देश में रबी फसल की बुवाई का सीजन शुरू होने वाला है, ऐसे में आज हम आपको रबी सीजन की ऐसी प्रमुख फसल के बारे में जानकारी देंगे जिसके अदंर है कई औषधीय गुण इसी कारण इसकी मांग देश में ही नहीं विदेशों में भी अधिक है. हम बात कर रहे हैं अलसी की. बता दें कि अलसी का इस्तेमाल विभिन्न स्वास्थ्य लाभों के लिए भी किया जाता है, जैसे पाचन में सुधार, वजन बढ़ने से रोकता है और मधुमेह जैसी समस्याओं से भी दूर रखता है. साथ ही अलसी में ओमेगा-3 फैटी एसिड, फाइबर तत्वों से भरपूर है. इसलिए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इसकी मांग बनी रहती है और अलसी की खेती में ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती यह फसल वर्षा पर ही निर्भर होती है.
अलसी की बेहतर किस्में
अलसी की किस्मों की खेती राज्यों के अनुसार की जाती हैं, लेकिन ऐसे में किसानों को अपनी जमीन की मिट्टी, जलवायु और सिंचित स्थिति का अनुमान लगा कर तभी किस्मों का चुनाव करना चाहिए-
-
उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए अलसी की किस्में में नीलम, हीरा और मुक्ता जैसी फसल मुनाफे का सौंदा है.
-
मध्य प्रदेश की जमीन, जलवायु के हिसाब से जवाहर 17, श्वेता और शुभ्रा, की खेती वहां के किसानों के लिए बहुत फायदेमंद किस्म है.
-
वहीं बिहार में बहार, टी. 397 और मुक्ता, और पंजाब-हरियाणा में एल. सी. 54, के.2 और हिमालिनी अच्छी किस्में मानी जाती हैं.
अलसी बुवाई का समय
अलसी की बुवाई रबी के मौसम में की जाती है और मध्य भारत की बात करें तो अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवंबर के मध्य तक. वहीं उत्तर की ओर नवंबर के पहले-दूसरे सप्ताह तक बुवाई की जा सकती है. साथ ही ध्यान रखें अलसी की बुवाई करने में देर बिल्कुल भी ना करें क्योंकि सर्दी में पाला फसल को खराब कर सकता है.
उत्पादन और लाभ
अलसी की उन्नत किस्मों से किसान15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं. बाजार में अलसी के बीज की कीमत 80 से 120 रुपये प्रति किलो तक रहती है. इस तरह किसान एक हेक्टेयर में 1.5 से 2 लाख तक की आय प्राप्त कर सकते हैं. यदि तेल निकालकर बेचा जाए तो लाभ और भी अधिक होता है.