सोयाबीन की खेती भी किसानों के लिए प्रमुख कृषि कार्यों में से एक है. भारत के कई राज्यों में सोयाबीन बुवाई की जाती है लेकिन मध्यप्रदेश में खरीफ फसल के रूप में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. देश में सोयाबीन उत्पादन के क्षेत्र में राज्य की हिस्सेदारी लगभग 60 फीसदी है. आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आप खरीफ फसलों (kharif crops) की बुवाई के तहत सोयाबीन की उन्नत खेती कैसे कर सकते हैं. किसान अगर चाहते हैं कि सोयाबीन की पैदावार में बढ़ोतरी हो जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा मिले, तो उन्हें कुछ ख़ास बात्तों का ध्यान रखने की बहुत जरूरत है, ख़ासतौर से सोयाबीन किस्म पर. आइए आपको बताते हैं कि किस तरह आप इसकी खेती कर सकते हैं
सोयाबीन की उन्नत किस्में
सही किस्म का चुनाव करके ही किसान सोयाबीन की खेती में कीट व रोग प्रबंधन से छुटकारा पा सकते हैं. इसके साथ ही फसल का उत्पादन बढ़ाकर अपनी आय भी बढ़ा सकते हैं. सोयाबीन की उन्नत किस्में जे. एस-335, एन.आर.सी-86,एन.आर.सी-12, जेएस-2029, जेएस-2034, आरवीएस 2001-4, एन आर सी- 12 (अहिल्या- 2), प्रताप सोया- 1 (आर ए यू एस- 5), जे एस 97-52, जे एस 95-60, जे एस 93-05, जे एस 71-05, पी के 564, जे एस 80-21, जे एस- 75-46, पूसा 20 ( डी एस- 74-20-2) हैं.
सोयाबीन की खेती के लिए जलवायु
सोयाबीन की उन्नत खेती के लिए गर्म और नम जलवायु की जरूरत होती है जिससे पौधों का विकास अच्छी तरह से हो सके. आपको बता दें कि सोयाबीन में बीज अंकुरण के लिए लगभग 25 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है और फसल बढ़ोतरी के लिए लगभग 30 डिग्री सेल्सियस तापमान चाहिए होता है.
सोयाबीन की खेती के लिए उपयुक्त भूमि
खेती के लिए किसान उपजाऊ, अच्छे जल निकासी वाली, मध्यम से भारी दोमट मिट्टी वाली भूमि का ही चयन करें.
सोयाबीन बुवाई के लिए खेत की तैयारी
खेत की तैयारी के लिए किसान रबी फसल की कटाई (harvesting of rabi crops) के बाद मई के महीने में तीन वर्षों में एक बार गहरी जुताई, और आमतौर पर सामान्य जुताई करके खेत को खुला छोड़ दें. ऐसा करने से किसान सोयाबीन फसल में लगने वाले कीट और रोग, सूक्ष्म जीवों से बच सकते हैं. साथ ही अनचाहे खरपतवारों से भी छुटकारा मिलेगा. किसान बुवाई से पहले खेत में एक-दो बार कल्टीवेटर या हैरो चलाकर पाटा लगाकर उसे समतल बना लें.
सोयाबीन बीजोपचार
सोयाबीन बुवाई से पहले किसान बीज को 2 ग्राम थिरम + एक ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम बीज के मुताबिक उपचारित करें. बाद में राईजोबियम और पी एस बी जीवाणु टीके से भी बीज उपचारित करें. बीच उपचारण के बाद बीजों को छाया में सुखा लें और फिर तुरंत बुवाई कर दें.
सोयाबीन बुवाई
उपचारण के बाद बीजों की बुवाई किसान कतारों में करें. बता दें कि जहां उत्तर भारत के क्षेत्रों में कतार से कतार की दूरी 50 से 60 सेंटीमीटर होनी चाहिए तो वहीं बाकी क्षेत्रों में यह दूरी 35 से 45 सेंटीमीटर की होनी चाहिए. इसके साथ ही पौधों के बीच 5 से 7 सेंटीमीटर की दूरी रखें. लगभग 4 सेंटीमीटर गहराई पर बुवाई करें.
खेती में पोषक तत्व प्रबंधन
अगर किसान सोयाबीन का बंपर उत्पादन कर मुनाफा कमाना चाहते हैं तो पोषक तत्व प्रबंधन का ध्यान देना जरूरी है, तभी पौधों का विकास ठीक तरह से हो पाएगा. इसके लिए लगभग 10 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी हुई गोबर की खाद का इस्तेमाल खेत में बुवाई से लगभग 25 दिन पहले करें. सोयाबीन की खेती में पोषक तत्वों के तहत नाइट्रोजन 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, फास्फोरस 70 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, पोटाश 40 से 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, गन्धक 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर शामिल होना चाहिए.
सोयाबीन में सिंचाई
ध्यान देने वाली बात यह है कि सोयाबीन की खेती में सिंचाई मिट्टी, तापमान और मानसून (monsoon) पर निर्भर करती है, अगर बारिश न हो रही हो तो किसान सिंचाई कर दें. पौध अवस्था के दौरान, उनमें फूल आने पर और बाद में दाना आने की अवस्था में खेतों में नमी का होना जरूरी है लेकिन ध्यान रहे कि खेत में जलभराव न होने पाए.
सोयाबीन की कटाई
फसल कटाई या हार्वेस्टिंग (crop harvesting) के तहत जब सोयाबीन की पत्तियों और फलियों का रंग पीला हो जाए, तो समझ लें कि आपकी फसल पककर तैयार हो चुकी है. आप इस दौरान कटाई कर सकते हैं. कटाई के बाद फसल को लगभग तीन से पांच दिन तक खेत में ही सूखने दें जिससे नमी की मात्रा कम हो जाए.