सब्जियों का सेवन हमारे लिए अपने दैनिक जीवन में हर रोज करना अनिवार्य है तथा उस से कहीं ज्यादा अनिवार्य ये है कि हम ताजी सब्जियों का सेवन करें. ये सब्जियां हमे आवश्यक प्रोटीन, विटामिन व कार्बोहाइड्रेट इत्यादि प्रदान करते हैं. भारत, चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सब्जियों का उत्पादक देश है परन्तु इन सब्जियों की खेती में कई तरह की समस्याएँ आती है जैसे कीड़ों तथा रोगों के प्रकोप, जिसके फलस्वरूप किसानों को 2-100 प्रतिशत तक का भारी नुकसान उठाना पड़ता है तथा पूरी तरह से फसल बर्बाद हो जाती है.
उग्ररूप धारण कर लेने पर रोगों पर नियंत्रण पाना कठिन होता है. इन सभी सब्जियों में सोलेनेसियस समूह की सब्जियां अपना एक अलग महत्व रखती है तथा इनपर एक मुख्य रोगजनक फफूंद फ़यटोप्थोरा का प्रकोप होता है जिसकी वजह से इन सब्जियों के उत्पादन तथा भंडारण में नुकसान होता है. फाइटोप्थोरा की 100 से अधिक प्रजातियां भिन्न-भिन्न पौधों पर अलग-अलग रोगों का कारण बनती है. इनकी प्रजातियां मुख्यतः पौधों की विविधताओं पर निर्भर करती है.
मुख्य रूप से सब्जियों को प्रभावित करने वाली किस्में फ़यटोप्थोरा कैप्सीसी और फ़यटोप्थोरा इन्फेस्टांस है. फ़यटोप्थोरा की प्रजातियां आमतौर पर पौधों की जड़ों पर और तने पर हमला करती है. परन्तु कुछ रोगों में यह पौधों के ऊपरी भाग को भी संक्रमित करती है. जड़ों को सड़ाने वाली प्रजातियां जैसे की फ़यटोप्थोरा सीट्रिकोला कभी-कभी पत्तियों को भी प्रभावित करती है, यदि वह बीजाडू या दूषित मिट्टी से संक्रमित हो जाती है. इसके अलावा कुछ प्रजातियां ऐसी भी है जो जड़ों को प्रभावित ना कर के झुलसा और अंततः पौधों को पूरी तरह से समाप्त करने का कारण बनती है तथा कई प्रजातियां संगरोध सूचीबद्ध में है जो की पौधों की एक विस्तृत श्रंखला को प्रभावित करती है.
फ़यटोफ्थोरा की सबसे प्रमुख प्रजाति है, फ़यटोफ्थोरा इन्फेस्टांस जो की आलू का पछेती झुलसा रोग के लिए जिम्मेदार रोगज़नक़ है और 1845 में आयरिश आलू अकाल का कारण है, जिसने युद्ध जैसे अनुपात की त्रासदी की थी जिसमें आयरलैंड ने अपने 8 मिलियन निवासियों में से 25% को भुखमरी और प्रवास के कारण खो दिया था.
फ़यटोप्थोरा की सभी प्रजातियों में फ़यटोप्थोरा कैप्सिसी सब्जियों में रोग लगाने वाला एक प्रमुख प्रजाति है जो की फ़यटोप्थोरा ब्लाइट, रुट रॉट, क्राउन रॉट, फ्रूट रॉट और डम्पिंग ऑफ के रूप में जाना जाता है. फ़यटोप्थोरा कैप्सिसी का सर्वप्रथम वर्णन लियोन एच लिओनिन द्वारा 1922 में नई मैक्सिको में मिर्च पर किया गया था.
इस रोग के बाद उत्तर मध्य और दक्षिण अमेरिका, यूरोप, एशिया और संयुक्त राज्य के कई राज्यों में अति संवेदनशील सब्जियों पर गंभीर महामारी का कारण बना. अब यह सोलेनेसियस और कुकुरबिटेसी फसलों की सबसे विनाशकारी बीमारियों में से एक है. प्रस्तावित मात्रा से ज्यादा रसायनों का प्रयोग, रोगजनकों में प्रतिरोधक क्षमता पैदा करता है. अतः कीटनाशक अथवा रोगनाशक दवाओं का प्रयोग करते समय पूरी सावधानी बरतनी चाहिए.
