आज तक आपने बहुत प्रकार के चावल के बारे में सुना होगा लेकिन ऐसे चावल के बारे में कभी नहीं सुना होगा जिसे खाने योग्य बनाने के लिए गरम पानी की जरूरत नहीं पड़ती। अब आपको लगने लगा होगा कि हम क्या उट-पटांग बातें कर रहे है लेकिन यह सच है की हम चावल की ही बात कर रहे हैं. इस खास किस्म के चावल को कमल कहा जाता है. इस समय हमारे देश में इसकी खेती बंगाल के किसान कर रहे है. इस चावल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें जैसे ही सामान्य पानी डाला जाता है. यह स्वत: ही कुछ देर के बाद पक कर भात के रूप में तैयार हो जाता है.
इस विशेष प्रकार के चावल के बारे में सहायक कृषि निदेशक अनुपम पाल कहते हैं की इसकी इसकी खेती ज्यादातर ब्रह्मपुत्र नदी के तटीय क्षेत्र असम के माजूली द्वीप पर होती है. कुछ किसान इसे बंगाल से लेकर आये और इसकी यहाँ पर बुआई की गई जिससे यहाँ के किसानों को अच्छी उपज मिली। अब तो पश्चिम बंगाल सरकार ने इसके व्यवसायिक उत्पादन को बढ़ाने के लिए घोषणा भी कर दी है.
इस विशेष प्रकार के चावल की खेती के लिए सिर्फ जैविक खाद का इस्तेमाल किया जाता है. अभी तो इसे केवल नदिया जिले में प्रयोग किया गया है जिसके परिणाम भी बेहतर मिले है.
इस चावल के खेती करने वाले किसानों का कहना है कि इस चावल का प्रयोग 100 साल पहले सैनिक करते थे क्योंकि जब युद्ध होता था तो खाना पकाने में सैनिकों को दिक़्क़त होती थी इसलिए सैनिक इसे ठंडे पानी में पकाते थे और इस चावल की एक खास विशेषता यह है कि इसमें अन्य चावल की अपेक्षा कार्बोहाइड्रेट, पेप्टिन जैसे पौष्टिक तत्व प्रचूर मात्रा में मिलते हैं .कमल चावल की खेती फायदेमंद साबित हो रही है. बाजार में इसकी कीमत करीब 60 से 80 रुपये किलो तक है. किसान अपने घर की जरूरत के मुताबिक इसकी खेती करते हैं.