गाजर की खेती करने वाले किसानों के लिए राहत और मुनाफे की नई राह खुल गई है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), पूसा द्वारा विकसित की गई उन्नत किस्में- पूसा रुधिरा, पूसा वसुधा (संकर) और पूसा प्रतीक अब बाजार और खेत दोनों में अपनी खास पहचान बना रही हैं. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि इन किस्मों से न केवल किसानों की आमदनी बढ़ेगी, बल्कि उपभोक्ताओं को भी बेहतर गुणवत्ता वाली, पौष्टिक और स्वादिष्ट गाजर उपलब्ध होगी। आइए गाजर की इन किस्मों की खासियत के बारे में विस्तार से जानते हैं-
पूसा वसुधा (संकर)
दिल्ली के किसानों के लिए गाजर की एक और बेहतरीन संकर किस्म पूसा वसुधा (संकर) विकसित की गई है. यह किस्म खासतौर से उष्ण वातावरण में उगाने के लिए उपयुक्त है, जिससे किसानों को मौसमी परिस्थितियों में भी उच्च पैदावार प्राप्त हो सके। इसकी औसत उपज 35 टन प्रति हेक्टेयर आंकी गई है, जो अन्य पारंपरिक किस्मों की तुलना में अधिक है और किसानों की आय बढ़ाने में सहायक साबित हो सकती है. साथ ही इस किस्म की खासियत है इसकी जड़ें कोनीकल आकार की होती हैं, जिनका रंग चमकीला लाल है. इसके मध्य भाग में स्व-रंग पाया जाता है और स्वाद में यह बेहद रसदार तथा स्वादिष्ट होती है. जड़ों की औसत लंबाई 22 से 25 सेंटीमीटर और व्यास 4 से 4.5 सेंटीमीटर तक होता है. यह आकार और गुणवत्ता बाजार में अधिक आकर्षण पैदा करती है.
पूसा प्रतीक
गाजर की किस्म पूसा प्रतीक को राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, दिल्ली, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी जैसे राज्यों में उगाने के लिए अनुमोदित किया गया है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि यह किस्म जल्दी तैयार होने वाली है और सर्दी के मौसम में बुआई के सिर्फ 85 से 90 दिन बाद जड़ें कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं. इससे किसान कम समय में अधिक उत्पादन लेकर बाजार में जल्दी पहुंच सकते हैं और बेहतर दाम प्राप्त कर सकते हैं. साथ ही पूसा प्रतीक की औसत उपज लगभग 30 टन प्रति हेक्टेयर है. इसकी जड़ें 20-22 सेंटीमीटर लंबी होती हैं, जिनका वजन 100 से 120 ग्राम तक होता है. जड़ों का आकार संकीर्ण आयताकार होता है, जिसमें कंधे चपटे से गोल और सिरे जोरदार नुकीले रहते हैं. इस किस्म की खासियत यह है कि इसकी जड़ों का बाहरी और आंतरिक रंग गहरा लाल होता है. पूसा प्रतीक किसानों को कम समय में अच्छी पैदावार और उपभोक्ताओं को पौष्टिक गाजर उपलब्ध कराने में मददगार साबित होगी।
पूसा रुधिरा
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली के किसानों के लिए पूसा रुधिरा गाजर की अत्यंत लोकप्रिय किस्म बन रही है. इसकी औसत उपज 30 टन प्रति हेक्टेयर तक आंकी गई है. जड़ें लंबी, आकर्षक और गहरे लाल रंग की होती हैं. अंदर का हिस्सा भी पूरी तरह लाल, रसदार और मीठे स्वाद वाला होता है. यही वजह है कि यह किस्म सलाद, जूस, कैन्डिंग, अचार और सब्जी बनाने के लिए बेहद उपयुक्त है और पोषण की दृष्टि से भी पूसा रुधिरा बेहद समृद्ध है. इसमें 7.6 मिग्रा./100 ग्राम कुल कैरोटिनॉइड 4.9 मिग्रा./100 ग्राम बीटा कैरोटीन और 6.7 मिग्रा./100 ग्राम लाइकोपीन मौजूद है.
किसानों के लिए लाभ
इन तीनों किस्मों की सबसे बड़ी खासियत है कि ये बाजार में आकर्षक दिखती हैं, स्वादिष्ट हैं और पोषण से भरपूर हैं. इससे किसानों को न केवल स्थानीय बाजारों में बल्कि बड़े शहरों और प्रोसेसिंग यूनिट्स में भी अच्छा दाम मिलने की संभावना रहती है.