मध्य प्रदेश में सोयाबीन की खेती (Soyabean Farming) बड़े पैमाने पर होती है. इस राज्य के कई जिलों में सोयाबीन की खेती को प्राथमिकता दी जाती है. किसान खेती को सही ढंग से कर सके इसके लिए झाबुआ के कृषि विभाग ने किसानों को कुछ ख़ास सलाह दी है. जिले के किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग के उप संचालक त्रिवेदी ने सोयाबीन कृषकों के लिए उपयोगी सलाह देते हुए कहा कि उत्पादन में स्थिरता की दृष्टि से 2 से 3 वर्ष में एक बार खेत की गहरी जुताई करना लाभप्रद होता है. अतः जिन किसान भाईयों ने खेत की गहरी जुताई नही की हो कृपया गहरी जुताई अवश्य कर लें. उसके बाद बख्खर, कल्टीवेटर एवं पाटा चलाकर खेत को तैयार करें, जिससे की खेत समतल हो जाए.
उपलब्धता अनुसार अपने खेत में 10 मीटर के अंतराल पर सब-सॉयलर चलाए जिससे मिट्टी की कठोर परत को तोडने से जल अवशोषण नमी का संचार अधिक समय तक बना रहे. खेत की अंतिम बखरनी से पूर्व अनुशंसित गोबर की खाद (10 टन प्रति. हे.) या मूर्गी के मल की खाद (2.5 टन हे.) की दर से डालकर खेत में फैला दें. अपने क्षेत्र के लिये अनुशंसित सोयाबीन किस्मों में से उपयुक्त किस्म का चयन कर बीज की उपलब्धता सुनिश्चित करें. उपलब्ध सोयाबीन बीज का अंकुरण परीक्षण (न्यूनतम 70 प्रतिशत) सुनिश्चित करें. बुवाई के समय आवश्यक आदानों जैसे उर्वरक, खरपतवारनाशक, फफूंदीनाशक, जैविक कल्चर आदि का क्रय कर उपलब्धता सुनिश्चित करें.
पीला मोजाईक बीमारी की रोकथाम हेतु अनुशंसित कीटनाशक थायोमिथाक्सम 30 एफ.एस. (10 मि.ली., कि.ग्रा. बीज) या इमिडाक्लोप्रिड 48 एफ.एस. (1.2 मि.ली., कि.ग्रा. बीज) से बीज उपचार करने हेतु क्रय उपलब्धता सुनिश्चित करें.यदि सोयाबीन की बुवाई की बात करें तो वर्षा आने के पश्चात सोयाबीन की बुवाई हेतु मध्य जून से जुलाई के प्रथम सप्ताह का उपयुक्त समय है.
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नियमित मानसून के पश्चात लगभग 4 इंच वर्षा होने के बाद ही बुवाई करना उचित होता है. मानसून पूर्व वर्षा के आधार पर बुवाई करने से सूखे का लंबा अंतराल रहने पर फसल को नुकसान हो सकता है.इसलिए दिए गए दिशा निर्देशों के अनुसार ही खेत में बुवाई करने तभी फायदा मिलेगा.