स्थानीय भाषाओं में मीठी ज्वार को गोड़ ज्वारी (मराठी), मिष्ठी ज्वार (बंगाली), जोला (कन्नड़), चोलम (मलयालम, तमिल), जोनालू (तेलगू), आदि भी कहा जाता है. मीठी ज्वार का उद्गम स्थल सूडान, इथोपिया और पश्चिम अफ्रीका को माना गया है. मीठी ज्वार के उत्पादन में संयुक्त राज्य अमेरिका की भूमिका अग्रणी है. मीठी ज्वार के उत्पादन के लिए 55-75 सेमी वर्षा, 27-35 C तापमान एवं गहरी काली मिट्टी (वर्टिसोल) को उत्तम माना जाता है. यह फसल उच्च तापमान एवं शुष्क जलवायु और उपेक्षाकृत कम वर्षा में भी अच्छा उत्पादन देती है. गन्ने की तुलना में कम पानी और आदान आवश्यकता वाली यह फसल एक संभावनाशील वैकल्पिक है, जिसका उपयोग चारे के साथ मनुष्य के इस्तेमाल के लिए भी किया जाता है.
मीठी ज्वार के गुण
- अनुकूल जलवायु होने पर उच्च बायोमास उत्पादकता 45-80 टन प्रति हेक्टेयर एवं विपरीत परिस्तिथियों में भी अधिक उत्पादन देती है.
- मीठी ज्वार को इसके तापमान- असंवेदनशीलता के कारण साल भर उगाया जा सकता है.
- इसके डंठल में 10-15 प्रतिशत शर्करा होती है जिसमें उच्च ब्रिक्स (घुलनशील शर्करा) (16-20 प्रतिशत) पाया जाता है.
- मीठी ज्वार से प्राप्त मोलासिस की सहायता से एथेनॉल 4500 ली/हे० भी प्राप्त किया जाता है.
आवश्यक जलवायु
मीठी ज्वार उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले प्रमुख फसलों में से एक है. यह फसल प्रतिकूल वातावरण जैसे उच्च तापमान, शुष्क जलवायु और तुलनात्मक रूप से कम वर्षा वाले स्थानों में भी उगाया जा सकता. इसके उत्पादन के लिए मध्यम से गहरी काली मिट्टी (वर्टिसोल) या गहरी-लाल-दोमट मिट्टी एवं कम से कम 50 सेमी जल धारण क्षमता मिटटी सबसे उपयुक्त होती है. मीठे ज्वार को 550-750 मिमी के वार्षिक वर्षा वाले शुष्क क्षेत्रों में उगाया जा सकता है. इस फसल का उत्पादन करने के लिए सबसे अच्छे क्षेत्र मध्य और दक्षिण भारत, उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल के उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र हैं इसे अच्छे जल निकास वाली मिट्टी जैसे रेतीली दोमट मिट्टी में उगाया जा सकता है.
मिट्टी
मध्यम से गहरी काली मिट्टी (वर्टिसोल) या गहरी-लाल-दोमट मिट्टी (मिट्टी की गहराई- 0.75 मीटर गहरी) जो कम से कम 500 मिमी. धारण करती है.
नवीनतम किस्में
मीठे ज्वार की किस्मों और संकरों में अत्यधिक उच्च डंठल उपज देने की क्षमता होती है. एसएसवी 96, जीएसएसवी 148, एसआर 350-3, एसएसवी 74, एचईएस 13, एचईएस 4, एसएसवी 119 और एसएसवी 12611, गन्ना चीनी के लिए जीएसएसवी 148, हरी गन्ना उपज, रस उपज, रस निष्कर्षण के लिए एनएसएस 104 और एचईएस 4, आरएसएसवी 48 बेहतर शराब उपज के लिए. खरीफ और गर्मियों में उगाई जाने वाली फसलों की तुलना में रबी के दौरान रात्रि के कम तापमान और छोटे दिनों के कारण कम चीनी प्रतिशत के साथ उपज 30-35 प्रतिशत होगी.
भूमि की तैयारी
मिट्टी की अच्छी जुताई के लिए दो जुताई के बाद समतल कर देना आवश्यक है.
बुवाई का समय
बुवाई मानसून के शुरू होते ही प्रारंभ कर देना चाहिए. जून के दूसरे सप्ताह से जुलाई प्रथम सप्ताह तक आवश्यक रूप से बुवाई कर देना चाहिए. समान अंकुरण सुनिश्चित करने के लिए कम से कम टॉप 30 सेमी मिट्टी की परत वर्षा जल से चार्ज हो गई हो. मिट्टी की नमी फसल बुवाई के समय खेत की क्षमता के बराबर या उससे अधिक होनी चाहिए.
