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Updated on: 9 March, 2020 12:50 PM IST
भारत में विश्व के लगभग 17 प्रतिशत गन्ना का उत्पादन किया जाता है

गन्ना (सैकरम ओफिसिनेरम) की खेती मुख्य रूप से इसके रस के लिए खेती की जाती है जिसमें से चीनी (शर्करा) संसाधित की जाती है. विश्व में गन्ना उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है. भारत में विश्व के लगभग 17 प्रतिशत गन्ना का उत्पादन किया जाता है, इसके उत्पादन में देश का लगभग 50 प्रतिशत गन्ना उत्पादन  उत्तर प्रदेश राज्य का क्षेत्र है, इसके बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात, बिहार, हरियाणा और पंजाब हैं.

गन्ने की खेती के लिए भूमि का चुनाव एवं तैयारी (Land selection and preparation for sugarcane cultivation)

गन्ने के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट मृदा वाली भूमि सर्वोत्तम होती है. ग्रीष्म ऋतु में मिट्टी पलटने वाले हल से दो बार आड़ी व खड़ी जुताई करें. अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह में बखर से जुताई कर मिट्टी भुरभुरी कर लें तथा पाटा चलाकर भूमि को समतल कर लें. रिजर की सहायता से 3 फुट की दूरी पर नालियां बना लें. परंतु वसंत ऋतु ( फरवरी - मार्च) में बोये जाने वाले गन्ने के लिए नालियों का अंतर 2 फुट रखें. अंतिम बखरनी के समय भूमि में लिंडेन धूल (2%) 10 किलो प्रति एकड़ से उपचारित अवश्य करें.

गन्ने की उन्नत किस्में  (Advanced varieties of sugarcane)   

गन्ने की उन्नतशील प्रजातियां जैसे- को॰ 88230, 8436, 95255, 96268, 88296, 90269, 92263, 94257, 94270, 95222, 97264 को॰ 92423, 95422 व यू०पी० 39 की अच्छी पेड़ी फसल देने वाली किस्मों का उपचारित बीज लगाये.

गन्ने की बुवाई का समय (Sugarcane sowing time)

गन्ने के अच्छे जमाव के लिये 25-32 डिग्री से॰ तापक्रम उपयुक्त है. गन्ने की अधिक पैदावार लेने के लिए सर्वोत्तम समय अक्टूबर – नवम्बर माह है. बसंत कालीन गन्ना फरवरी-मार्च माह में लगाना चाहिए.  

गन्ने का बीज-शोधन (Sugarcane Seeding)

गन्ने के 1/3 ऊपरी भाग का जमाव अपेक्षाकृत अच्छा होता है तथा 2 माह की फसल की तुलना की में 7-8 माह की फसल से लिये गये बीज का जमाव भी अपेक्षाकृत अच्छा होता है. बोने से पूर्व गन्ने के दो अथवा तीन आंख वाले टुकड़े काटकर कम से कम 2 घंटे पानी में डुबो लेना चाहिए, तदुपरान्त एरीटान 6 प्रतिशत या एगलाल 3 प्रतिशत के क्रमश: 0.25 या 0.5 घोल में शोधित कर लेना चाहिए. बीज शोधन के लिये बावस्टीन 0.1 प्रतिशत घोल का भी प्रयोग किया जा सकता है.

गन्ने की बुवाई (Sugarcane sowing)

 (क) पंक्तियों के मध्य की दूरी    

सामान्यत: पंक्ति से पंक्ति के मध्य 60 सेमी0 दूरी रखने एवं तीन आंख वाले टुकड़े बोने पर  लगभग 56.25 हजार टुकड़े गन्ना बीज प्रति हेक्टयर की दर से प्रयोग किया जाता है. सामान्यतः आदर्श परिस्थितियों में तीन आंख वाले पैडे नालियों में इस प्रकार डाले जाते हैं कि प्रति फुट कम से कम एक आंख समायोजित हो जाये.

(ख) बुवाई के उपरान्त रसायन का प्रयोग

बुवाई के उपरान्त नाली में पैडो के ऊपर गामा बी०एच०सी० 20ई.सी. 6.25लीटर या क्लोरोपायरिफास 20 प्रतिशत के 5 लीटर घोल को 1875 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर हजारे से छिड़काव करना चाहिए अथवा फोरेट 10 जी॰ 25 किग्रा॰ या सेविडाल 4:4जी. 25कि०ग्रा० या लिण्डेन 6 जी.20 किग्रा०/हे० की दर से पेड़ के ऊपर प्रयोग करना चाहिए.

गन्ने में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in sugarcane)

(अ) यांत्रिक नियंत्रण :

(क) गुड़ाई

गन्ने में पौधों की जड़ों को नमी व वायु उपलब्ध कराने तथा खरपतवार नियंत्रण की दृष्टि  दृष्टिकोण से गुड़ाई अति आवश्यक है. सामान्यत: प्रत्येक सिंचाई के पश्चात एक गुड़ाई की जानी चाहिए. गुड़ाई करने से उर्वरक भी मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाते है. गुड़ाई के लिए कस्सी/ फावड़ा/कल्टीवेटर का प्रयोग किया जा सकता है. 