रोगजनक (Pathogen)
फ़यटोप्थोरा एक ऊमाइसीट्स (Oomycetes) है जो कि कवक के सामान होता है पर वास्तविक कवक नही है. फ़यटोप्थोरा और सम्बंधित जीवों को आमतौर पर वाटर मोल्ड्स (Water Mould) के रूप में जाना जाता है, क्योंकि वे जलीय वातावरण के लिए अच्छे से अनुकूलित होते है और संक्रमण करने में सक्षम होते है और दुनिया भर में मिट्टी और पानी में सर्वव्यापी हैं. ये पौधों की जड़ों में संतृप्त मिटटी की स्थिति में या पानी की एक परत से ढके हुए पौधों के हिस्सों में पनपते, बढ़ते और प्रजनन करते है और संक्रमण करते हैं.
रोगजनक ज़ूस्पोर (Zoospore) युक्त प्रचुर मात्रा में स्पोरैन्जिया (Sporangia) पैदा करता है, नम स्थिति होने पर प्रत्येक स्पोरंजियम कई एकल कोशिका (Single cell) वाले गतिशील ज़ूस्पोर (Asexual spore) को छोड़ता है जो पानी या हवा की गति से प्रभावी रूप से फ़ैल जाते है.फ़यटोप्थोरा कैप्सिसी भी कलेमाईडोस्पोर (Chlamydospore) पैदा करती है, ऊस्पोर का उत्पादन आम तौर पर बढ़ते मौसम में देर से होता है. 26 विभिन्न कुलों (Family) की 72 से अधिक प्रजातियां जिनमे खेती की गई फसलें सजावटी पौधे (Ornamental Plants) शामिल है. प्राकृतिक क्षेत्र की परिस्थिति में फ़यटोप्थोरा कैप्सिसी कुकुरबिटेसी और सोलेनेसी के पादप कुलों में इन पौधों के केवल एक छोटे उपसमुच्चय पर हमला करता है.
सोलेनेसियस पौधों में फ़यटोफ्थोरा से लगने वाले प्रमुख रोग व उनके रोगजनक
रोगो के नाम
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सम्बन्धित रोगज़नक़
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अधिकतम उपज हानि |
आलू का पछेती झुलसा
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फ़यटोफ्थोरा इन्फेस्टांस
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100%
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टमाटर का पछेती झुलसा
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फ़यटोफ्थोरा इन्फेस्टांस
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100%
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टमाटर का फाइटोफ्थोरा जड़ सड़न
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फ़यटोफ्थोरा मिसोटीएनए वॉर. निकोटीएना
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25%
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बैंगन की फाइटोफ्थोरा झुलसा/जड़ सड़न |
फाइटोफ्थोरा कैप्सिसी |
90%
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मिर्च की फाइटोफ्थोरा झुलसा/जड़ सड़न
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फाइटोफ्थोरा कैप्सिसी |
90%
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शिमला मिर्च की फाइटोफ्थोरा झुलसा/जड़ सड़न
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फाइटोफ्थोरा कैप्सिसी
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60%
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रोग के लक्षण:
आमतौर पर, फाइटोफ्थोरा रूट और क्राउन रोट से संक्रमित पौधों पर देखे गए पहले लक्षण जमीन के ऊपर होते हैं, पर्ण क्लोरोसिस या नेक्रोसिस या टहनी/शाखा मरने के रूप में जमीन के नीचे और जड़ों की बाहरी छाल को देखने के लिए दूर किया जा सकता है. चाहे भीतरी छाल या बाहरी जाइलम परिगलित हो. जड़ के बाहरी ऊतक आसानी से झड़ जाते हैं और द्वितीयक और तृतीयक जड़ों की उल्लेखनीय कमी हो सकती है. सोलेनेसियस पौधों में लगने वाले प्रमुख रोग फ़यटोप्थोरा कैप्सिसी कई सोलेनेसियस फसलों (शिमला मिर्च, बैगन टमाटर) एवं फ़यटोफ्थोरा इन्फेस्टांस आलू में बीज सड़न और झुलसा का कारण बनती है जिसमे पौधों की जड़ों में नीचे का तना फीका पड़ जाता है.
