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Updated on: 2 February, 2024 11:59 AM IST
गन्ना की खेती में उर्वरकों व खाद का उपयोग

Sugarcane Cultivation: गन्ना (सैकरम ओफिसिनेरम) की खेती मुख्य रूप से इसके रस के लिए खेती की जाती है जिसमें से चीनी (शर्करा) संसाधित की जाती है. विश्व में गन्ना/ Sugarcane उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है. भारत में विश्व के लगभग 17 प्रतिशत गन्ना का उत्पादन/ Sugarcane Production किया जाता है, इसके उत्पादन में देश का लगभग 50 प्रतिशत गन्ना उत्पादन उत्तर प्रदेश राज्य का क्षेत्र है, इसके बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात, बिहार, हरियाणा और पंजाब हैं. औसतन 70-80 टन गन्ना प्रति हैक्टर उपज देने वाली फसल भूमि से लगभग 250 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 45 कि.ग्रा. फास्फोरस, 120 कि.ग्रा. पोटाश, 30 कि.ग्रा. गंधक, 40 कि.ग्रा. कैल्शियम, 3.4 कि.ग्रा. लोहा, 0.6 कि.ग्रा. जस्ता, 1.2 कि.ग्रा. मैगनीज, 0.2 कि.ग्रा. कॉपर का दोहन करती है.

अतः मृदा की उर्वरा क्षमता बनाये रखते हुए अनवरत समय तक अच्छी उपज लेने के लिए इन पोषक तत्वों की उपरोक्त मात्राओं की समतुल्य मात्रा विभिन्न माध्यमों से खेत में निरन्तर आपूर्ति करते रहना चाहिए. यद्यपि मृदा में उपलब्ध पोषक तत्व, पौधों द्वारा उपयोग किये जाने के अतिरिक्त विभिन्न माध्यमों/कारकों द्वारा भी क्षरित होते रहते हैं. इसलिए फसल के द्वारा उपयोग की गयी मात्रा से कुछ अधिक मात्रा की आपूर्ति करना श्रेस्यकर होता है. पौधों की वृद्धि एवं विकास में प्रत्येक पोषक तत्व के निश्चित कार्य हैं तथा इनकी कमी हो जाने पर लक्षण भी अलग-अलग प्रकट होते है. इन लक्षणों की जानकारी से फसल में उचित समय पर सही पोषक तत्व की आपूर्ति करके उपज हानि से बचा जा सकता है.

गन्ना उत्पादन में उर्वरकों एवं खादों का महत्व

गन्ना घासकुल का पौधा है अतः यह दलहनी फसलों के विपरीत वातावरण की नाइट्रोजन को उपयोग करने में अक्षम है. इसकी फसल एक बार बुआई कर देने के बाद कम से कम दो वर्ष तक (बावक तथा एक पेडी) खेत में रहती है. इस फसल का संपूर्ण जैव उत्पादन अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक होता है, साथ ही गन्ने के मुख्य अवयव (सुक्रोज) की गुणवत्ता में नाइट्रोजन धारक उर्वरकों को उचित समय पर प्रयोग का विशेष महत्व है. नाइट्रोजन उर्वरकों को बढवार की अवस्था के बाद डालने पर गन्ने में प्रहसन शर्करा की मात्रा बढ जाती है तथा इसकी अपनी उपयोग क्षमता में कमी आती है. सभी आवश्यक पोषक तत्वों में से किसी भी एक तत्व के अभाव में पौधों की वृद्धि सीमित रह जाती है तथा फसलोत्पादन कम होता है. बाहर स्रोतों से बिना प्रतिपूर्ति किये हुए मृदायें इन सभी पोषक तत्वों की सदैव पर्याप्त उपलब्धता बनाये रखने में असमर्थ होती है इसलिए जिन तत्वों की कमी हो उन्हें बाइस स्रोतों जैसे खाद एवं उर्वरक के रूप में डालने की आवश्यकता पड़ती है.

