Top Basmati Rice Varieties: बासमती धान की खेती भारत के विभिन्न राज्यों में की जाती है, जिसमें मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली शामिल हैं. पूसा बासमती धान की कई उन्नत किस्में हैं, जो अधिक उपज, रोग प्रतिरोधक क्षमता और बेहतरीन गुणवत्ता वाले दानों के लिए जानी जाती हैं. इन किस्मों में प्रमुख रूप से पूसा 1592, पूसा बासमती 1609, पूसा बासमती 1637, पूसा बासमती 1692 और पूसा बासमती 1886 शामिल हैं.
इन सभी किस्मों की औसत उपज 42-52 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के बीच होती है, जबकि इनकी अधिकतम संभावित उपज 67.3 से 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुंच सकती है. ये किस्में झुलसा, झौंका, ब्लास्ट और बैक्टीरियल ब्लाइट जैसी बीमारियों के लिए प्रतिरोधी होती हैं. इनके दाने पकने के बाद लंबे और सुगंधित होते हैं, जिससे उनकी बाजार में काफी मांग रहती है. आइए, इन किस्मों के बारे में विस्तार से जानते हैं-
1. पूसा बासमती 1592
पूसा बासमती 1592, बासमती धान की एक उन्नत और उच्च उत्पादक किस्म है, जिसे विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के बासमती उत्पादक क्षेत्रों में उगाया जाता है. यह किस्म खरीफ ऋतु में सिंचित अवस्था में उगाई जाती है. औसतन, इस किस्म से 47.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज होती है, और संभावित उपज 67.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुंच सकती है. यह लगभग 120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है.
धान की उन्नत किस्म पूसा बासमती 1592 की प्रमुख विशेषता यह है कि यह झुलसा रोग के लिए प्रतिरोधी है, जो इसे अन्य किस्मों से बेहतर बनाता है. इस किस्म के दाने लंबे (14.0 मिमी), पतले और पारभासी होते हैं. पकने के बाद दानों की सुगंध अत्यधिक होती है, जिससे यह किस्म बाजार में अधिक मूल्य प्राप्त करती है. इसके अलावा, इस किस्म से 58.2% चावल प्राप्ति होती है, जो इसे उत्पादन के दृष्टिकोण से लाभकारी बनाता है.
2. पूसा बासमती 1609
पूसा बासमती 1609 किस्म उत्तराखंड, पंजाब और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (दिल्ली) के बासमती उत्पादक क्षेत्रों में उगाई जाती है. उगाने के लिए अनुमोदित यानी स्वीकृत है. यह भी सिंचित अवस्था में उगाई जाने वाली किस्म है और खरीफ ऋतु में इसकी खेती की जाती है. औसतन उपज 46.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है, और संभावित उपज 67.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है. इस किस्म की परिपक्वता भी 120 दिनों में होती है.
धान की उन्नत किस्म पूसा बासमती 1609 की विशेषता यह है कि यह झौंका रोग (Blast Disease) के लिए प्रतिरोधी है. इसके दाने अतिरिक्त लंबे (7.9 मिमी), पतले और सुगंधित होते हैं. पकने के बाद दाने की लंबाई 13.9 मिमी होती है, जो इसे आकर्षक और गुणवत्तापूर्ण बनाती है. इस किस्म का उत्पादन किसानों के लिए लाभकारी है, क्योंकि यह उच्च गुणवत्ता वाले चावल का उत्पादन करती है, जो बाजार में अच्छा मूल्य प्राप्त करता है.
3. पूसा बासमती 1637
पूसा बासमती 1637 किस्म पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के बासमती उत्पादक क्षेत्रों में उगाई जाती है. इसकी औसत उपज 42.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है, जबकि संभावित उपज 70.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है. यह किस्म भी खरीफ ऋतु में उगाई जाती है और इसकी परिपक्वता 130 दिनों में होती है.
धान की उन्नत किस्म पूसा बासमती 1637 की विशेषता यह है कि यह भी झौंका रोग के लिए प्रतिरोधी है. इसके दाने लंबे (7.3 मिमी), पतले और अत्यधिक सुगंधित होते हैं. पकने के बाद दानों की लंबाई 13.8 मिमी होती है, जो इसकी गुणवत्ता को और बढ़ाती है. यह किस्म किसानों को उच्च उत्पादकता और गुणवत्ता प्रदान करती है, जिससे वे अच्छे मूल्य पर अपनी फसल बेच सकते हैं.
4. पूसा बासमती 1692
पूसा बासमती 1692 एक अर्ध-बौनी किस्म है, जिसे विशेष रूप से दिल्ली, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बासमती उत्पादक क्षेत्रों में उगाया जाता है. इसकी औसत उपज 52.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है, और संभावित उपज 73.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है. इसकी परिपक्वता 115 दिनों में होती है, जो इसे अन्य किस्मों से जल्दी पकने वाली बनाती है.
धान की उन्नत किस्म पूसा बासमती 1692 की प्रमुख विशेषता यह है कि यह उच्च उपज वाली और छोटी अवधि वाली किस्म है, जो किसानों के लिए अत्यधिक लाभकारी है. इसके दाने अतिरिक्त लंबे और पतले होते हैं, और पकने के बाद दानों की लंबाई 17.0 मिमी तक पहुंचती है, जो इसे और भी आकर्षक बनाती है. इसके दाने में तेज खुशबू होती है, जो इसकी गुणवत्ता को और बढ़ाती है. यह किस्म विशेष रूप से बाजार में अधिक मूल्य प्राप्त करने में मदद करती है.
5. पूसा बासमती 1886
पूसा बासमती 1886 किस्म हरियाणा और उत्तराखंड के बासमती उत्पादक क्षेत्र में उगाई जाती है. यह सिंचित अवस्था में खरीफ ऋतु में उगाई जाती है. इसकी औसत उपज 44.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है, जबकि संभावित उपज 80.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है. इसकी परिपक्वता 145 दिनों में होती है.
धान की इस उन्नत किस्म की प्रमुख विशेषता यह है कि यह बैक्टीरियल ब्लाइट और ब्लास्ट रोगों के लिए प्रतिरोधी है, क्योंकि इसमें xa13 और Xa21 जीन बैक्टीरियल ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी होते हैं, और Pi2 और Pi54 जीन ब्लास्ट रोग के प्रति प्रतिरोधी होते हैं. इस किस्म के दाने लंबे और पतले होते हैं (7.8 मिमी), और पकने के बाद दानों की लंबाई 15.2 मिमी होती है. इसमें मध्यवर्ती एमाइलोज (23.7%) और तीव्र सुगंध होती है, जो इसे अन्य किस्मों से अलग करती है.