औषधीय पौधा सिंदूरी (Sinduri Plant) का वानस्पतिक नाम बिक्सा ओरेलाना व हिंदी नाम लटकन है. इसे हम अंग्रेजी में लिपस्टिक ट्री (Lipstick Tree)भी कहते हैं. इसकी ऊंचाई 2 से 6 मीटर तक होती है. इसकी उत्पत्ति स्थान उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका व मैक्सिको एवं कैरेबियन है.
इसकी अर्क का उपयोग (Use of its extracts)
इसके अर्क का उपयोग अमेरिका में भोज्य पदार्थों को रंगने में किया जाता है. मुख्य रूप से इसका उपयोग सौंदर्य प्रसाधन एवं औषधि के रूप में किया जाता है. इसका उपयोग मुख्य रूप से आइसक्रीम एवं मक्खन आदि में किया जाता है. सौंदर्य प्रसाधनों में लिपस्टिक बनाने में, बाल रंगने में, नेल पॉलिश, साबुन एवं पेंट में इसका उपयोग किया जाता है. आदिवासी इसे शरीर एवं चेहरे पर लगाते हैं. 16 वीं शताब्दी में इसका लाल स्याही के रूप में पेंटिंग में उपयोग होता था. इसके वृक्ष के विभिन्न भागों का उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में होता है. इसके बीजों को अन्य मसालों के साथ पीसकर पेस्ट व पाउडर भी बनाया जाता है.
लेटिन अमेरिका में बीजों को तेल में गर्म कर इसके अर्क का उपयोग प्रोसेस्ड फूड जैसे- चीज, बटर, सूप, सॉस बनाने में किया जाता है. ब्राज़ील एवं मैक्सिको इसके बीजों को अन्य मसालों के साथ पीस कर उपयोग करते हैं. सुहागिनों का सौभाग्य बढ़ाने वाला सिंदूर इसकी फली से निकलता है. मान्यता है कि वन प्रवास के दौरान माता सीता इसी फल के पराग को अपनी मांग में लगाती थी.महाबली हनुमान इसी फल को अपने शरीर में लगाते थे. 20 से 25 फुट ऊंचे इस वृक्ष में फली गुच्छ रूप में लगती है. शरद ऋतु में वृक्ष फली से लद जाता है. इसके बीजों को बिना कुछ मिलाए विशुद्ध सिंदूर रोरी कुमकुम की तरह प्रयोग किया जाता है. यद्यपि यह पौधा हिमालय बेल्ट में होता है लेकिन इसे मैदानी क्षेत्रों में भी उगाया जाता है. लगाने के तीन चार साल बाद इसमें फल आने लगते हैं.
त्वचा रोग के उपचार में इसका प्रमुख रूप से प्रयोग किया जाता है. इससे प्राप्त चंदन मानसिक शांति प्रदान करता है. पीलिया में पत्तियों का क्वाथ बनाया जाता है. पत्तियों को सफेद दाग पर घिसने से रोग ठीक हो जाता है. बिहार के आदिवासी इसका उपयोग सामान्य चर्म रोगों में, कटने, जलने एवं लयूकोडरमा में करते हैं. इसे बीज एवं कलम दोनों से लगा सकते हैं. इसके जनवरी-फरवरी में फूल एवं मार्च में फल आते हैं.
महिलाएं इसकी पूजा करती हैं. बीजों को घिसकर सफेद दाग पर घिसने से रोग ठीक हो जाता है. इसके बीजों को पीसकर सिंदूर बनाया जाता है.
लेखक का नाम – राजेश कुमार मिश्रा
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