उर्वरक एवं खादों के अनुप्रयोग का उद्देश्य फसलों की समुचित वृद्धि हेतु पर्याप्त पोषण प्रदान करने के साथ-साथ मृदा उर्वरता बनाए रखना भी है. यद्यपि सघन कृषि प्रणाली के इस युग में पोषक तत्वों की आवश्यकताओं के दृष्टिकोण से केवल जैविक खादों द्वारा इनकी पर्याप्त आपूर्ति कर पाना अत्यंत कठिन है इसलिए पोषक तत्वों का समेकित प्रबंधन आवश्यक हो गया है. इस प्रकार के प्रबंधन की मूल धारणा यह है कि फसलों की उपज वृद्धि के साथ-साथ मृदा का मौलिक स्वरूप बिगड़ने न पाये. इसमें हरी खाद, कम्पोस्ट, गोबर की खाद/ Cow Dung Manure तथा विभिन्न पोषक तत्वों के लिए अलग-अलग उपलब्ध उर्वरकों के लाभप्रद समन्वय की योजना तैयार कर ली जाती है.

कार्बनिक खादें/ Organic fertilizers:

विभिन्न खादों को सदैव खेत में फसल बोने से पूर्व ही डालते हैं. हरी खाद हमेशा फसल बोने से डेढ माह पूर्व खेत में दबा देनी चाहिए . कम्पोस्ट व गोबर की खाद को भी फसल बोने से एक माह पूर्व ही खेत में डालते है. विभिन्न प्रकार की खलियां फसल बोने से 15 दिन पहले खेत में डालना लाभदायक होता है .इन खादों को खेत में इसलिए पहले डालते हैं कि फसल के अंकुरण के समय तक इन खादों में उपस्थित पोषक तत्व उपलब्ध अवस्था में परिवर्तित हो जाए अर्थात् इनका विघटन इस समय तक पूरा हो जाए. कार्बनिक खादें जैसे गोबर की खाद, कम्पोस्ट आदि खेत में छिटकवां विधि से दी जाती है . खाद को खेत में बिखेरने के बाद अच्छी प्रकार मिला देना चाहिए.

नाइट्रोजन उर्वरकों का प्रयोग/ Use of Nitrogen Fertilizers:

नाइट्रोजन उर्वरकों की 1/3 मात्रा बुआई के समय कुंड या नाली में गन्ना बीज रखने से पहले डाली जाती है तथा, दूसरी 1/3 मात्रा अंकुर फूटते समय व तीसरी 1/3 मात्रा वृद्धि के समय खेत में टाप ड्रेसिंग विधि से पंक्ति के पास देते है. गन्ने में बढवार एवं किल्ले फूटते समय उर्वरकों की अधिक आवश्यकता होती है. इस अवस्था में सभी पोषक तत्व खेत में उर्वरकों के रूप में पहुँच जाने चाहिए. इस अवधि के बाद नाइट्रोजन देने से गन्ने की फसल गिर सकती है व उसकी गुणवता पर भी विपरीत प्रभाव पडता है. नाइट्रोजन उर्वरकों का प्रयोग फसल की बुआई से पहले या बुआई के समय ही छिटकवां विधि से किया जाना चाहिए.

फास्फोरस उर्वरक/ Phosphorus Fertilizer:

गन्ने में फास्फोरस युक्त उर्वरकों को फसल की बुआई के समय कुंडों में गन्ने के टुकड़ों के नीचे गहराई पर डाल दिया जाता है. चूकि फास्फोरस का संचरण, अनुप्रयोग किये जाने वाले स्थान से बहुत धीरे-धीरे होता है अतः इसका प्रयोग ऐसे स्थान पर अथवा पौधों की जडों के इतने पास करना आवश्यक है जहां से पौधे आसानी से ग्रहण कर सकें . फास्फोरस उर्वरकों का अनुप्रयोग स्थानिक स्थापन विधि से करते है.

पोटाश उर्वरक/ Potash Fertilizer:

पोटाशयुक्त उर्वरकों को बुआई के समय अथवा इससे पूर्व खेत की तैयारी के समय अकेले अथवा अन्य खादों के साथ मिलाकर दे सकते हैं . यह गन्ने की फसल के लिये विशेष रूप से उपयोगी पाया गया है . पोटाश, मृदा में कम गतिशील होते है और मृदा में इनका स्थिरीकरण भी हो जाता है इसलिए पोटाश उर्वरकों को जड क्षेत्र के समीप ही प्रयोग करना चाहिए.

