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Updated on: 18 January, 2022 11:42 AM IST
Strawberry Farming

स्ट्रॉबेरी फल बहुत ही रसीला और स्वाद में लाजवाब होता है. स्ट्रॉबेरी खाने में जितनी स्वादिष्ट होती है, उतनी ही यह स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी होती है. इसमें विटामिन से लेकर फोलिक एसिड, कैल्शियम और फास्फोरस जैसे कई खनिज पाए जाते हैं.

जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं. पहले यह फल भारत में बहुत मुश्किल से ही मिलता था, लेकिन आज के समय में इसकी खेती देश के कोने-कोने में होने लगी है, जिसकी वजह से अब यह आसानी से मिल जाता है। इस फल का पौधा एक फीट ऊंचाई तक पहुंचता है. बाजारों में स्ट्रॉबेरी की मांग काफी अधिक है और दाम भी अच्छे मिलते हैं. अगर मांग अच्छी हो तो फिर अच्छा खासा मूल्य मिल जाता है. इसकी विश्वव्यापी खेती की जाती है. इसके फल को भी इसी नाम से जाना जाता है. स्ट्रॉबेरी की विशेष गंध इसकी पहचान बन गयी है. व्यापक रूप से अपनी विशिष्ट सुगंध, चमकीले लाल रंग, रसदार बनावट और मिठास के लिए मशहूर है. यह बड़ी मात्रा में सेवन किया जाता है, ताजा अथवा संरक्षित करके फलों के रस, आइसक्रीम और मिल्क शेक के रूप में तैयार खाद्य पदार्थों में इसका उपयोग बहुतायत में होता है. कृत्रिम स्ट्रॉबेरी खुशबू भी व्यापक रूप से कई औद्योगिक खाद्य उत्पादों में इस्तेमाल की जाती है.

इसलिए उत्तर  राज्य ग्रामीण अजीविका मिशन से जुड़ी समूह की महिलाओं ने स्ट्रॉबेरी और बेमौसम सब्जी की खेती कर रचनात्मक एवं उन्नतशील कार्य कर रही है. इससे स्वास्थ्य पोषण के साथ-साथ आर्थिक उन्नयन भी होता हैं। इटावा की महिलओं ने बेमौसम सब्जी उत्पादन करके प्रदेश भर में  कृतिमान स्थापित किया है. विकास खण्ड जसवन्त नगर के ग्राम नगला भीखन में मंत्रवती स्ट्रॉबेरी की खेती पर नवाचार कर रही है. जब महिलएं आर्थिक रूप से स्वावलम्बी होगी तो परिवार और समाज भी सशक्त होगा. इस संकल्पना को पूर्ण करने के लिए ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी उन्मूलन एवं आर्थिक सशक्तिकरण से महिलाएं सशक्त हो रही है. आजीविका मिशन में महिलाओं को विभिन्न स्वास्थ्य वर्धक और आर्थिक गतिविधियों से जोड़ा जा रहा है. इससे महिलाएं अपना कर अच्छी कमाई कर रही है. महिला किसानों के लिए ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत निरंतर जागरूकता अभियान चला रहा है.

स्ट्रॉबेरी पहले ब्रिटेन, फ्रांस में पैदा किया गया था. वाणिज्यिक उत्पादन में 17 वीं सदी के आरंभ से खेती में वुडलैंड स्ट्रॉबेरी प्रजातियों ने जगह ले ली है। स्ट्रॉबेरी की सम्पूर्ण संरचना एक फल माना जाता है। इस  फल के लिए दुनिया भर में खेती की जाती है और भारत में भी  स्ट्रॉबेरी की अच्छी पैदावर होती है. पहली उद्यान स्ट्रॉबेरी फ्रांस में 18 वीं सदी के पूर्वार्ध के दौरान हो गया था खेती से पहले जंगली स्ट्रॉबेरी प्रजातियाँ इस फल के आम स्रोत थे.  स्ट्रॉबेरी   की 600 किस्में दुनिया में मौजूद है. ये सभी अपने स्वाद रंग रूप में एक दूसरे से भिन्न होती है. इसके स्वास्थ्य वर्धक गुण निम्न प्रकार है-

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में करती है मदद

स्ट्रॉबेरी में विटामिन-सी भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद मिलती है. साथ ही यह हाई बीपी (उच्च रक्तचाप) से पीड़ित लोगों के शरीर में रक्त संचरण में भी मदद करती है.

