भारत में दालों की मांग सबसे अधिक है और सभी दालों में लोकप्रियता के मामले में अरहर पहले स्थान पर है. देश में इसकी खपत सबसे ज्यादा है. सेहत के लिहाज से भी देखा जाए, तो अरहर का कोई मुकाबला नहीं है. इसमें प्रोटीन की मात्रा भी अधिक होती है. वैसे सामान्य अरहर के पौधों की लंबाई 4-5 फीट तक होती है और हर पौधे में 5 से 6 शाखाएं निकलती है. लेकिन आज हम आपको अरहर की एक ऐसी किस्म के बारे में बताएंगें जिसके एक पौधे से 60 शाखाएं निकलती है.
पौधा नहीं पेड़ ही कहिए
विशेषज्ञों के मुताबिक अरहर की इस किस्म को पौधे की जगह पेड़ कहा जाए, तो ज्यादा उत्तम है. इसकी विशेषताएं ही इसे पेड़ की संज्ञा देने के लिए पर्याप्त है. इसका तना मोटा होता है और एक पेड़ में से लगभग 60 शाखाएं निकलती है. सभी शाखाओं पर फलियों के गुच्छे होते हैं, जिनमें सामान्य के मुकाबले अधिक संख्या में फलियां निकलती है.
छत्तीसगढ़ में है खास अरहर
इस अरहर को छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर क्षेत्रों में पाया जाता है. यहां के गगोली गांव में आसानी इसकी खेती होती है. एक पेड़ से 8 से 12 किलोग्राम दाना निकलता है, जो सामान्य अरहर के मुकाबले कुछ अधिक मोटा, बड़ा और चमकीला होता है. इसकी फलियों को 2 से 3 बार तोड़ा जा सकता है. फसल के परिपक्व होने का समय जनवरी से अप्रैल तक का है.
अंबिकापुर से लिए जा सकते हैं बीज
इस अरहर की खेती उन सभी क्षेत्री में हो सकती है जहां की जलवायु सामान्य अरहर के लिए उपयुक्त है. अगर आपको इसके बीज चाहिए तो आप छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर से इसके बीज ले सकते हैं.
खरीफ की फसल में होती है बुवाई
आपको मालूम ही है कि अरहर को बहुवर्षीय फसल कहा जाता है, जिसकी बुवाई जुलाई-अगस्त में खरीफ की फसल के समय होती है. विशेषज्ञों के मुताबिक अगर पानी-खाद समय-समय पर दिया जाए तो अरहर से चार से पांच साल तक बेहतर परिणाम मिल सकता है.