(ख) सूखी पत्ती बिछाना     

ग्रीष्म ऋतु में मृदा नमी के संरक्षण एवं खर-पतवार नियंत्रण के लिए गन्ने की पंक्तियों के मध्य गन्ने की सूखी पत्तियों की 8-10 से.मी. मोटी तह बिछाना लाभदायक होता है. फौजी कीट आदि से बचाव के लिये सूखी पत्ती की तह पर मैलाथियान 5 प्रतिशत या लिण्डेन धूल 1.3 प्रतिशत का 25कि०ग्रा०/हे० या फेनवलरेट 0.4 प्रतिशत धूल को 25 कि०ग्रा० प्रति हेक्टेयर बुरकाव करना चाहिए. वर्षा ऋतु में सूखी पत्ती सड कर कम्पोस्ट खाद का काम भी करती है. सूखी पत्ती बिछाने से अंकुरवेधक का आपतन भी कम होता है.

(ब) रासायनिक नियंत्रण

रसायन

जमाव पूर्व

जमाव के उपरान्त

नियंत्रण

सिमैजीन (50 डब्लू)

2.24

कि०ग्रा०/हेक्टेयर

2.24 कि०ग्रा०/हे०

खरपतवारों के नियंत्रण हेतु छिड़कना चाहिए

आईसेप्लेनोटाक्स (67)

3 कि०ग्रा०/हे०

3 कि०ग्रा०/हे०

मोथा एक बीजपत्रीय खरपतवारों के प्रभावी नियंत्रण हेतु छिड़कना चाहिए

एट्राजीन एवं 2-4-डी

एट्राजीन 2.24 कि०ग्रा०/हे०

2-4 डी

2.24 किग्रा०/हे०

छिडकने से अधिकांश एकबीजपत्रीय व द्विबीजपत्रीय नष्ट हो जाते हैं

2-4 डी-सोडियमसाल्ट

 

-

2-4 डी-सोडियमसाल्ट

2.24 कि०ग्रा० प्रति हे०

शरदकालीन गन्ने में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण हेतु छिड़कना चाहिए

रसायनों के छिड़काव में विशेष सावधानियां

रसायन छिडकाव के समय खेत में पर्याप्त नमी हो.
जमाव पूर्व एवं पश्चात खरपतवार नियन्त्रण रसायनों का छिडकाव, गन्ना बुवाई के उपरान्त क्रमशः 7-15 दिन व 50-65 दिन के अन्दर करना चाहिए.
मिश्रित खेती की दशा में अन्य संवेदनशील फसलों को बचाने के उद्देश्य से खरपतवार नियंन्त्रक रसायनो का छिडकाव नहीं करना चाहिए.


मिट्‌टी चढ़ाना एवं फसल की बधाई 

गन्ने के थानो की जड़ पर मिट्‌टी चढ़ाने से जड़ों का सघन विकास होता है. इससे देर से निकले किल्लो का विकास रूक जाता और वर्षा ऋतु में फसल गिरने से बच जाती है. मिट्‌टी चढ़ाने से स्वतः निर्मित नालियां वर्षा में जल निकास का कार्य भी करती है. अतः अंतिम जून में एक बार हल्की मिट्‌टी चढ़ाना तथा जुलाई में अन्तिम रूप से पर्याप्त मिट्‌टी चढ़ाकर गन्ने को गिरने से बचाकर अच्छी फसल ली जा सकती है. अधिक उर्वरक दिये जाने तथा उत्तम फसल प्रबंध के कारण फसल की बढ़वार अच्छी हो जाती है, किन्तु जब गन्ने 2.5 मीटर से अधिक लम्बे हो जाते हैं तो वे वर्षाकाल में गिर जाते हैं जिससे उसके रसोगुण पर विपरीत प्रभाव पड़ जाता है. अतः गन्ने के थानों को गन्ने की सूखी पत्तियों से ही लगभग 100 सेमी० ऊंचाई पर जुलाई के अन्तिम सप्ताह में तथा दूसरी बंधाई अगस्त में पहली बंधाई से 50 सेमी० ऊपर तथा अगस्त के अन्त में एक पंक्ति के दो थान व दूसरी पंक्ति के एक थान से और इस क्रम को पलटते हुये त्रिकोणात्मक बंधाई करनी चाहिए.

गन्ने के फसल की सिंचाई

गन्ने की फसल को 1500 से 1750 मिली० पानी की आवश्यकता होती है, गन्ने की फसल में 5-6 सिंचाई करना लाभप्रद पाया गया है. ग्रीष्म ऋतु में 15-20 दिनों के अन्तर पर सिंचाई करते रहना चाहिए. वर्षाकाल में गन्ने की बढ़तवार होती है. अतः 20 दिन तक वर्षा न होने पर एक सिंचाई करना उपयोगी पाया गया है.