त्वचा के लिए भी फायदेमंद है स्ट्रॉबेरी

त्वचा को खूबसूरत और स्वस्थ बनाना हो तो आप स्ट्रॉबेरी का सेवन कर सकते हैं. दरअसल, इसमें मौजूद एसिड त्वचा के काले धब्बों को हटाकर चेहरे को साफ और बेदाग बनाने में मदद करते हैं. नियमित रूप से इसका सेवन ज्यादा फायदेमंद हो सकता है.

हड्डियों को मिलती है मजबूती

स्ट्रॉबेरी में विटामिन-के, कैल्शियम और मैग्नीशियम भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाने में मदद करते हैं. चूंकि उम्र बढ़ने के साथ-साथ कुछ लोगों की हड्डियां कमजोर होने लगती हैं, ऐसे में स्ट्रॉबेरी का सेवन उनके लिए फायदेमंद हो सकता है.

आंखों को बनाता है स्वस्थ

अगर आप आंखों की रोशनी बढ़ाना चाहते हैं और मोतियाबिंद जैसी बीमारियों से निजात पाना चाहते हैं, तो नियमित रूप से स्ट्रॉबेरी का सेवन करें. इसके अलावा स्ट्रॉबेरी पाचन में भी सहायक होती है। इसके सेवन से लिवर और पेट संबंधी समस्याओं में आराम मिलता है.

स्ट्रॉबेरी की प्रमुख किस्में (Major Strawberry Varieties)

भारत में स्ट्रॉबेरी की अधिकतर किस्में बाहर से मगवाई हुई है. व्यावसायिक रूप से खेती करने के लिए प्रमुख किस्में निम्नलिखित है : ओफ्रा, कमारोसा, चांडलर, स्वीट चार्ली, ब्लेक मोर, एलिस्ता, सिसकेफ़, फेयर फाक्स आदि किस्में है.

स्ट्रॉबेरी के लिए मिट्टी और जलवायु (Soil and Climate for Strawberries)

स्ट्रॉबेरी की खेती  के लिए न ज्यादा गर्मी की जरुरत न ही ज्यादा ठण्ड होनी चाहिए एक अनुकूल तापमान के अन्दर स्ट्रॉबेरी की खेती की जा सकती है लेकिन वैसे ठंडा मौसम होनी चाहिए। मिट्टी में पानी की कमी के कारण  स्ट्रॉबेरी  के पौधों को कभी भी गलने नहीं देना चाहिए, इसलिए पौधों को पर्याप्त मात्रा में पानी की आपूर्ति की जानी चाहिए. सर्दियों के वर्षा वाले शुष्क क्षेत्रों या क्षेत्रों में गर्मियों के दौरान पूरक सिंचाई प्रदान की जाती है। पौधों को सूखा रेतीले दोमट या दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। यदि रोपण से पहले भूमि को अच्छी तरह से तैयार किया जाता है और यदि पर्याप्त मात्रा में खाद या जैविक खाद को मिट्टी में मिलाया जाता है, तो पौधों को मिट्टी में भी उगाया जा सकता है.

स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Land preparation for strawberry cultivation)

स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए चयनित भूमि में पर्याप्त वायु और जल निकासी की सुविधा होनी चाहिए, जो जमीन पहले टमाटर, आलू, काली मिर्च, और बैंगन, इत्यादि जैसे विलायती फसलों के रोपण के लिए उपयोग की जाती थी, उन्हें  स्ट्रॉबेरी खेती के लिए इस्तेमाल ना करें.

