भारत में प्लास्टिक मल्चिंग का उपयोग पिछले आठ-दस सालों में बहुत तेजी से बढ़ा है. प्लास्टिक मल्चिंग से अनचाहे भूमि को ढककर किसानों को अधिक मुनाफा हो रहा है. वर्तमान समय में यह मल्चिंग पेपर विभिन्न रंगों एवं मोटाईयों में उपलब्ध है, ऐसे में किसानों को समझ नहीं आता कि उनकी फसलों के लिए क्या उपयुक्त है. चलिए आज इस बारे में हम आपको विस्तार से बताते हैं.
मल्चिंग की जरूरत
मल्चिंग की जरूरत इसलिए होती है कि खरपतवारों को उगने से रोका जा सके. जंगली घास, जड़, या झाड़ी आदि फसलों के आस-पास उगकर उन्हें प्रभावित करते हैं. इन्हें रोकने के लिए हजारों रूपए का खर्चा दवाईयां पर आता है, जबकि मल्चिंग से यही काम कम श्रम और किफायती तरीको से किया जा सकता है.
कैसे काम करती है मल्चिंग
जब मिट्टी पर मल्चिंग पेपर बिछाया जाता है, तो उससे भमि में नमी, वाष्पीकरण और हवा नहीं पहुंच पाती, जिसके कारण अनचाहे घास-फूस और खरपतवार नहीं उगते. प्लास्टिक वाले मल्चिंग पेपर आज के समय में कई रंगों में उपलब्ध है, जैसे- काले, नीले या पारदर्शी आदि.
पेपर पर निशान बनाएं
ध्यान रहे कि आपको जो भी खाद या उर्वरक आदि डालना है, वो पेपर बिछाने से पहले ही भूमि में डाल लें. पेपर बिछाने के बाद उसपर मार्कर से निशान लगाएं, जहां-जहां पौधों को लगाना है. पेपर में छेद करने के लिए आप जी.आई. पाईप की सहायता ले सकते हैं, जो बाजार में आसानी से मिल जाएगी.
ध्यान देने योग्य बातें
मल्चिंग पेपर को बिछाते समय न तो बहुत अधिक तनाव देना है और न ही एकदम धीला छोड़ देना है. इसे हल्का धीला रहने देना फायदेमंद है, क्योंकि गर्मी के मौसम में तापमान वृद्धि के साथ ये टाइट होने के कारण फटने लगते हैं.