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Updated on: 9 April, 2025 6:41 PM IST
जैविक विधि से गेहूं की खेती, फोटो साभार: कृषि जागरण

भारत में कृषि सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि एक परंपरा है. यह हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और देश की लगभग 60 प्रतिशत आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इससे जुड़ी हुई है. हरित क्रांति के बाद से रासायनिक खादों, कीटनाशकों और हाइब्रिड बीजों का उपयोग बढ़ा, जिससे कृषि उत्पादकता में भारी वृद्धि हुई. लेकिन इसके साथ कई दुष्परिणाम भी सामने आए. मिट्टी की उर्वरता घट रही है, जल स्रोत दूषित हो रहे हैं और फसलों की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है. इसके कारण खेती की लागत बढ़ी, लेकिन किसानों को उचित लाभ नहीं मिल पा रहा. इसके अलावा, रासायनिक खेती से उपजाए गए अनाज और सब्जियों के सेवन से स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.

इन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए जैविक और प्राकृतिक खेती एक बेहतर उपाय है. जैविक खेती पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाती, बल्कि यह मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में मदद करती है और यह किसानों के लिए भी एक स्थिर आय का स्रोत बन सकती है. हालांकि, रासायनिक खेती से जैविक खेती में परिवर्तन करना आसान नहीं है और इसके लिए किसानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इसलिए, इस परिवर्तन के लिए सही दिशा-निर्देश और समर्थन जरूरी है ताकि किसान इसे अपनाकर अपनी खेती को और बेहतर बना सकें.

जैविक खेती में परिवर्तन करने पर आने वाली चुनौतियां

जैविक खेती के अनेक लाभ होने के बावजूद, इसे अपनाने में कई चुनौतियां आती हैं. कुछ प्रमुख बाधाएं इस प्रकार हैं:-

  1. जैविक खादों की कमी: उच्च गुणवत्ता वाली जैविक खादों की उपलब्धता कम है, और इन्हें समय पर उपलब्ध कराना किसानों के लिए कठिन हो जाता है.

  2. रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता: किसानों को रासायनिक उर्वरकों की आदत हो चुकी है, जो जल्दी परिणाम देते हैं, जबकि जैविक खादों का असर धीरे-धीरे होता है.

  3. मिट्टी की उर्वरता: रासायनिक खेती से मिट्टी के पोषक तत्व घट जाते हैं, जिससे जैविक खेती में बदलाव करना मुश्किल होता है और समय भी लगता है.

  4. कीट प्रबंधन: जैविक कीट नियंत्रण उपायों की कमी और तकनीकी जानकारी का अभाव भी एक बड़ी समस्या है.

  5. जल की कमी: जल स्तर में गिरावट और अनियमित वर्षा जैविक खेती के लिए चुनौती बनती है.

ज़ायटॉनिक टेक्नोलॉजी: जैविक खेती में क्रांति

देश के किसानों को जैविक खेती सरलता पूर्वक करने में मदद देने के लिए ज़ायडेक्स, एक अग्रणी अनुसंधान-आधारित संगठन ने एक क्रांतिकारी नवाचार, जो टिकाऊ और लाभकारी जैविक खेती को सुनिश्चित करता है, ज़ायटॉनिक टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म पेश किया है. ज़ायटॉनिक टेक्नोलॉजी से मिट्टी की उर्वरता में सुधार होता है और किसानों के पास जैविक खेती के लिए आवश्यक पोषक तत्वों आसानी से उपलब्ध होते हैं. इसके साथ ही फसलों की गुणवत्ता भी बढ़ती है.

ज़ायटॉनिक टेक्नोलॉजी के उपयोग से किसानों को कम लागत में ही रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर रहने से राहत मिली है, और उन्होंने अपने उत्पादन में भी वृद्धि देखी है. यह तकनीक जैविक खेती के लिए एक सही दिशा दिखाती है, जो न केवल आर्थिक लाभ प्रदान करती है, बल्कि पर्यावरण को भी बचाती है.

कंपनी के अनुसार, ज़ायटॉनिक टेक्नोलॉजी से निर्मित उत्पादों का इस्तेमाल करके वर्तमान समय में देश के लगभग 200,000 से अधिक किसानों ने 50-100% तक रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में कमी की है और उत्पादकता तथा मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार देखा है.

रासायनिक खेती से जैविक खेती में परिवर्तित होने पर आने वाली चुनौतियों का समाधान

ज़ायटॉनिक टेक्नोलॉजी ने जैविक खेती की चुनौतियों का समाधान सरल और प्रभावी तरीके से किया है-

जैविक पदार्थ की उपलब्धता: ज़ायटॉनिक गोधन टेक्नोलॉजी के माध्यम से, फफूंद आधारित जैविक पाचन प्रक्रिया द्वारा पशु गोबर को पूरी तरह से पचाकर उच्च गुणवत्ता वाले फार्म यार्ड मैन्योर (FYM) में बदला जा सकता है. यह प्रक्रिया परंपरागत 8-10 महीनों की तुलना में सिर्फ 45-60 दिनों में पूरी हो जाती है, जिससे किसानों को जैविक खाद जल्दी और समय पर मिल जाती है. इससे खेतों की मिट्टी अधिक पोषक और उर्वरा बनती है, और खेती की लागत भी कम होती है.

उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले के रहने वाले प्रगतिशील किसान गुरुजंत सिंह, फोटो साभार: कृषि जागरण

गिल फार्म ढाकी, मझोला, जिला- उधम सिंह नगर, उत्तराखंड के रहने वाले प्रगतिशील किसान गुरुजंत सिंह ने बताया, मेरे पास लगभग 100 एकड़ जमीन है, जिसमें मुख्य रूप से मैं गन्ना, धान और गेहूं की खेती करता हूं. जमीन के कुछ हिस्से में बागवानी भी करता हूं. मैं पिछले तीन साल से जैविक खेती की ओर बढ़ रहा हूं. शुरुआत मैंने 2 एकड़ से की थी, लेकिन अब लगभग 35 एकड़ में जैविक और रासायनिक उत्पादों को मिलाकर खेती कर रहा हूं, जिसमें जैविक और रासायनिक उत्पादों का अनुपात 50:50 है. आगे मेरा लक्ष्य है कि 100 प्रतिशत जैविक खेती करूँ. मैं अपने गोबर खाद को पचाने के लिए गोधन उत्पाद का इस्तेमाल करता हूं. इससे लगभग 40-60 दिनों में मेरा गोबर खाद भुरभुरा तैयार हो जाता है, जिसे गेहूं या गन्ने की खेती करने से पहले प्रति एकड़ सिर्फ 10 क्विंटल डालता हूं. इसको इस्तेमाल करने से मुझे अच्छा परिणाम मिलता है.”

रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता: ज़ायटॉनिक उत्पाद से मिट्टी जैविक कार्बन से समृद्ध होती है, जिससे किसानों की रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होती है और उपज में वृद्धि होती है. इस उत्पाद का नियमित उपयोग करने से, किसान कम रासायनिक उर्वरकों के साथ भी अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं.

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में रहने वाले प्रगतिशील किसान विवेक शर्मा , फोटो साभार: कृषि जागरण

मकसूदापुर, जिला-शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश में रहने वाले प्रगतिशील किसान विवेक शर्मा ने बताया, मेरे पास लगभग 20 एकड़ जमीन है. मैं पिछले 6 सालों से कृषि क्षेत्र से सक्रिय रूप से जुड़ा हूं और पिछले 5 सालों से जैविक खेती कर रहा हूं. मैं मुख्य रूप से धान, गेहूं और गन्ने की खेती करता हूं. मैं पिछले 3 सालों से सिर्फ जायडेक्स कंपनी की ज़ायटॉनिक-एम, ज़ायटॉनिक जिंक, ज़ायटॉनिक पोटाश और ज़ायटॉनिक नीम जैविक उत्पादों का इस्तेमाल करके 100 प्रतिशत जैविक खेती कर रहा हूं. इन उत्पादों से मेरी मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ गई है. पैदावार में भी वृद्धि हुई है और लागत में कमी आई है.”

मिट्टी का स्वास्थ्य: ज़ायटॉनिक के इस्तेमाल से मिट्टी में कार्बनिक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है, और मिट्टी नरम तथा हवादार हो जाती है. इसके कारण मिट्टी की जल धारण क्षमता भी बढ़ जाती है और फसलों की जड़ें अधिक गहरी हो जाती हैं, जिससे फसलें स्वस्थ और मजबूत होती हैं.

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले के रहने वाले प्रगतिशील किसान राजाराम प्रजापति , फोटो साभार: कृषि जागरण

बढ़ईडीह, जिला बलरामपुर, उत्तर प्रदेश के रहने वाले प्रगतिशील किसान राजाराम प्रजापति ने बताया, मैं धान, गेहूं, गन्ना, आलू, गोभी, प्याज और मिर्च की खेती करता हूं. मेरे पास लगभग 5 एकड़ जमीन है. मैं अपनी फसल में रासायनिक उत्पादों के साथ-साथ जैविक उत्पाद ज़ायटॉनिक-एम का भी इस्तेमाल करता हूं. ज़ायटॉनिक-एम का इस्तेमाल मैंने शुरुआत छोटे से रकबे से किया था, फिलहाल मैंने अपनी गेहूं और प्याज की फसल में इसका उपयोग किया है. अब मैं अपनी फसल में 50 प्रतिशत से भी कम रासायनिक उत्पाद डालता हूं, बाकी जैविक उत्पाद डालता हूं, जिसका परिणाम मुझे अच्छा मिला है. ज़ायटॉनिक-एम के इस्तेमाल से मेरी मिट्टी नरम, भुरभूरी और हवादार हो गई है. इससे बीजों का जमाव भी अच्छा होता है और कुल मिलाकर मेरी फसल चक्र में फसल अच्छी हुई है और लागत में भी कमी आई है.”