स्ट्रॉबेरी रोपाई का समय एवं विधि (Strawberry planting time and method)

खेत में आवश्यक खाद् उर्वरक देने के बाद बेड बनाने के लिए बेड की चौड़ाई 2 फिट रखे और बेड से बेड की दूरी डेढ़ फिट रखें. बेड तैयार होने के बाद उस पर ड्रेप एरिगेशन की पाइपलाइन बिछा दें. पौधे लगाने के लिए प्लास्टिक मल्चिंग में 20 से 30 सेमी की दूरी पर छेद करे और स्ट्रॉबेरी  की बुवाई का सही समय 10 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक सही है। स्ट्रॉबेरी के पौधों को रोपने का सही समय जलवायु पर निर्भर करता है. उत्तरी भारत में इसकी रोपाई सितंबर से नवंबर के मध्य की जा सकती है. रोपण करते समय यह ध्यान रहे कि रनर्स स्वस्थ तथा कीट व रोग रहित होने चाहिए.

यह पौधों के रोपण की दूरी, उगाई जाने वाली किस्म, मृदा की भौतिक दशा, रोपण विधि और उगाने की दशा इत्यादि पर निर्भर करता है. कुछ स्थानों पर इसके रोपण की दूरी 30 X 60 सेंटीमीटर रखते हैं. इससे प्रति हैक्टर लगभग 55 हजार से 60 हजार पौधों की जरूरत होती है. अधिक उपज लेने के लिए पौधे से पौधे एवं कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर रखी जाती है. यदि इस दूरी पर पौधों का रोपण करते हैं, तो एक हैक्टर के लिए लगभग 1 लाख 11 हजार पौधों की जरूरत होती है.

स्ट्रॉबेरी की खेती में खाद् और उर्वरक (Food and Fertilizer in Strawberry Cultivation)

खाद एवं उर्वरकों के उपयोग का मुख्य उद्देश्य पौधों के समुचित विकास और बढ़वार के साथ ही मृदा में अनुकूल पोषण दशाएं बनाए रखना होता है और  स्ट्रॉबेरी खेती में जमीन तैयार करने के दौरान पहले से ही लगाए जाने के बाद चूने और फॉस्फोरस तत्वों को खेत में नहीं डालना चाहिए. पूरे खेती के मौसम में नाइट्रोजन और पोटेशियम उर्वरकों का उपयोग करके खेत को पूरक बनाया जाना चाहिए. हमेशा खेत की मिट्टी जांच के उपरांत ही खाद एवं उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए. सामान्यतः खेत तैयार करते समय 10 से 12 टन कम्पोस्ट खाद, 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस व 25 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ की दर से डालनी चाहिए. इसमें फर्टिगेशन के रूप में 25 ग्राम मात्रा प्रति वर्गमीटर की दर से सम्पूर्ण फसल चक्र में देनी चाहिए. यह मात्रा 15 दिनों के अंतराल पर 4 से 5 भागों में बांटकर देनी चाहिए. स्ट्रॉबेरी  में सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिड़काव भी उत्पादन बढ़ाने में सहायक होता है.

स्ट्रॉबेरी की खेती में  निराई-गुड़ाई (Weeding in strawberry cultivation)

स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाने के कुछ समय खरपतवार उग जाते है, जो पौधे को नुकसान पहुंचाते है और बीमारी लेकर आते है. इसके साथ ही ये विभिन्न प्रकार के कीट एवं रोगों को आश्रय प्रदान करते हैं. अक्टूबर में रोपित पौधों से नवंबर में फुटाव शुरू हो जाता है. फुटाव शुरू होने पर खेत की निराई-गुड़ाई करके खरपतवार निकाल देने चाहिए.

