देशभर में फिर सक्रिय हुआ मानसून, दिल्ली, हरियाणा और यूपी समेत इन राज्यों में भारी बारिश और तूफान का अलर्ट PM Kisan: किसानों के खातों में सीधे पहुंचे 3.69 लाख करोड़ रुपये, हर खेत के लाभार्थी तक पहुंचा पैसा PM Kisan Yojana: पीएम किसान की 20वीं किस्त की तारीख का ऐलान, इस दिन आएगी आपके खाते में रकम! किसानों को बड़ी राहत! अब ड्रिप और मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम पर मिलेगी 80% सब्सिडी, ऐसे उठाएं योजना का लाभ जायटॉनिक नीम: फसलों में कीट नियंत्रण का एक प्राकृतिक और टिकाऊ समाधान फसलों की नींव मजबूत करती है ग्रीष्मकालीन जुताई , जानिए कैसे? Student Credit Card Yojana 2025: इन छात्रों को मिलेगा 4 लाख रुपये तक का एजुकेशन लोन, ऐसे करें आवेदन Pusa Corn Varieties: कम समय में तैयार हो जाती हैं मक्का की ये पांच किस्में, मिलती है प्रति हेक्टेयर 126.6 क्विंटल तक पैदावार! Watermelon: तरबूज खरीदते समय अपनाएं ये देसी ट्रिक, तुरंत जान जाएंगे फल अंदर से मीठा और लाल है या नहीं Paddy Variety: धान की इस उन्नत किस्म ने जीता किसानों का भरोसा, सिर्फ 110 दिन में हो जाती है तैयार, उपज क्षमता प्रति एकड़ 32 क्विंटल तक
Updated on: 1 May, 2020 3:23 PM IST

कद्दूवर्गीय सब्जियों में तोरई का स्थान महत्वपूर्ण है. इस सब्जी कई जगह पर तोरी भी कहा जाता है. एक बेल वाली ये कद्दवर्गीय सब्जी बड़े खेतों के अलावा छोटी गृह वाटिका में भी उगाई जाती है. हमारे देश में प्रायः ग्रीष्म (जायद) और वर्षा (खरीफ) ऋतु में इसकी खेती होती है.

मुख्य तौर पर इसका उपयोग सब्जी बनाने और सूखे बीजों से तेल निकालने के लिए किया जाता है. इसमें कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहा और विटामिन ए का अच्छा स्रोत है, इसलिए सेहत के लिए भी इसे लाभकारी माना गया है. गर्मियों के दिनों में इसकी मांग सबसे अधिक होती है. चलिए आज आपको बताते हैं कि इसकी खेती में किस तरह की बातो का ख्याल रखा जाना चाहिए.

जलवायु एवं भूमि

इसकी खेती गर्म और आर्द्र जलवायु में सबसे अच्छी हो सकती है. इसके लिए तापमान का 32 से 38 डिग्री सेंटीग्रेड तक होना अच्छा है. वहीं अगर भूमि की बात करें तो इसकी खेती हर तरह की भूमि पर हो सकती है. हालांकि बलुई दोमट या दोमट मिटटी को ज्यादा उपयुक्त माना गया है.

खेत की तैयारी

तोरई फसल की अच्छी उपज के लिए सड़ी गोबर खाद की जरूरत पड़ती है. खेती से पहले इस खाद को खेतों में मिला देना चाहिए. आप चाहें तो फास्फोरस और पोटाश का भी उपयोग कर सकते हैं.  

बुवाई का समय

ग्रीष्मकालीन तोरई की बुवाई मार्च में की जाती है, जबकि वर्षाकालीन फसल को जून से जुलाई में बोया जाता है. इसकी उपज सिंचाई पर निर्भर करती है. इसलिए गर्मियों के दिनों में इसकी सिंचाई 5-6 दिनों के अन्तराल पर होनी चाहिए. हालांकि वर्षाकालीन फसल को विशेष सिंचाई की जरूरत नहीं होती है. हां, बारिश के न होने पर खेत में नमी बनाए रखने के लिए सिंचाई की जा सकती है.  

तुड़ाई और भंडारण

फलों की तुड़ाई मुलायम अवस्था में करनी चाहिए. ध्यान रहे कि फलों की तुड़ाई में देरी का मतलब है फलों में कड़े रेशों को आमंत्रण देना. इसकी तुड़ाई सप्ताह के अंतराल पर करनी चाहिए. फलों को को ताजा बनाए रखने के लिए ठण्डे छायादार स्थान का चुनना बहुत जरूरी है.

English Summary: this is the right method of Luffa acutangula farming know more about it
Published on: 01 May 2020, 03:26 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now