अगर आप भी कम से कम लागत में अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं तो आपके लिए रेशम उत्पादन एक अच्छा बिजनेस साबित हो सकता है. बता दें कि रेशम के कीड़ों को पालने के लिए आपको मुख्य तौर पर बस सफेद शहतूत के पेड़ लगाने पड़ेंगे. वैसे इसका व्यापार कर हमारे देश के कुछ किसान अच्छा पैसा कमा रहे हैं. उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड और मध्य-प्रदेश में तो रेशम व्यापार खूब फल-फूल रहा है. हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश सरकार भी किसानों को इसमें अच्छी सहायता कर रही है.
रेशम कीड़ा पालन
रेशम के कीड़ो का जीवनकाल अधिक नहीं होता है. वो केवल दो या तीन दिन में ही मर जाते हैं. लेकिन इन 3 दिनों में ही मादा कीड़े 300 से लेकर 400 तक अंडे दे देती है और हर अण्डे से करीब 10 दिन में छोटा मादा कीट लार्वा (Caterpillar) निकलता है. 40 दिनों के अंदर ही मादा कीड़ों के सिर से लार निकलने लग जाती है, जिससे धागों के घोल बनते हैं. इस घोल को आम भाषा में कोया या फिर ककून (Cocoon) भी कहा जाता है. हवा के संपर्क में आने से ही ये सूख कर धागों के रूप में बदल जाते हैं, जिसकी लम्बाई करीब एक हजार मीटर तक भी हो सकती है.
रेशम पालन और सरकारी सहायता
केंद्र के अलावा कई राज्यों की सरकारे भी रेशम कीट पालन करने वाले किसानों को अच्छा सहायता दे रही है. एक एकड़ पर शहतूत की खेती करने पर पौधों की सिंचाई, निराई व गुड़ाई के लिए 14.5 हजार रुपए की सहायता दी जा रही है.
वहीं एक वर्ष में पौधों के प्रारंभिक स्थिति में तैयार होने पर एक लाख रुपए की कीमत से कीटपालन गृह व एक लाख रुपए का उपकरण भी मिल रहा है. कहने का मतलब यह है कि दो लाख रुपयों में 1.35 लाख रुपए सरकारी अनुदान से मिलेगा, जबकि 65 हजार रुपए किसान की अपनी पूंजी लगेगी.