बीज दर
8 किग्रा/हेक्टेयर या 3 किग्रा/एकड़ की सिफारिश की जाती है.
उर्वरक प्रबंधन
80 किग्रा नत्रजन, 40 किग्रा फास्फोरस, और 40 किग्रा पोटाश की सिफारिश की जाती है. लेकिन बुवाई के समय 50 प्रतिशत नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश डालें. और फिर आधार खुराक के रूप में शेष 50 प्रतिशत नत्रजन को साइड-ड्रेस के रूप में दो समान किश्तों में डाल देना चाहिए.
फसल की दूरी
पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 15 सेमी रखना चाहिए.
खरपतवार प्रबंधन
नमी वाली स्थिति में बुवाई के 48 घंटे के भीतर एट्राजिन 1 किग्रा सक्रिय तत्व/हेक्टेयर की दर से बुवाई से पहले छिडक़ाव करें. खरपतवार की वृद्धि को रोकने के लिए फसल की 35-40 दिन की अवस्था तक दो बार यांत्रिक निराई की सिफारिश की जाती है.
निराई-गुड़ाई
बुवाई के 20 से 35 दिन के बीच एक या दो बार ब्लेड हैरो या कल्टीवेटर से अंतर-जुताई करें. न केवल खरपतवार की वृद्धि रुकेगी बल्कि सतही मिट्टी की गीली घास मल्च के रूप में मिट्टी की नमी का संरक्षण भी करेगी.
सिंचाई/वर्षा जल प्रबंधन
आमतौर पर 550-750 मिमी वर्षा वाले क्षेत्रों में फसल को वर्षा आधारित स्थिति में उगाया जा सकता है. मानसून के देर से आने और इसके अनियमित वितरण की स्थिति में फसल बोयें और तुरंत सिंचाई कर देना चाहिए. यदि 20 दिनों से अधिक सूखा जारी रहता है, तो फसल की सिंचाई कर देना चाहिए. अतिरिक्त सिंचाई के पानी को बाहर निकाल दें या जल जमाव से बचने के लिए खेत से वर्षा का पानी निकाल देना चाहिए. मिट्टी के प्रकार और वर्षा के वितरण के आधार पर तय करें कि मीठे ज्वार की सिंचाई कब करनी चाहिए.
फसल कटाई
पौधों में फूल आने के लगभग 40 दिनों के बाद, यानी फसल की परिपक्वता पर कटाई करना चाहिए और उसके बाद सुखा लेते हैं. डंठल काट लें हंसिए का उपयोग करके जमीनी स्तर पर ले जाएं और खोल सहित पत्तियों को हटा दें. काटे हुए डंठल के 10-15 किलो के छोटे बंडलों में इकट्ठा करें और कटाई के 24 घंटे के भीतर मिलों तक पहुंचा देना चाहिए.
मीठे ज्वार से अन्य उत्पाद
ज्वार की उच्च बायोमास लाइनों की बायो एथेनॉल में परिवर्तनीयता के उपयोग के रूप में विशिष्ट है. जैव ईंधन उत्पादन के लिए ज्वार बायोमास से खाद्य संकट नहीं होगा. मीठा और चारा ज्वार की उच्च उपज क्षमता यानी 20-40 टन/हेक्टेयर तक शुष्क बायोमास और 100 टन/हेक्टेयर से अधिक ताजा बायोमास है. ये सेल्युलोज और हेमिकेलुलोज का अच्छा स्रोत है. कुछ मीठे ज्वार की किस्में लगभग 78 प्रतिशत रस देती हैं. प्लांट बायोमास और इसमें 15 से 23 प्रतिशत तक घुलनशील किण्वित शर्करा होती है (जबकि गन्ने में 14-16 प्रतिशत). चीनी मुख्य रूप से सुक्रोज (70-80 प्रतिशत), ग्लूकोज से बनी होती है. बड़े पैमाने पर उपलब्ध मीठी ज्वार की खेती तब हो सकती है जब उच्च चीनी उपज वाली उन्नत किस्में बहुतायात में हों.
लेखक:
अलीमुल इस्लाम
वि० व० वि०, कृषि प्रसार
कृषि विज्ञान केंद्र, किशनगंज, बिहार
बिहार कृषि विश्वविद्यालय, साबोर, भागलपुर, बिहार
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वारिस हबीब
अनुसंधान सहयोगी
कृषि विज्ञान केंद्र, किशनगंज, बिहार
बिहार कृषि विश्वविद्यालय, साबोर, भागलपुर, बिहार