स्ट्रॉबेरी  के खेत की सिंचाई (Strawberry field irrigation)

सिंचाई का समय और आवृत्ति कुछ कारकों पर निर्भर करती है जैसे मिट्टी का प्रकार, पानी की गुणवत्ता, स्थान का मौसम, मौसम, फल का प्रकार, गीली घास सामग्री और सिंचाई प्रणाली के प्रकार। यदि रोपण मृदा मिट्टी पर किया जाता है, तो नियमित समय पर पानी की आपूर्ति कम मात्रा में की जाती है. पहली सिंचाई पौध रोपण के तुरंत पश्चात कर देनी चाहिए. उसके बाद 2 से 3 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहें.

स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए विभिन्न सिंचाई प्रणाली जैसे ओवरहेड स्प्रिंकलर, माइक्रो-स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई का उपयोग किया जा सकता है. यदि एक ड्रिप  सिस्टम का उपयोग किया जा रहा है। इसमें  प्लास्टिक लाइनों द्वारा पानी पौधों की जड़ों में सीधा तथा समान रूप से पहुंचाया जा सकता है इसमें 2 से 4 लीटर प्रति घंटा चलता है. इस सिस्टम के बहुत से फायदे है. जैसे  ड्रिप सिंचाई प्रणाली में जल के साथ-साथ उर्वरक, कीटनाशक व अन्य घुलनशील रासायनिक तत्वों को भी सीधे पौधों तक पहुंचाया जा सकता है. जब पानी के साथ-साथ पोषक तत्व भी पौधों को उपलब्ध कराए जाते हैं, तो उसे फर्टिगेशन नाम से जाना जाता है. फर्टिगेशन में पूर्णतः घुलनशील या तरल उर्वरक का ही प्रयोग किया जा सकता है.

स्ट्रॉबेरी ऑर्चर्ड के कीट और रोग प्रबंधन (Pest and Disease Management of Strawberry Orchard)

रोग सामान्य रूप से उन पौधों में होते हैं जहाँ वर्षा सामान्य से अधिक होती है. स्ट्रॉबेरी   के पौधों में पाए जाने वाले कुछ सामान्य रोगों को पत्तेदार फफूंदी, पत्ती झुलसा और धब्बे जैसे पर्ण रोगों में वर्गीकृत किया जाता है; जड़ से जुड़ी बीमारियाँ जैसे वर्टिसिलियम विल्ट, ब्लैक रूट रोट, रेड स्टेल आदि; फलों के छिलके जैसे ग्रे मोल्ड, एन्थ्रेक्नोज, राइजोपस, लेदर रोट आदि। इन सभी को या तो उचित रासायनिक उपचार विधियों का उपयोग करके नियंत्रित किया जा सकता है या सांस्कृतिक तरीकों जैसे उचित पौधे के इस्तेमाल से रोका जा सकता है. इसमें कीट एवं रोगों की पहचान इस प्रकार से किया जाता है जैसेः

परजीवी (थ्रिप्स)- यह हल्के पीले और भूरे रंग का किट होता है और यह  स्ट्रॉबेरी  की पत्तियों एवं पुष्पन से रस चूसते है जिसे पौधा कमजोर हो जता है इसके नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 2 मिलीलीटर या डाइमेथोएट 30 ई सी एक मिलीलीटर या कोनफीडोर 1.5 मिलीलीटर दवा का प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.

लाल मकड़ी- यह एक लाल रंग की मकड़ी होती है जो पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं। इससे पत्तों पर धब्बे बन जाते हैं. इसके नियंत्रण के लिए पौधों पर सल्फर 1.5 से 2 ग्राम या ओमाइट एक मिलीलीटर या कैल्थेन 18.5 ई सी 1 से 2  मिलीलीटर या आबामेक्टिन  1.9 ई सी एक मिलीलीटर दवा का प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.

फफूद या छाछ्या - इस प्रकार के रोग में स्ट्रॉबेरी की पत्तियों के ऊपर बैंगनी रंग के धब्बे हो जाते है इसकी रोकथाम के लिए केराथेन 0.1 प्रतिशत या केलिक्सिन 0.1 प्रतिशत या घुलनशील गंधक 0.2 प्रतिशत घोल का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें.

