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Updated on: 8 December, 2022 12:24 PM IST
किसान अब इस किस्म को एक बार अच्छे से रोप कर अपनी दूसरी खेती पर अच्छे से ध्यान दे सकेंगे.

भारत, चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है. भारत, विश्व का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश भी है. चीन ने चावल की फसल में बड़ी उपलब्धि हासिल की है. हाल ही में चावल की PR23 नामक किस्म विकसित की है. इस किस्म को युन्नान विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अफ्रीका के एक जंगली बारहमासी किस्म के रेगुलर वार्षिक चावल से क्रॉस-ब्रीडिंग करके विकसित किया है. इस किस्म की सबसे खास बात यह है कि इसकी खेती करने से हर साल रोपाई करने का झंझट खत्म हो जाएगा. यानि किसान अब इस किस्म को एक बार अच्छे से रोप कर अपनी दूसरी खेती पर अच्छे से ध्यान दे सकेंगे.

चावल की PR23 नामक किस्म को एक बार रोपने के बाद चार से आठ साल तक फसल ली जा सकती है. यानि एक बार लागत लगाओ और आने वाले कई सालों तक मुनाफा कमाओ और तो और मेहनत के साथ समय की भी बचत होगी. चावल की खेती कर रहे किसानों के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण जानकारी है, जिससे वे कम लागत लगाकर अच्छी फसल प्राप्त कर सकते हैं.

दोबारा बीज बोने की जरूरत नहीं- 

चीन काफी समय से ऐसा ही बीज विकसित करने पर लगा हुआ था, ताकि किसानों को बार-बार रोपाई करने के झंझट से छुटकारा मिल सके. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, PR23 की जड़े बहुत मजबूत होती हैं, ऐसे में PR23 फसल की कटाई करने के बाद अपने आप उसकी जड़ों से नए पौधे निकल आते हैं. ये नए पौधे भी पहले की तरह ही तेजी से बढ़ते हैं और समय पर ही फसल देते हैं. एक बार यदि यह फसल बो दी तो इसे अगले साल दोबारा बोने की जरूरत नहीं पड़ेगी. इस बीज से 4 से 8 साल तक फसल ली जा सकती है.

क्रॉस ब्रीडिंग से विकसित हुई PR23 प्रजाति-

युन्नान विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अफ्रीका के एक जंगली बारहमासी किस्म के रेगुलर वार्षिक चावल ओरिजा सैटिवा के क्रॉस-ब्रीडिंग द्वारा PR23 किस्म को विकसित किया है. PR23 पैदावार के मामले में भी नंबर वन है. इसकी उपज 6.8 टन प्रति हेक्टेयर है, जो नियमित सिंचित चावल के बराबर है. इसमें फर्टिलाइजर की जरूरत बहुत कम होती है.

जलवायु-

यह खरीफ की फसल है. इसकी खेती के लिए उच्च तापमान (25°C से ऊपर), उच्च आर्द्रता और अधिक वर्षा (100 सेमी से ज्यादा) की आवश्यकता होती है. इसकी खेती के लिए जलोढ़ दोमट मृदा सबसे अनुकूल है, जिसकी जल धारण क्षमता अधिक होती है.

पैदावर और लाभ-

किसानों की जेब खर्च के मामले में भी यह बेहद सस्ता है. इसे पारंपरिक चावलों के मुकाबले उगाना भी काफी सस्ता है, क्योंकि इसमें श्रम के साथ-साथ बीज और रासायनिक उर्वरकों की भी जरूरत बहुत कम होती है. पानी में वृद्धि के साथ-साथ एक टन कार्बनिक पदार्थ (प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष) भी मिट्टी में जमा हुआ होता है, जिससे चावल के पौधों को भी फायदा होता है. मुनाफे की बात करें तो, पिछले साल दक्षिणी चीन में 44,000 से अधिक किसानों ने इस किस्म की खेती की थी. इससे उन्हें बंपर उपज मिली. इससे पर्यावरण को भी काफी लाभ पहुंचा है. इसकी खेती शुरू करने से किसानों को हर सीजन में श्रम में 58 प्रतिशत और अन्य इनपुट लागतों में 49 प्रतिशत की बचत हुई.

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विशेषताएं- 

- बार-बार रोपाई करने की जरूरत नहीं होती.

- एक बार रोपाई करके आठ साल तक फसल ली जा सकती है.

- इसकी जड़ें काफी मजबूत होती हैं। इस कारण कटाई के बाद भी अपने आप जड़ों से नए पौधे निकल आते हैं.

- ये नए पौधे भी तेजी से बढ़ते हैं और समय पर फसल तैयार हो जाती है.

- इससे प्रति हेक्टेयर 6.8 टन तक उपज मिलती है.

- इसे पारंपरिक चावलों के मुकाबले उगाना भी काफी सस्ता है.

English Summary: This new variety of rice will give yield for 8 years once planted
Published on: 08 December 2022, 12:33 PM IST

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