कृषि में अवसर बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा फसलों की खेती की जा रही है. अब मसालों का भी उत्पादन बढ़ता ही जा रहा है. हर मसाले का उत्पादन ज्यादा से ज्यादा किसान कर रहे हैं ऐसे में आपको सोवा के बारे में बताने जा रहे हैं. सुवा या सोवा एक गौण बीजीय मसाला है जो औषधीय गुणों से भरपूर है. इसका उपयोग अचार, सॉस, सूप और सलाद में होता है व मसाले के रूप में भी उपयोग होता है. सुवा के दानों में 3-4% तेल होता है इसकी खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते है. तो आइये जानते है सुवा की खेती के बारे में.
जलवायु और भूमि-
सुवा शरद ऋतु में बोई जाने वाली फसल है, अच्छी बढ़वार व पैदावार के लिए ठंडी और शुष्क जलवायु उपयुक्त होती है. पाले का इस पर बुरा प्रभाव पड़ता है. जलवायु में अधिक नमी होने पर बीमारियों और कीटों के प्रकोप का डर रहता है. ऐसे में सुवा की खेती बलुई मिट्टी को छोड़कर करीब-करीब सभी प्रकार की भूमि पर की जा सकती है. लेकिन अच्छी पैदावार के लिए हल्की मध्यम प्रकार की काली दोमट और बलुई दोमट मिट्टी, जिसमें जल निकास की पर्याप्त सुविधा हो, उपयुक्त है.
उन्नत किस्में-
सुवा की अभी तक कोई भी उन्नत किस्म विकसित नहीं हुई है. अतः स्थानीय किस्म ही बोने के काम में आती है लेकिन सामान्यतः गुजरात के लिए मेहसाना और रूबी लोकल और राजस्थान के लिए प्रतापगढ़ लोकल इसकी खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है.
खेत की तैयारी-
खरीफ की फसलों की कटाई के बाद खेत में गहरा हल चलाकर जुताई करें. इसके बाद एक-दो बार हैरो चलाएं. हर जुताई के बाद पाटा जरूर लगायें ताकि खेत ढेले टूट जाएं और मिट्टी भुरभुरी हो जाये.
बीजदर-
बुवाई के लिए 6-8 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर काफी है. ऐसे में प्रति बीघा इसका ढाई किलोग्राम बीज लगता है. बुवाई से पहले बीज को कार्बेण्डाजिम से उपचारित करना चाहिए.
बुवाई-
असिंचित खेती में बुवाई सितम्बर के दूसरे पखवाड़े में करनी चाहिए. कई किसान अक्टूबर से नवंबर के मध्य में भी बुवाई करते हैं. बीज की बुवाई छिड़क कर या पंक्तियों में दोनों तरह की जाती है. लाइनों में बुवाई करने से अंतर्सस्य क्रियाओं में सुविधा रहती है. छिड़काव विधि में बीज की निर्धारित मात्रा एक समान छिड़ककर हल्की दंताली चलाकर या हाथ से मिट्टी में मिलाएं. कतारों में बुवाई करने पर बीजों को 30 सेमी की दूरी पर बोना चाहिए. असिंचित फसल के लिए बुवाई 2-3 सेमी की गहराई पर हल के पीछे होती है किन्तु सिंचित फसल की बुवाई के लिए बीज की गराई एक या डेढ़ सेमी० से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.
सिंचाई-
सुवा एक लम्बे समय में पकने वाली फसल है. इसलिए इसे अधिक सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। सिंचित फसल में बुवाई के बाद सिंचाई करें. इस सिंचाई के समय बहाव तेज न हो अन्यथा बीज बहकर एक तरफ क्यारियों के किनारों पर इक्कट्ठे हो जायेंगे. दूसरी सिंचाई बुवाई के 7-10 दिन बाद करें.
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इसके बाद यदि खेत में पपड़ी जम जाय तो 4-5 दिन बाद एक हल्की सिंचाई कर दें. ताकि बीजों का अंकुरण अच्छी प्रकार हो सके. इसके बाद स्थानीय तापमान और भूमि की किस्म के अनुसार 20-30 दिन के अंतराल से सिंचाई करें. इस प्रकार इस फसल को 8-10 सिंचाइयों की जरूरत होती है.