लागत में वृद्धि और फसल पर खतरा

इस परिस्थिति में किसान अपनी फसलों को बचाने के लिए अनुशंसित मात्रा से अधिक डोज़ का उपयोग करने लगते हैं. इससे दो प्रमुख समस्याएं उत्पन्न होती हैं. पहली यह कि उत्पाद की मात्रा बढ़ने से किसान की लागत में सीधा इज़ाफा होता है. दूसरी और कहीं अधिक गंभीर समस्या यह है कि अत्यधिक मात्रा में रसायनों के प्रयोग से फसल और वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

हर उत्पाद का विकास एक निश्चित मात्रा और जैविक संतुलन को ध्यान में रखकर किया जाता है, इसलिए अधिक डोज़ से फसल की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों पर नकारात्मक असर हो सकता है. इस चुनौती से निपटने के लिए एग्रोकेमिकल कंपनियां लगातार नए मोलिक्यूल्स पर भी काम कर रही हैं, लेकिन एक नया उत्पाद बाजार में लाने की प्रक्रिया समय और धन, दोनों दृष्टिकोणों से अत्यंत जटिल और लंबी होती है.

जायडेक्स कंपनी द्वारा विकसित उन्नत उत्पाद “जायटॉनिक एक्टिव”

फसल आधारित उदाहरण: घटती प्रभावशीलता की सच्ची तस्वीर

इस समस्या को समझने के लिए यदि हम कुछ व्यावहारिक उदाहरण देखें, तो गेहूं की फसल में पाए जाने वाले खरपतवार फैलेरिस माइनर की समस्या प्रमुख रूप से सामने आती है. इस खरपतवार को "गेहूं का मामा" या "मंडूसी" या “गुल्ली डंडा खरपतवार” भी कहा जाता है. 1990 के दशक में इस पर नियंत्रण के लिए जो उत्पाद लाए गए थे, उन्होंने लंबे समय तक अच्छा परिणाम दिया. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह देखने में आया है कि इस खरपतवार में भी प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी है, जिसके चलते पहले जो उत्पाद प्रभावशाली थे, अब वे कारगर नहीं रहे.

इसी प्रकार की स्थिति धान की फसल में भी उत्पन्न हो चुकी है. प्रारंभिक वर्षों में धान में खरपतवार नियंत्रण हेतु कई उत्पादों ने अच्छे परिणाम दिए, परंतु अब कई खरपतवारों में उनके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी है, जिससे उनकी प्रभावशीलता घटती जा रही है.

एक अन्य चुनौती माइट्स की समस्या के रूप में सामने आई है. माइट्स बहुत ही छोटे आकार के कीट होते हैं, लेकिन यह फसल को बहुत ज्यादा हानि पहुंचाते हैं. ये विशेषकर मिर्च, चाय और सेब समेत कई अन्य फसलों में देखे जाते हैं. माइट्स की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये अत्यंत तेज़ी से प्रजनन करते हैं और उतनी ही तेज़ी से किसी भी कीटनाशक के प्रति प्रतिरोधक बन जाते हैं. यही कारण है कि इनका नियंत्रण करना किसानों के लिए हमेशा से एक कठिन चुनौती रहा है.

माइक्रोएनकैप्सुलेशन तकनीक: एक वैज्ञानिक समाधान

ऐसी जटिल स्थितियों में केवल नए मोलिक्यूल्स का विकास ही समाधान नहीं है, बल्कि उन तकनीकों की भी आवश्यकता है जो मौजूदा उत्पादों की प्रभावशीलता को पुनः जीवंत कर सकें. हाल के वैज्ञानिक शोधों में यह सामने आया है कि माइक्रोएनकैप्सुलेशन तकनीक के माध्यम से मौजूदा उत्पादों की दक्षता और कार्यक्षमता को लम्बे समय तक बनाए रखा जा सकता है.

इस तकनीक में उत्पाद के सक्रिय अणु को एक सूक्ष्म सुरक्षात्मक परत में कैद किया जाता है, जिससे वह धीरे-धीरे फसल पर रिलीज होता है. इससे न केवल उसका प्रभाव अधिक समय तक बना रहता है, बल्कि वह लक्षित कीट या खरपतवार पर अधिक प्रभावी ढंग से कार्य करता है. उत्पाद की उपलब्धता बढ़ने से उसका अवक्षय (Degradation) धीरे-धीरे होता है और वह फसल पर लंबे समय तक कार्य करता है.

जायटॉनिक एक्टिव: उन्नत तकनीक आधारित समाधान

माइक्रोएनकैप्सुलेशन तकनीक को अपनाते हुए जायडेक्स कंपनी ने हाल ही में एक उन्नत उत्पाद जायटॉनिक एक्टिव” लॉन्च किया है. यह उत्पाद विशेष रूप से मौजूदा समस्याओं को ध्यान में रखकर विकसित किया गया है. जायटॉनिक एक्टिव को सीधे किसी भी कीटनाशक, फफूंदनाशक या खरपतवारनाशी दवा में मिलाया जाता है ना की  पानी में. इसे 10 मिनट तक दवा में छोड़ने के बाद पानी में घोलकर छिड़काव किया जाता है.

इसका मानक डोज़ 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी है, और औसतन 100 मिलीलीटर प्रति एकड़ का उपयोग पर्याप्त रहता है. जायटॉनिक एक्टिव न केवल उत्पाद को माइक्रोएनकैप्सुलेट करता है, बल्कि छिड़काव के बाद यह दवा को पत्तियों पर समान रूप से फैलने में भी मदद करता है. यह एक बेहतरीन स्प्रेडर की भूमिका निभाता है, साथ ही यह स्टीकर की तरह काम करता है जिससे बारिश होने पर दवा जल्दी न धुले.

एक समाधान, अनेक लाभ: किसानों के लिए उपयोगिता

जायटॉनिक एक्टिव की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके उपयोग से किसानों को अलग से स्प्रेडर या स्टीकर की आवश्यकता नहीं होती. इससे उनका अतिरिक्त खर्च बचता है. जिन किसानों को पहले सामान्य डोज़ पर अपेक्षित परिणाम नहीं मिलते थे, वे अब बिना डोज़ बढ़ाए ही बेहतरीन परिणाम प्राप्त कर रहे हैं.

यदि कोई किसान उत्पाद की मात्रा बढ़ा रहा है, तो वह जायटॉनिक एक्टिव को दवा की सामान्य मात्रा के साथ में मिलाकर उस उत्पाद की क्रियाशीलता को और अधिक बढ़ा सकता है. साथ ही अधिक दवा के दुष्परिणामों से बच सकता है. जायटॉनिक एक्टिव इन्सेक्टिसाइड, हर्बीसाइड, फफूंदनाशक, PGR और बायो-उत्पादों के साथ समान रूप से प्रयोग किया जा सकता है.

देश के विभिन्न हिस्सों के किसानों ने इसके उपयोग से सकारात्मक परिणाम देखे हैं, जिससे यह प्रमाणित होता है कि यह उत्पाद विभिन्न फसलों और जलवायु परिस्थितियों में प्रभावी ढंग से काम करता है.

टिकाऊ कृषि की ओर एक व्यावहारिक कदम

ऐसे में हम यह कह सकते हैं कि जब कृषि उत्पादों की प्रभावशीलता घटने लगती है और कीट-रोग-खरपतवारों में प्रतिरोधकता बढ़ने लगती है, तब किसान के पास विकल्प सीमित हो जाते हैं. ऐसे समय में जायटॉनिक एक्टिव जैसे नवाचार आधारित समाधान किसानों को न केवल मौजूदा उत्पादों का अधिकतम लाभ लेने में सक्षम बनाते हैं, बल्कि उनकी लागत भी नियंत्रित रखते हैं.

माइक्रोएनकैप्सुलेशन तकनीक से लैस यह उत्पाद आज की कृषि की जरूरतों को समझते हुए डिज़ाइन किया गया है. यह एक ऐसा विकल्प है जो टिकाऊ खेती, कम लागत, और उच्च उत्पादकता की दिशा में एक सार्थक कदम सिद्ध हो सकता है.

रासायनिक अवेशष मुक्त खेती की ओर एक कदम...

English Summary: Zytonic Active helps farmers achieve longer-lasting effects of agrochemicals in their fields -know how
Published on: 28 July 2025, 03:28 PM IST

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