सफ़ेद मइसीलियम की परत बाद की परिस्थितियों में झुलसे हुए पौधों के संक्रमित क्षेत्रों को ढक लेती है. झुलसा रोग के लक्षण में पत्तों के किनारों से काले रंग के जलसिक्त धब्बे पाए जाते हैं जिससे पत्ता झुलस जाता हैं व तनों एंव कच्चे फलों पर जलसिक्त धब्बे पाए जाते हैं, जिनसे बरसात के मौसम में सड़न प्रांरभ होती है तथा काफी नुकसान होता है. परिपक्व पौधों पर फ़यटोप्थोरा कैप्सिसी स्पीशीज कई प्रकार के लक्षण पैदा कर सकते है जो की पौधों पर भिन्न-भिन्न हो सकते है.
संक्रमण को अक्सर पहली बार मुरझाने वाले और पूरी तरह से ढह गए पौधों के समूह के रूप में देखा जाता है.
जड़ के नष्ट होने के कारण पौधे मिट्टी से आसानी से ऊपर आ जाते हैं. संक्रमित जड़ें और तने काले और दिखने में पानी से लथपथ होते हैं.
सफेद वृद्धि, पाउडर चीनी के समान, संक्रमित फल और तने को ढक लेती है .
तना और पत्ती के पेटीओल पर हल्के से गहरे भूरे, पानी से लथपथ और अनियमित घाव होते हैं. पौधों के गिरने से पहले पत्तियों पर बड़े अनियमित भूरे धब्बे पौधों में गंभीर संक्रमण का परिणाम होता है.
फल पर नरम, पानी से लथपथ गड्ढे विकसित होते है. संक्रमण शुरू हो सकता है जहां फल मिट्टी से संपर्क करता है, जहां तना फल से जुड़ता है, या एक यादृच्छिक गोलाकार स्थान के रूप में. संक्रमित फल नरम होते हैं, आसानी से फट जाते हैं और अक्सर गिर जाते हैं.
कुछ मामलों में, कटाई के बाद फलों पर संक्रमण दिखाई दें सकता है.
प्रबंधन राणनीति:
पौधों की प्रतिरोधी किस्में उगानी चाहिए .
उचित जलनिकास वाली मृदा या खेत का चुनाव करना चाहिए .
संभव हो तो जमीन से उठे हुए बीजसैया का चुनाव तथा प्लास्टिक या गीली घास से बीजसैया को ढकना चाहिए.
सिंचाई के लिए सतही जल (तालाब या नाला) का उपयोग न करें क्योंकि यह संक्रमित हो सकता है.
रोग ग्रसित पौधों को उखाड़ कर खेत से दूर हटा देना चाहिए.
समस्या ग्रसित क्षत्रों से परिपक्व फसलों को जल्द से जल्द हटा लेना चाहिए.
कृषि उपकरणों को भलीभांति साफ़ कर के ही प्रयोग करना चाहिए. फसल चक्र में फ़यटोप्थोरा से ग्रसित ना होने वाले फसलों का भी चुनाव करे, जैसे- गेहूं, धान, मक्का गन्ना आदि.
जैविक सूक्ष्मजीवों व जैविक कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए कुछ जैविक सूक्ष्म जीव निम्नवत है
स्ट्रेप्टोमाइसेस लिडिकस
ट्राइकोडर्मा
बेसिलस एमाइलोलिफेशियन्स
बेसिलस सबटिलस
वर्तमान में, फाइटोफ्थोरा को नियंत्रित करने के लिए अपेक्षाकृत कम कवकनाशी उपलब्ध हैं. एक या एक से अधिक फसलों पर
प्रोपामोकार्ब
एट्रिडियाज़ोल
फ़ॉसेटाइल एल्युमीनियम
मेटलैक्सिल का परीक्षण उपुक्त पाया गया है.
लेखक-
अजय कुमार मिश्रा- रिसर्च फेलो, संरक्षित खेती प्रौद्योगिकी केंद्र भाकृअनुप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली
अमृता दास और दीबा कामिल- वरिष्ठ वैज्ञानिक प्लांट पैथोलॉजी विभाग भाकृअनुप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली
हेमलता भारती- वैज्ञानिक (एसएस),संरक्षित खेती प्रौद्योगिकी केंद्र भाकृअनुप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली
References:
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