एंथ्रेक्नोज (श्यामव्रण) एवं फल सड़न – इस बीमारी के अन्दर  स्ट्रॉबेरी  की पत्तियों पर हल्के, गहरे काले रंग के धब्बे  हो जाते है, जिस से फल खराब होने लगते है. इसके नियंत्रण के लिए एक तो सफाई रखे खरपतवार न होने दे दूसरा कार्बेन्डाजिम दवा 200 ग्राम को 100 लीटर पानी में मिलाकर 10 से 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

स्ट्रॉबेरी की कटाई और उपज (Strawberry harvest and harvest)

स्ट्रॉबेरी  फल आमतौर पर सुबह-सुबह या देर दोपहर के दौरान तापमान कम होने पर हाथ से काटा जाता है। पूर्ण परिपक्वता प्राप्त करने के बाद ही फल चुने जाते हैं यानी फलों का स्वाद मीठा और रंग लाल होता है। कटाई सप्ताह में या हर दूसरे दिन दो बार की जाती है। फल को उठाते हुए उंगली और अंगूठे का उपयोग किया जाना चाहिए। फल को तने से लगभग 2 सें.मी. घुमाकर अलग किया जाता है। उठाते समय ध्यान रखना चाहिए कि फलों को नुकसान न पहुंचे और इसलिए उन्हें स्टैकिंग के बिना कंटेनरों में रखा जाता है। जो फल ओवररिप होते हैं, उन्हें अलग से संग्रहित किया जाना चाहिए। एकत्रित फलों को धूप, गर्म हवा और गंदगी से बचाना चाहिए। छोटे और बड़े फलों को भी अलग से संभाला जाना चाहिए। फल फरवरी-अप्रैल के दौरान मैदानी क्षेत्रों में और मई-जून के दौरान पहाड़ी क्षेत्रों में पकते हैं।

इस प्रकार, महिलाएं अपने जैसे ग्रामीण गरीब महिलाओं को मदद कर रही है. इनके सारे उत्पाद क्षेत्रीय बाजार में ही बिक जाते हैं. जितनी बाजार की मांग है, उसके मुताबिक उत्पादन कम पड़ जाता है. महिलाओं का मानना है कि  खेती को सकारात्मक सोच के साथ अपनाये क्योंकि हम रह कहीं भी ले, पहन कुछ भी ले, लेकिन खाने के लिए अनाज की ही आवश्यकता होगी. भोजन से बड़ा बाजार कुछ भी नहीं है. कोरोना संक्रमण के चलते जहां कई व्यवसाय प्रभावित हुआ और लोगों को नुकसान उठाना पडा किन्तु स्ट्रॉबेरी और बेमौसम सब्जी की खेती को करते हुए महिलाओं ने लाखों रुपए कमाए हैं. इससे कम रकबे में, कम लागत में, अच्छा मुनाफा कमाने का जरिया इनको मिला है.  किसान की आय में बढ़ोतरी होती है. इसके परिणाम स्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में खेती-किसनी से आमदनी और हरियाली बढ़ रही है। ग्रामीण अंचलों में बाढ़, सूखा, पहाड़, पठार जैसी प्राकृतिक बाधाओं के बावजूद महिला किसानों ने उत्पादन में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल किया है. ग्रामीण आजीविका मिशन में महिला किसान से महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो रही हैं. स्वास्थ्य वर्धन हुआ। मातृ और शिशु मृत्यु दर में कमी आई है.

डॉ. नन्दकिशोर साह

ग्राम पोस्ट-बनकटवा,भाया- धोड़ासहन

जिला-पूर्वी चम्पारण

बिहार-845303

ई-मेल आई-  nandkishorsah59@gmail.com

मोबाइल नं- 09934797610]  8210409682

English Summary: Strawberry became a means of livelihood
Published on: 18 January 2022, 11:50 AM IST

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