खादों की उपयोग विधि एवं उचित समय एवं मिलने वाले पोषक तत्वों की जानकारी आवश्यक है, जो कि निम्नवत है:

कम्पोस्ट/ Compost:

  1. पौधों के अवशेष पदार्थों, पशुओं का बचा हुआ चारा तथा विघटनशील कूड़ा-करकट आदि पदार्थों का जीवाणु तथा फफूँद द्वारा विशेष दशाओं में विघटन के उपरान्त तैयार पदार्थ कम्पोस्ट कहलाता है. इसमें सडी हुई खाद बनती है जो गोबर की खाद से मिलती-जुलती होती है .

  2. कम्पोस्ट के प्रयोग से मृदा की भौतिक संरचना में सुधार के बढ जाती है विघटन के फलस्वरूप उत्सर्जित कार्बन डाईआक्साइड पानी में घुलकर कार्बोनिक अम्ल बनाती है जो कि मृदा के अघुलनशील तत्वों को घुलनशील बनाकर पौधों को सुलभ कराने में सहायक है.

  3. हालाँकि इसमें पोषक तत्व मात्रात्मक रूप में कम होते है परंतु वे धीरे-धीरे काफी लंबे समय तक प्राप्त होते रहते हैं. अमोनीकरण, नाइट्रीकरण तथा नाइट्रोजन स्थिरीकरण के अतिरिक्त पादप हारमोन्स तथा विटामिन्स के संश्लेषण में भी यह वृद्धि कारक है.

हरी खाद/ Green Manure:

दाल वाली फसलों के हरे पौधों को भूमि में जुताई करके मिलाने के फलस्वरूप इनकी जड़ों व ऊपरी भाग के सडने के पश्चात भूमि को पोषक तत्व प्रदान करने की क्रिया को हरी खाद देना कहते है . ये फसलें सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा विच्छेदित होकर ह्यूमस में भी वृद्धि करती है .

हरी खाद के प्रयोग से मृदा के भौतिक गुण जैसे-मृदा संरचना, जल धारण क्षमता, मृदा घनत्व, वायु संचार आदि में सुधार होता है तथा कार्बनिक पदार्थ व नाइट्रोजन की मात्रा में वृद्धि होती है . गहरी जड़ वाली हरी खाद की फसलें मृदा की निचली पर्तों से पोषक तत्वों का शोषण करती हैं तथा विच्छेदित होकर इन पोषक तत्वों को मृदा की ऊपरी सतह में छोड देती हैं . परंतु कई बार सघन कृषि प्रणाली में कृषक इस प्रक्रिया को अपनाने की जगह रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से भरपाई की बात सोचते हैं जो कि उचित नहीं है. ऐसी स्थिति में दलहनी फसलों की द्विउद्देशीय प्रजातियों की अंतःफसल के रूप में बुआई की जा सकती है.

बसंतकालीन गन्ने के साथ का मूंग (के. 851) तथा लोबिया (पूसा कोमल) की अन्तःफसली खेती में हरी फलिया तोडने के पश्चात् पौधों को खेत में पलट देने से लगभग 30-35 कि.ग्रा./हैक्टर नाइट्रोजन प्राप्त हो जाती है . इसी प्रकार शरद में गन्ने की पंक्तियों के मध्य मसूर की दो पंक्तियाँ बोकर नाइट्रोजन स्थिरीकरण द्वारा मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा बढायी जा सकती है यह अंतःफसलों की उपज के साथ-साथ अतिरिक्त लाभ है .

हरी खाद देने की दो विधियां हैं:

(i)  खेतों में ही हरी खाद की फसल उपजा कर उसी खेत में मिट्टी पलट हल से जोतकर दबा दिया जाता है.

(ii)  किसी अन्य खेत में उगाई गई फसल को काटकर वांछित खेतों में फैलाने के पश्चात् उसे मिट्टी में दबा दिया जाता है . ऐसा विशेष परिस्थितियों में किया जाता है जब सघन कृषि प्रणाली के कारण हरी खाद वाली फसलों को उगाकर उन्हें पलटने का समय कम होता है.

विवेक कुमार त्रिवेदी1, गम्भीर सिंह1, देवाषीष गोलुई2
नर्चर. फार्म, बंगलौर
भा.कृ.अ.प. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली 110012

English Summary: sugarcane cultivation used in Amount of fertilizers and manure ganne ki kheti dalhani faslon Indian farmer Organic fertilizers
Published on: 02 February 2024, 12:05 PM IST

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