Wheat Crop: गेहूं भारत देश की प्रमुख रवी ऋतु की फसल होने के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा का आधार भी है. अनाज के अलावा इसके भूसे का उपयोग भी पशु आहार के रूप में किया जाता है. भारत में इसका धान की फसल के बाद दूसरा स्थान है. इसमें पाए जाने वाले प्रमुख घटक प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट है. इसकी उत्पत्ति का स्थान एशिया का दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र माना जाता है. गेहूं का वैज्ञानिक नाम ट्रिटिकम एस्टीवम है. खाद्य उत्पादों में गेहूं का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है. गेहूं के प्रमुख उत्पादक देशों में भारत का दूसरा स्थान है. यह चीन, अमेरिका, रूस, फ्रांस, कैनेडा, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, ईरान, यूक्रेन, पाकिस्तान और अर्जेन्टीना आदि देशों में उत्पादित किया जाता है.
भारत में इसका उत्पादन मुख्य तौर से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार, राजस्थान, गुजरात, उत्तराखंड व हिमाचल प्रदेश में की जाती है. कुल उत्पादित खाद्यान्नों में गेहूं का 35 प्रतिशत योगदान है. हरियाणा प्रदेश में लगभग 11 मिलियन मीट्रिक टन गेहूं का उत्पादन होता है. लेकिन बढ़ती हुई आबादी को देखते हुए गेहूं का उत्पादन व उत्पादकता बढ़ाने की आवश्यकता है.
गेहूं की खेती के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है. देश भर में इसकी खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जाती है और कृषि वैज्ञानिकों ने अलग-अलग मिट्टी व जलवायु के अनुरूप उपयुक्त किस्मे तैयार की है. मिट्टी व जलवायु के ही किस्म का चयन उचित होता है. कल्लर व अधिक नमक वाली भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है. खेत की कठोर भूमि को जुताई करके भुरभुरा बनाया जाता है और बुवाई के समय खेत में नमी का होना अति आवश्यक है. गेहूं की किस्म व बुवाई के तरीके व समय के अनुसार बीज की उचित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए.
सामान्य तौर पर 45 से 60 किलोग्राम वीज प्रति एकड़ पर्याप्त माना जाता है. उचित समय पर चुवाई करके गेहूं की फसल की अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है. इसकी बुवाई का उचित समय अक्तूबरमाह के अन्तिम सप्ताह से नवम्बर माह के दूसरे सप्ताह तक माना जाता है. बुवाई में विलम्ब के कारण पैदावार में गिरावट भी बढ़ जाती है. बुवाई के लिए प्रमाणित व सिफारिश की गई किस्मों का ही चयन करे. अधिक लम्वाई वाली किस्मों की बुवाई 6-7 सैटीमीटर गहराई पर व कम लम्बाई वाली किस्मो की बुवाई 5-6 सैटीमीटर गहराई पर करें. बतौर से कतार की दूरी 20 सैंटीमीटर रखे. गेहूं की बुवाई के लिए उर्वरक एवं बीज ड्रिल से व नमी रहित इलाकों में पोरा विधि से बुवाई कर सकते हैं. अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए 5 से 6 बार सिंचाई करे. जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सीमित सुविधाएं उपलब्ध हो, वहां दो सिंचाई 21 से 45 दिन पर पर्याप्त होती है. फूल आने व दाने बनने के समय पर सिंचाई न करने से पैदावार पर बुरा असर पड़ता है तथा पैदावार प्रभावित होती है.
