भारत में सरसों को तिलहन की प्रमुख फसल के तौर पर जाना जाता है. जिसकी खेती मुख्यरूप से देश के राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, असम और पंजाब में की जाती है. जबकि राजस्थान को सरसों का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कहा जाता है. वहीं बात विश्व की करें, तो सरसों उत्पादन के मामले में भारत कैनडा और चीन के बाद तीसरे स्थान पर आता है. बावजूद इसके भारत में सरसों के तेल का हर साल आयात किया जाता है. वहीं बात चाहें सरसों की फसल की हो या फिर किसी और फसल की, उपज की अच्छी पैदावार और गुणवत्ता में एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन यानी कि Integrated Nutrient Management का बहुत महत्व है.
एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन
ये एक प्रबंधन तकनीक है जो किसानों को पौधों में पोषक तत्व प्रदान करने के लिए रासायनिक उर्वरकों, जैविक खादों और जीवाणु खादों का संतुलित उपयोग करना सीखाती है. जैसे पौधों को कब और कितनी खाद की जरूरत है.. कितनी मात्रा में उनका इस्तेमाल होना चाहिए.. या फिर कौन सी खाद का इस्तेमाल कब करना चाहिए.. ऐसी सारी जानकारी किसान एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन के तहत हासिल करते हैं..
इसी कड़ी में कृषि जागरण द्वारा कोरोमंडल इंटरनेशनल लिमिटेड के सहयोग से 26 सितंबर 2023 को कृषि जागरण के फेसबुक प्लेटफॉर्म पर एक खास लाइव वेबिनार का आयोजन किया गया था. जिसमें कृषि विशेषज्ञों द्वारा सरसों की फसल में एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन पर चर्चा की गई.. साथ ही किसानों को इसके महत्व और आवश्यकता के बारे में जागरूक भी किया गया. बता दें कि कार्यक्रम में कोरोमंडल इंटरनेशनल लिमिटेड की तरफ से संभागीय कृषि वैज्ञानिक एवं सरसों फसल विशेषज्ञ श्री अमित कुमार मिश्रा जी और कृषि वैज्ञानिक डॉ. गणेश चंद्र श्रोत्रिय जी शामिल हुए..
इस कार्यक्रम की शुरूआत करते हुए सरसों की फसल के महत्व और खेती के बारे में किसानों जानकारी दी गई. साथ ही दोनो कृषि वैज्ञानिकों का स्वागत किया गया. कोरोमंडल इंटरनेशनल लिमिटेड से कृषि विशेषज्ञ अमित मिश्रा जी ने किसानों को बताया कि एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन क्या है और किस तरह से फसलों में काम करता है.. उन्होंने कहा कि सरसों एक बहुत ही महत्वपूर्ण फसल है. मुख्य रूप से देखा जाता है कि हमारे किसान भाई-बहन यूरिया और डीएपी का काफी मात्रा में उपयोग कर रहे हैं. जबकि सरसों एक ऐसी फसल हैं. जिसे रासायनिक खादों के साथ-साथ हमारी पारंपरिक खाद जैसे गोबर खाद, कंपोस्ट खाद आदि के प्रयोग भी जरूरत होती है..
इसके आगे कृषि विशेषज्ञ अमित जी ने चित्रों के माध्यम से किसानों को सरसों की खेती में समन्वित पोषण प्रबंधन समझाते हुए बताया कि फसलों को कुल मुलाकर 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है जिन्हें अलग-अलग तरह से वर्गीकृत किया गया है. इसी के साथ किसानों को जागरूक करते हुए उन्होंने सरसों की खेती में पोषक तत्व प्रबंधन के महत्व पर भी प्रकाश डाला..
फसलों को कितने प्रकार के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है. और किसान इनकी आपूर्ति कैसे कर सकते हैं..इस बारे में जानकारी देते हुए कृषि विशेषज्ञ एवं सलाहकार गणेश चंद्र श्रोत्रिय ने भी किसानों को संपूर्ण जानकारी दी. उन्होंने चित्रों के माध्यम से किसानों को पोषक तत्व के स्त्रोत जैसे रासयनिक उर्वरक, जैविक खाद, जैव उर्वरक, जीवामृत, फसल अवशेष और फसल चक्र को विस्तार से समझाया..
इसके बाद अमित मिश्रा जी ने किसानों को बताया कि सरसों की फसल में नाईट्रोजन सबसे बड़ा और अहम पोषक तत्व है जिसका मुख्य रूप से काम फसलों को हरा भरा करना और पौधों के अंदर प्रोटीन का निर्माण करना है. इसकी जरूरत पौधों को पूरी फसल चक्र में होती है. इसी के साथ उन्होंने सरसों की फसल में सभी पोषक तत्वों के महत्व को विस्तार से समझाया.
जबकि डॉ. श्रोत्रिय जी ने तस्वीरों के माध्यम से किसानों को फसलों में तत्वों की कमी के लक्षणों को दर्शाया.. उन्होंने चित्रों के माध्यम से किसानों को समझाया कि अगर बुवाई के 3-4 सप्ताह बाद पौधों की बढ़वार रूक जाए, नीचे से पत्ते पीले पड़ना शुरू हो जाएं या ऊपर की तरफ पीलापन दिखने लगेगा.. वहीं फॉस्फोरस की कमी होने पर पौधे छोटे व टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं. और फल-फलियां कम बनती हैं. इसी के साथ उन्होंने सरसों की बेहतर पैदावार और कीट रोगों से बचाव में पोषक तत्व प्रबंधन के महत्व की भी जानकारी दी.. इसके बाद कार्यक्रम को अंत की ओऱ ले जाते हुए अमित मिश्रा जी ने पोषण प्रबंधन में मिट्टी की जांच के महत्व पर किसानों का ध्यान खींचा और इसके फायदे भी बताएं..