प्रभावी कीट प्रबंधन की कमी: ज़ायटॉनिक नीम का फसलों पर छिड़काव करने से कीटों का हमला कम होता है और फसल की गुणवत्ता बनी रहती है. यह एक प्राकृतिक और पर्यावरण के अनुकूल तरीका है, जो कीटनाशकों के उपयोग से होने वाले नुकसान को भी कम करता है.

यूपी के बाराबंकी जिले के रहने वाले प्रगतिशील किसान कृष्ण कुमार वर्मा, फोटो साभार: कृषि जागरण

चादुपुर सरिया, जिला- बाराबंकी, यूपी के रहने वाले प्रगतिशील किसान कृष्ण कुमार वर्मा ने बताया, मैं लगभग 20 सालों से खेती-किसानी से जुड़ा हूं. मैं मुख्य रूप से केले की खेती करता हूं. 2016 से मैं अपनी फसल में 50 प्रतिशत जैविक उत्पाद और 50 प्रतिशत रासायनिक उत्पादों का इस्तेमाल करता हूं. मैं अपनी फसल में जायडेक्स कंपनी का ज़ायटॉनिक-एम, ज़ायटॉनिक गोधन, ज़ायटॉनिक जिंक, ज़ायटॉनिक सुरक्षा और ज़ायटॉनिक नीम समेत कई अन्य जैविक उत्पादों का इस्तेमाल करता हूं. केले की फसल में बीटल का हमला एक गंभीर समस्या है, जिससे फलों और पत्तियों पर दाग-धब्बे पड़ जाते हैं. ज़ायटॉनिक नीम का इस्तेमाल करने से इसका नियंत्रण हो जाता है. यह जैविक उत्पाद बीटल की रोकथाम में बहुत प्रभावी है. इसके अलावा ज़ायटॉनिक उत्पादों का इस्तेमाल करने से पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ जाती है, जिससे पौधों में रोग लगने की संभावना बहुत कम हो जाती है.”

जल उपलब्धता: ज़ायटॉनिक उत्पाद के खेतों में उपयोग से मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ जाती है. इस से मिट्टी भुरभुरी हो जाती है, जिससे पानी अधिक समय तक खेतों में रहता है और फसल को पर्याप्त नमी मिलती है. इससे सिंचाई की आवश्यकता कम होती है और जल का सही उपयोग किया जाता है.

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले के रहने वाले प्रगतिशील किसान दोस्त मोहम्मद, फोटो साभार: कृषि जागरण

प्रतापपुर (महाराजगंज जंगल), जिला बलरामपुर, उत्तर प्रदेश के रहने वाले प्रगतिशील किसान दोस्त मोहम्मद ने बताया, मैं लगभग 35 सालों से खेती कर रहा हूं. मैं गन्ना, धान, गेहूं, सरसों, चना और प्याज समेत कई अन्य फसलों की खेती करता हूं. पहले मैं सिर्फ रासायनिक उर्वरक ही डालता था, लेकिन जब से मुझे जायडेक्स कंपनी का ज़ायटॉनिक-एम उत्पाद मिला है, तब से जैविक खेती की ओर बढ़ने लगा हूं. इससे मुझे पहले से बेहतरीन फसल मिल रही है. मैं ज़ायटॉनिक-एम के अलावा गोधन उत्पाद का भी इस्तेमाल करता हूं. पहले जहां मैं एक एकड़ में 5 ट्रॉली गोबर खाद डालता था, अब सिर्फ 1 ट्रॉली गोधन उत्पाद से पचाए हुए गोबर खाद का इस्तेमाल करता हूं. अभी मैं अपनी सभी फसलों में 60 प्रतिशत रासायनिक और 40 प्रतिशत जैविक उत्पाद का इस्तेमाल करता हूं. मेरी कोशिश है कि भविष्य में जैविक उत्पादों का प्रतिशत और बढ़ा दूं. ज़ायटॉनिक-एम के इस्तेमाल से मेरी मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ गई है. लंबे समय तक मिट्टी में नमी बनी रहती है और थोड़ी देर से पानी देने पर भी फसल खराब नहीं होती है.”

ज़ायटॉनिक टेक्नोलॉजी ने न केवल कृषि की चुनौतियों का समाधान किया है, बल्कि किसानों को जैविक खेती की दिशा में बड़ा कदम उठाने के लिए प्रेरित किया है. यह तकनीक न केवल किसानों के लिए फायदेमंद है, बल्कि यह हमारे पर्यावरण को भी बचाने में मदद करती है. जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए यह एक लंबा और स्थायी कदम साबित हो सकता है, जो भविष्य में कृषि क्षेत्र के लिए बहुत फायदेमंद होगा.

English Summary: transition from chemical farming to organic farming challenges and solutions how to start Organic Farming
Published on: 09 April 2025, 06:54 PM IST

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