जमीन की स्थिति के अनुसार करें सिंचाई
पिछले साल की तरह इस बड़े में समय से पहले हरियाणा और पंजाब में बढ़ते तापमान से फसलों को नुकसान की आशंका है. आने वाले समय में भी बारिश न हुई, तो ज्यादा नुकसान हो सकता है. इसलिए किसानों को फसलों का खास ध्यान रखने की सलाह दी गई है. एच्.ए.यू. के वैज्ञानिकों के अनुसार फरवरी में ही बढ़ती गर्मी से गेहं समेत सरसों की फसल की पैदावार प्रभावित हो सकती है. किसानों को फसलों को प्रभावित होने से बचाने के लिए जमीन की स्थिति के अनुसार हल्की सिंचाई करनी चाहिए. पानी लगाने के लिए शाम के समय को तरजीह दी जाए. गेहूं के गोभ में आने और बूर पड़ने पर 2 फीसदी पोटाशियम नाइट्रेट का छिड़काव करें. चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के अनुसार वढ़ते तापमान के चलते गेहूं पर तेले के हमले की ज्यादा संभावना है. इसलिए किसान भाई सतर्क रहें और समाधान के लिए कृषि विभाग से सम्पर्क में रहें. वहीं, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के अनुसार इस खुशक मौसम में पीली कुंगी के हमले की अभी संभावना कम है.
गेहूं की फसल को गर्मी से बचाव के तरीके:-
दिन का तापमान 30-32 डिग्री सैल्सियस और रात का तापमान 15 डिग्री सेल्सियस से नीचे रहता है, तब तक किसानों को घबराने की जरूरत नहीं है. रात व दिन का तापमान मिलाकर औसत 22 डिग्री सैल्सियस गेहूं की पैदावार के लिए सबसे उत्तम माना जाता है. औसत तापमान 24 डिग्री सैल्सियस तक गेहूं की फसल सहन कर सकती है. लेकिन दिन का तापमान 35 डिग्री सैल्सियस से ऊपर होने पर गेहं के बनने वाले दानों पर बुरा प्रभाव पड़ता है. हालांकि डी.वी.डब्ल्यू.-187, डी.बी.डब्ल्यू.-303 व डी.वी.डब्ल्यू. -836 तीनों नई किस्में मौसम से लड़ने में सक्षम है और हरियाणा में 50 प्रतिशत रकवा इन्हीं किस्मों की बुवाई का है.
बढ़े हुए उच्च तापमान से बचने के लिए किसानों को आवश्यकतानुसार, हल्की सिंचाई करने की सलाह दी जाती है. जब तेज हवा चल रही है तो सिंचाई न करें अन्यथा फसल गिरने की संभावना बढ़ जाती है.जिन किसानों के पास फव्वारा सिंचाई की सुविधा है, वे दोपहर को तापमान वृद्धि के समय आधे घंटे तक फव्वारे से सिंचाई कर सकते है. गेहूं में बालियां निकलते समय या अगेती गेहूं की बालियां निकली हुई है तो भी 0.2 प्रतिशत पोटाशियम क्लोराइड यानि कि 400 ग्राम पोटाश खाद 200 लीटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ छिड़काव करें. इससे तापमान में अचानक से हुई वृद्धि से होने वाले नुकसान पर काबू पाया जा सकता है. पिछेती गेहूं में पोटेशियम क्लोराइड का छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर दो बार किया जा सकता है.
किसानों को यह सलाह:-
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गेहूं व जौ की फसल में नमी बरकरार रखें, जरूरत होने पर शाम को हल्की सिंचाई करें.
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स्प्रिंकलर सिंचाई का प्रबंध है तो ये गेहूं व जौ की फसल में सबसे अच्छा सिंचाई प्रबंधन है.
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ये समय बेहद महत्वपूर्ण है, कृषि सलाह से ही गेहूं की फसल में सिंचाई व स्प्रे करें.
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चना व सरसों की कटाई व कढ़ाई करें और उसके भंडारण का विशेष प्रबंध करें.
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गन्ने की बिजाई के लिए उपयुक्त समय है, इसके लिए खेतों को तैयार करें.
लेखक: आशीष कुमार, कृषि मौसम विशेषज्ञ, जिला कृषि मौसम सेवा: डॉ राजबीर गर्ग, प्रोफेसर ,सस्य विज्ञान, कृषि विज्ञान, केन्द्र, पानीपत श्वेता अनुसंधान विद्वान विभाग- वनस्पति विज्ञान और पादप कार्यिकी, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार.