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Updated on: 29 April, 2020 8:51 AM IST
Sugarcane Cultivation

किसानों का सदा यही प्रयास रहता है कि वह किसी तरह खाने भर के लिए कुछ गेहूं अपने खेत में पैदा कर लें. इसके अलावा पशुओं के लिए सूखे चारे की आपूर्ति भी गेहूं के भूसे के अलावा किसी अन्य स्रोत से संभव नहीं होती इसलिए गेहूं की फसल भी आवश्यकतानुसार की जाती हैं.

इसी क्रम में वह गन्ने की पहली या दूसरी पीढ़ी काटने के बाद दिसंबर या जनवरी में जो होता है और गेहूं काटने के बाद मई के मध्य में या कभी-कभी जून के पहले सप्ताह में गन्ना होता है किसी से संबंधित सभी संस्थाएं पिछले करीब 30 सालों से किसानों को यह राय देती आ रही हैं कि यह विधि गन्ने की पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है पर इसका किसानों पर कुछ असर नहीं होता है और वह अपने अनुसार ही गन्ने की खेती करते चले आ रहे हैं

गन्ना गेहूं फसल चक्र के कारण गन्ने की पैदावार में कमी हो रही है अगर पिछले 40 वर्षों के आंकड़े देखें तो यह तथ्य स्पष्ट सामने आएगा की प्लांट केन की उत्पादकता ज्यादा होती थी और अब प्रति इकाई क्षेत्र पर इसकी उत्पादकता कम होने लगी है और पीढ़ी की अधिक है इसका एकमात्र कारण गेहूं के बाद गन्ना बोना है

गन्ना गर्म एवं आद्र जलवायु की फसल है बुवाई के बाद यदि सूखी गर्मी का मौसम रहे इसे पर्याप्त मिल जाता है तो गन्ने में उचित संख्या में कल ले निकल आते हैं जो वर्षा आरंभ होने पर पोषक तत्वों का प्रयोग कर लंबाई में बढ़ते हैं तथा गन्ने की पूरी पैदावार मिलने में सहायता करते हैं इसी कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने की बुवाई मार्च में समाप्त कर लेने की संस्तुति की जाती है ताकि मई में गन्ने में कल्ले निकलने के लिए उचित सूखी गर्मी समय से मिल जाए और उसमें परिवार अच्छी हो सके.

जब गेहूं काटने के बाद गन्ना मई या प्रारंभ जून में बोया जाता है तो गन्ने के जमाव के तुरंत बाद बरसात शुरू हो जाती है फल स्वरुप गन्ने में कर लेना बंद कर एक-एक गन्ना बनना प्रारंभ हो जाता है और पृथ्वी का क्षेत्र गन्ने की संख्या एक तिहाई रह जाती है जिसके कारण प्लांट कैन की पैदावार 200 से 250 कुंतल प्रति हेक्टेयर से ज्यादा लेना संभव नहीं हो पाता अतः गन्ने को समयानुसार काटने के बाद विधि लेने पर उस की पैदावार प्लांट can से अधिक होने की संभावना रहती है

कैसे हो समस्या का निदान

पिछले चार दशकों से वैज्ञानिक इस प्रयास में लगे हैं कि गन्ने की कोई ऐसी प्रजाति विकसित हो सके जो मई में लगने के बाद तुरंत कल्ले पैदा करने में सक्षम हो तथा किसी अन्य तकनीकी से कल्लू की संख्या बढ़ाई जा सके यद्यपि इस प्रयास में कोई आशातीत सफलता प्राप्त नहीं हो सकी है

वैसे गन्ने की 238 प्रजाति अच्छा उत्पादन दे रही है लेकिन यदि इस को समय से नहीं बोला जाता तो इसके उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. परीक्षणों में यह देखा गया है कि दिसंबर और जनवरी में गन्ना गेहूं एक साथ बोया जाए तो गन्ने की पैदावार मई में बोई जाने वाले गन्ने से लगभग 2 गुना होगी और गेहूं की पैदावार में कोई विशेष कमी नहीं आती है इसके लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान देना अति आवश्यक होता है.

गन्ने की पेड़ी काटने के बाद खेत को गेहूं बोने लोग खूब अच्छी तरह तैयार करके गेहूं के अनुरूप उर्वरक प्रयोग करें गन्ने के लिए अभी उर्वरक डालने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि गणना और उर्वरक का उपयोग गेहूं काटने के बाद ही कर पाएगा गन्ने की बुवाई संतति के अनुरूप रोग की ट्रॉली प्रश्नों का प्रयोग कर 75 से 90 सेंटीमीटर की दूरी पर  लाइनों में करना चाहिए इसके बाद गेहूं की दो से तीन लाइन क्रम सा 75 से 90 सेंटीमीटर की गन्ने की दो लाइनों के बीच बोई जा सकती हैं

गेहूं की प्रजाति का चयन बुवाई के समय के अनुसार करें जैसे दिसंबर जनवरी के लिए जो प्रजाति क्षेत्र के अनुसार रिकमेंड की गई है और अपने जिले में स्थित कृषि विज्ञान केंद्रों के वैज्ञानिकों से मिलने के बाद उस क्षेत्र के लिए अनुकूल प्रजातियां हो उनकी हुई दवाई समय पर करनी चाहिए चुकी शरद ऋतु में गन्ने के जमाव ठीक नहीं होता.

इसलिए बुवाई 1.5 से 2.0 महीने बाद गन्ने का जमाव आरंभ होगा और मार्च के तीसरे सप्ताह तक पूरा हो जाएगा किसानों को गन्ना बोने के बाद निराश नहीं होना चाहिए यदि उन्होंने कीटनाशक और फफूंदी नाशक दवाओं का प्रयोग संतों की मात्रा में किया है तो जवाब अवश्य होगा

अप्रैल के तीसरे या अंतिम सप्ताह में गेहूं काटते समय ध्यान रखें कि गेहूं को जमीन से बराबर काटा जाए जिससे उसके अवशेष कम से कम रहे गेहूं काटने के बाद यथाशीघ्र सिंचाई कर दें सिंचाई करके दो तिहाई नत्रजन का प्रयोग करें और गन्ने की बुराई कर दें शेष नत्रजन एक से डेढ़ माह बाद फसल में डालना चाहिए गेहूं की कटाई के बाद गन्ने में दो-तिहाई नत्रजन देने से वह पीला नहीं पड़ेगा कल्ले अधिक निकलेंगे और बड़वा रखी होगी जिससे निश्चित रूप से पैदावार भी अच्छी होगी इस विधि से लघु एवं सीमांत किसानों को काफी फायदा होता है.

जिन किसानों को कंबाइन के द्वारा गेहूं की कटाई करनी होती है या उनका क्षेत्रफल बहुत अधिक होता है वहां पर से फसली खेती करने में समस्या आती है इसलिए जो किसान छोटे स्तर पर और कमांड का प्रयोग नहीं करते हाथ से कढ़ाई करते हैं तो वहां पर इस तकनीक को आसानी से अपनाया जा सकता है

इस विधि से गन्ने की पैदावार लगभग डेढ़ से दोगुना तक बढ़ जाती है जो ऊपर छत पर निर्भर करती है किसानों को चाहिए कि वे इस साइकिल से इस तरीके से प्रोग्राम का आधार पर थोड़े क्षेत्रफल में अपने खेती कर कर देखें.

यदि फायदा होता है तो वह आगे का विस्तार करें आशातीत सफलता मिलने पर इसे अपने पूरे क्षेत्र में पूर्व कर सकते हैं और पड़ोसी किसानों को भी इसी विधि को अपनाने के लिए प्रेरणा दे सकते हैं लेकिन सबसे पहले अपने थोड़े से क्षेत्रफल में इस तकनीक को अपनाकर इसका लाभ जरूर देख लें इसके बाद अपने आसपास के क्षेत्रों में इस तकनीक का प्रचार प्रसार करें निश्चित रूप से इस प्रकार से गन्ने और गेहूं के साथ शह फसली खेती करने पर किसानों को लाभ हुआ

डॉ. आर एस सेंगर, प्रोफेसर

सरदार वल्लभ भाई पटेल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, मेरठ

ईमेल आईडी: sengarbiotech7@gmail.com

English Summary: Sugarcane cultivation with wheat
Published on: 29 April 2020, 08:54 AM IST

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