आर्बोरियल एक जैव प्रौद्योगिकी कंपनी है जिसकी स्थापना 7 साल पहले 2015 में हुई थी. इसकी शुरुआत सीईओ स्वाति पाण्डेय और को फाउंडर मनीष चौहान के साथ मिलकर की थी. इनका कहना है कि यह दोनों पिछले 7 सालों से एक ही समस्या पर काम कर रहे हैं और वह समस्या है चीनी की मात्रा.
जी हाँ मार्केट में उपलब्ध अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट जैसे कि फ्रूट जूस, सॉस, और मिठाइयां इन सब में लगभग 15-40% चीनी होती है. जिसका असर हमें अब साफ़ दिख रहा है क्योंकि इंडिया अब डायबिटीज कैपिटल बन चुका है. स्वाति कहती है- जब हम लोगों ने इस पर रिसर्च शुरू किया तो हमने पाया कि एक पौधा होता है जिसका नाम है स्टेविया, इससे हिंदी में मीठी तुलसी भी कहते हैं. यह चीनी का एक बहुत ही अच्छा विकल्प हो सकता है क्योंकि स्टेविया की पत्तियां बहुत ही मीठी होती है और उनमें बिल्कुल भी कैलरी नहीं होती है. स्टेविया एक सुरक्षित विकल्प है ऐसे लोगों के लिए जो एक हेल्थी जिंदगी गुजारना चाहते हैं.
ऐसे में स्टेविया की खेती को बढ़ाने के लिए किसानों के साथ जुड़ना बहुत ही जरूरी था, क्योंकि किसान ही हमें रॉ मैटेरियल उपलब्ध करा सकते हैं. इस प्रकार से हमने कृषि क्षेत्र में अपना पहला कदम रखा और हमने खेती सीखी, और कई सीनियर साइंटिस्ट को भी अपने साथ जोड़ा. इस क्षेत्र में काफी शोध करने के बाद हमने स्टेविया की एक ऐसी वैरायटी बनाई जो की काफी बेहतर है और काफी उच्च गुणवत्ता वाली है. हम इस पौधे का पौध बनाते हैं और उन्हें किसानों को देते हैं खेती करने के लिए. हम किसानों के साथ बतौर एग्रीमेंट साइन करते हैं जिसमें हम स्टेविया की सूखी पत्तियां उनसे वापस खरीद लेते है, इस पूरे प्रोसेस में हमारी टीम किसानों का पूरा सहयोग करती है.
स्टेविया खेती में आर्बोरियल के साथ कितने किसान जुड़े है?
अरबोरियल के साथ इस समय करीब 500 किसान जुड़े हुए हैं. इनमें से ज्यादातर छोटे किसान है जो कि छोटे स्तर पर हमारे साथ खेती कर रहे हैं , जैसे कि एक बीघा 2 बीघा या आधा एकड़ के स्तर पर.
इस तरह की खेती में कितना समय लगता है?
स्टेविया दरअसल एक पेरेन्नियल क्रॉप है. इसका मतलब यह है कि इसे लगाने के बाद कई सालों तक इसका आउटपुट मिलता रहता है. स्टेविया की फसल को लगाने के बाद पहली फसल 6 महीने में तैयार होती है और फिर हर 3 महीने में किसान इससे एक हार्वेस्ट ले सकते हैं. क्योंकि हम किसानों को हर हार्वेस्ट के बाद रेगुलर पेमेंट करते हैं इसका फायदा यह है कि किसानों को लगातार अपने पैसे मिलते रहते हैं. उन्हें अपने मेहनताने के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ता जैसे कि गन्ने की फसल के साथ होता है.
आर्बोरियल ने स्टेविया कि खेती से किसनों को कैसे रूबरू करवाया?
खेती हमारे बिजनेस का सबसे ज्यादा जरूरी हिस्सा रहा है. जैसा कि मैंने बताया कि रॉ मैटेरियल स्टेविया की पत्तियां है और उसी से सारा काम शुरू होता है. इसीलिए रॉ मटेरियल और जो पौधे हम लगाते हैं इसकी क्वालिटी और सही समय पर उसका हार्वेस्ट होना यह सारी चीजें हमारे लिए आगे प्रोडक्शन के लिए बहुत ही ज्यादा जरूरी हो जाती है.
हमें किसानों के साथ जुड़ने से पहले स्टीविया पर काफी सारा रिसर्च किया है. हमने अलग अलग देशों से अलग अलग पौधों को मंगाया और उस पर रिसर्च किया और इंडिया के पांच अलग-अलग राज्यों में इन्हें टेस्ट किया, यह पता करने के लिए कि कहां पर हमें ज्यादा बेहतर आउटपुट मिल रहा है. यह सारी चीजें समझने करने के बाद हमने किसानों तक पहुंचना शुरू किया. शुरुआत के तकरीबन एक से डेढ़ साल हमने रिसर्च में ही लगाएं. इसके बाद से किसानों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. इसके लिए हमने कई सारी किसान गोष्ठीया और उनके साथ मीटिंग और ट्रेनिंग प्रोग्राम भी करवाए हैं.
स्टेविया खेती से किसानों की आमदनी में कितना फ़र्क पढ़ा है?
स्टेविया की खेती किसानों को बाकी फसलों के मुकाबले ज्यादा मुनाफा देती है. स्टीविया का सही उत्पादन इन चीजों पर निर्भर करता है कि कैसे जमीन पर उसकी खेती की जा रही है और उसकी देखभाल किस प्रकार से हो रही है. इन सब चीजों से स्टीविया के उत्पादन पर काफी फर्क पड़ता है. हमने अब तक जितने किसानों के साथ काम किया है उसके हिसाब से एक किसान एक एकड़ की जमीन पर स्टीविया की खेती करके 60000 से 100000 तक का मुनाफा कमा सकते हैं.
कितने जमीन पर किसान स्टीविया की खेती कर सकते हैं?
स्टीविया इंडिया के लिए अभी एक नया पौधा है. 2009 में इसे पहली बार इंडिया लाया गया था. उसके बाद से छोटे-छोटे इलाकों में और छोटे स्तर पर इसकी खेती की जा रही है. जो किसान हमारे साथ डायरेक्टली जुड़े हुए हैं और हमारे साथ मिलकर काम कर रहे हैं वह करीब ढाई सौ एकड़ एरिया है और अगले 1 से 2 सालों में हमारा लक्ष्य इसे 10 गुना तक बढ़ाना है.