Success Story: सब्जियों की खेती से 5 करोड़ रुपये की कमाई! पढ़ें इस दसवीं पास सफल किसान की कहानी Mustard Varieties: अक्टूबर में सरसों की इन चार किस्मों की करें खेती, बंपर होगी पैदावार! Papaya Farming: पपीते की फसल में बोरोन की कमी से घट सकती है पैदावार, जानें लक्षण और प्रबंधन! केले में उर्वरकों का प्रयोग करते समय बस इन 6 बातों का रखें ध्यान, मिलेगी ज्यादा उपज! भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Mahindra Bolero: कृषि, पोल्ट्री और डेयरी के लिए बेहतरीन पिकअप, जानें फीचर्स और कीमत! Multilayer Farming: मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से आकाश चौरसिया कमा रहे कई गुना मुनाफा, सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये तक पपीता की फसल को बर्बाद कर सकता है यह खतरनाक रोग, जानें लक्षण और प्रबंधित का तरीका
Updated on: 7 October, 2024 11:54 AM IST
Top 4 mustard varieties of IARI Pusa

Top 4 mustard varieties of IARI Pusa: सरसों भारत की प्रमुख रबी फसल है, जिसे मुख्य रूप से खाद्य तेल निकालने के लिए उगाया जाता है. सरसों की उन्नत किस्मों से किसान बेहतर उपज और उच्च गुणवत्ता वाला तेल प्राप्त कर सकते हैं. इन किस्मों का सही इस्तेमाल करके खेती को अधिक फायदेमंद बनाया जा सकता है. इस लेख में हम आज आपको भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), पूसा द्वारा विकसित सरसों की चार प्रमुख उन्नत किस्मों – पूसा डबल जीरो सरसों 31, पूसा सरसों 32 (LES-54), पूसा डबल जीरो सरसों 33, और पूसा डबल जीरो सरसों 34 (PM-34) के बारे में विस्तार से बताएंगे, जो किसानों के लिए लाभकारी साबित हो रही हैं.

1. पूसा डबल जीरो सरसों 31

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), पूसा द्वारा विकसित यह भारत की पहली कैनोला गुणवत्ता वाली सरसों की किस्म है, जिसमें इरूसिक अम्ल (Erucic Acid) की मात्रा 2% से कम और ग्लुकोसिनोलेट्स की मात्रा 230 PPM से कम होती है. इस किस्म से किसानों को बेहतर गुणवत्ता का तेल प्राप्त होता है.

बुवाई हेतु क्षेत्र: पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू और उत्तरी राजस्थान
औसत उपज: 23.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
संभावित उपज: 27.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
मुख्य विशेषताएं:

  •  इस किस्म में तेल की मात्रा 41% होती है.

  • इसके बीज छोटे और पीले होते हैं.

  • पौधे की लंबाई लगभग 198 सेमी होती है और यह अधिक फलियों वाली शाखाओं के साथ आता है, जिससे अधिक उपज मिलती है.

2. पूसा सरसों 32 (LES-54)

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), पूसा द्वारा विकसित यह एकल शून्य (Single Zero) किस्म है, जिसमें इरूसिक अम्ल की मात्रा 2% से कम होती है. यह सूखे या कम पानी की स्थिति में भी अच्छा उत्पादन देती है.

बुवाई हेतु क्षेत्र: राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश
औसत उपज: 27.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
संभावित उपज: 33.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
मुख्य विशेषताएं:

  • इस किस्म में तेल की मात्रा 38% होती है.

  • यह कम पानी वाली स्थिति में भी अच्छी पैदावार देती है.

  • इसका पौधा कॉम्पैक्ट और मजबूत होता है, जिससे यह अधिक फलियां देती है.

3. पूसा डबल जीरो सरसों 33

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), पूसा द्वारा विकसित इस किस्म में इरूसिक अम्ल की मात्रा केवल 1.13% और ग्लुकोसिनोलेट्स की मात्रा 15.2 PPM होती है. यह किस्म भी उच्च गुणवत्ता वाला तेल प्रदान करती है और सफेद रतुआ रोग के प्रति प्रतिरोधी होती है.

बुवाई हेतु क्षेत्र: राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश
औसत उपज: 26.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
संभावित उपज: 31.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
मुख्य विशेषताएं:

  • इसमें इरूसिक अम्ल की मात्रा कम होती है, जिससे स्वास्थ्य के लिए यह लाभदायक है.

  • तेल की मात्रा 38% तक होती है, और यह सफेद रतुआ रोग के प्रति प्रतिरोधी होती है.

  • कम पानी की स्थिति में भी अच्छी उपज देती है.

4. पूसा डबल जीरो सरसों 34 (PM-34)

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), पूसा द्वारा विकसित यह एकल शून्य श्रेणी की किस्म है, जिसमें इरूसिक अम्ल की मात्रा सिर्फ 0.79% होती है. यह किस्म भी सूखे के प्रति सहनशील होती है और बेहतर उत्पादन देती है.
बुवाई हेतु अनुमोदित क्षेत्र: राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू, कश्मीर और हिमाचल प्रदेश
औसत उपज: 26.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
संभावित उपज: 30.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
मुख्य विशेषताएं:

  •  इसमें इरूसिक अम्ल की मात्रा बहुत कम होती है.
  • इस किस्म में तेल की मात्रा 36% होती है, जो आर्थिक रूप से फायदेमंद है.
  • इसका पौधा लंबा और मजबूत होता है, जो अधिक फलियां देता है.

सरसों की खेती के लिए महत्वपूर्ण सुझाव

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), पूसा द्वारा विकसित सरसों की इन उन्नत किस्मों से बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए सही समय पर बुवाई, उर्वरक का सही मात्रा में उपयोग, और सिंचाई का उचित प्रबंधन बेहद जरूरी है-

बीज दर: सरसों की बुवाई के दौरान एक हेक्टेयर में 3-4 किलो बीज का इस्तेमाल करना चाहिए.
बुवाई की दूरी: बीजों की बुवाई के दौरान पंक्ति से पंक्ति 30-45 सेमी, पौधे से पौधा 10-15 सेमी की दूरी अवश्य रखें.
बीज की गहराई: बीजों को मिट्टी में कम से कम 2.5-3.0 सेमी गहराई में बोएं.
बुवाई का समय: सरसों की इन उन्नत किस्मों की बुवाई 15-20 अक्टूबर (समय पर बुवाई), 1-20 नवंबर (देर से बुवाई) होती है.
उर्वरक का उपयोग: अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश और गंधक का सही मात्रा में उपयोग करें.
सिंचाई: सिंचाई की संख्या फसल की जरूरत और जल उपलब्धता के अनुसार तय करें. अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 1 से 3 सिंचाई पर्याप्त होती हैं.

निष्कर्ष

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), पूसा द्वारा विकसित सरसों की ये उन्नत किस्में खेती में सुधार के साथ-साथ किसानों की आय बढ़ाने में मददगार साबित हो रही हैं. इन किस्मों के इस्तेमाल से किसान बेहतर उपज और उच्च गुणवत्ता वाला तेल प्राप्त कर सकते हैं. साथ ही, ये किस्में जलवायु की कठिन परिस्थितियों में भी अच्छा उत्पादन देती हैं, जिससे किसानों का जोखिम कम होता है.

English Summary: Top 4 mustard varieties of IARI Pusa, production capacity 33.5 per hectare, know the features
Published on: 07 October 2024, 12:09 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now