गन्ने की फसल में उर्वरक का उपयोग (Use of fertilizer in sugarcane crop)

नाइट्रोजन का प्रयोग

गन्ना फसल के लिये आवश्यक पोषक तत्वों में नाइट्रोजन का प्रभाव सर्वविदित है. पोटाश और फास्फोरस का प्रयोग मृदा के उपरान्त कमी पाये जाने पर ही किया जाना चाहिए.  अच्छी उपज के लिये गन्ने में नाइट्रोजन 150 से 180 कि०ग्रा०/हे. प्रयोग करना लाभप्रद पाया गया है. नाइट्रोजन की कुल मात्रा का 1/3 भाग व कमी होने की दशा में 60-80 कि०ग्रा० फास्फोरस एवं 40 कि०ग्रा० पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के पूर्व कूडों में डालना चाहिए. नाइट्रोजन के शेष 2/3 भाग को दो हिस्सों में बराबर-बराबर जून से पूर्व में प्रयोग करना चाहिए.

हरी खाद का प्रयोग  

मृदा की भौतिक दशा सुधारने एवं मृदा का हयूमस स्तर बढ़ाने, संरक्षित रखने, मृदा में सूक्ष्म जीवाणु गतिविधियों के लिये तथा भूमि क्षरण के कारण मृदा में पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के उद्देश्य से हरी खाद, एफ.वाइ.एम. कम्पोस्ट आदि का प्रयोग किया जाना चाहिए.

गन्ना के साथ अन्तः खेती

गन्ना के साथ अन्तः खेती के लिये उन्हीं फसलों का चुनाव करना चाहिए जिनमें वृद्धि प्रतिस्पर्धा न हो तथा जिनकी छाया से गन्ना फसल पर विपरीत प्रभाव न पड़े. कृषि निवेशों की उपलब्धता के अनुसार आलू, लाही, राई, गेहूं, मटर (फली) मसूर, प्याज, लहसुन आदि शरदकालीन गन्ने के साथ तथा उर्द, मूंग, लोबिया (चारा) और भिण्डी आदि बसन्तकालीन गन्ने के साथ दो पंक्तियों के मध्य अन्तः फसल के रूप में बोई जा सकती है. शरदकालीन एकाकी गन्ने एवं क्रमागत दो फसलों जैसे- आलू-गन्ना, मटर-गन्ना, गेहूँ-गन्ना और लाही- गन्ना की अपेक्षा गन्ना+आलू, एक पंक्ति, गन्ना+मटर(फली) 3पंक्ति गन्ना+गेहूँ (2-3पंक्ति) एवं गन्ना लाही (२ पंक्ति) लेना आर्थिक दृष्टिकोण से अधिक लाभप्रद पाया गया है.

बावग फसल की कटाई एवं सूखी पत्ती का जलाना 

बावग गन्ने की कटाई भूमि की सतह से ही करनी चाहिए ताकि ठूंठों की अग्रभाग की कोई आंख ऊपर न रहने पाये. उपयुक्त समय से कटाई करने की दशा में पेडी के पहले से निकले बडे किल्लों को भी काट देना चाहिए जिससे पेडी की वृद्धि में समरूपता रहे. बावग गन्ने की देर से कटाई की स्थिति में पहले से निकले किल्लों को छोडना लाभकारी पाया गया है. कीट एवं रोगो से बचाव के लिये बावग की कटाई के तुरन्त बाद खेत में सूखी पत्ती को समरूप बिखेर कर जला देना चाहिए. सूखी पत्ती जलाने के बाद 24 घण्टे के अन्दर पानी लगा देना चाहिए तदोपरान्त मेंडे गिराना चाहिए.

गन्ने की कटाई एवं उपज (Sugarcane Harvesting and Yield)

चूंकि पौधा फसल की तुलना में पेडी शीघ्र पक जाती है, अतः जहां तक सम्भव हो नवम्बर में ही मेंडे गिराने के बाद पेडी की कटाई प्रारम्भ कर देनी चाहिए. किसान औसतन प्रति हेक्टेयर 76 टन गन्ने की कटाई कर सकते हैं, तथा उत्तर प्रदेश में 55 टन की औसत उपज होती है.    

लेखक: डॉ॰ कर्मवीर कुमार गौतम, गजेंद्र सिंह, क्षेत्रीय वनस्पति संगरोध केंद्र, अमृतसर (पंजाब) कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय भारत सरकार- 143101
डॉ. राहुल कुमार सिंह,
महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केन्द्र, चौकमाफी, पीपीगंज, गोरखपुर- 273165

English Summary: Sugarcane Cultivation: Modern sugarcane cultivation method, yield, yield and crop management
Published on: 09 March 2020, 01:05 PM IST

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