जिप्सम वह रासायनिक मृदा सुपालक है जिसके प्रयोग से उसरौली मृदा का सुधार होता है. जिप्सम राजस्थान में विभिन्न स्थानों पर पाया जाता है. जिसके प्रयोग से यह मुदा में उपस्थिति हानिकारक लवणों को निकालकर खत्म कर देता है और इसे कृषि योग्य बनाता है. पौधों को कैल्शियम की पूर्ति करता है. इसके अतिरिक्त जिस मृदा में कैल्शियम तथा सल्फर की कमी होती है, वहां पर जिप्सम प्रयोग से मृदा में उपस्थित अनुपलब्ध पोषक तत्थ उपलब्ध अवस्था में आ जाने के कारण फसलों द्वारा आसानी से ग्रहण कर लिये जाते हैं.
जिप्सम का प्रयोग:
जिप्सम का प्रयोग रेहली भूमि जिसका पीएच मान 9 तक हो उसमें प्रयोग किया जाता है. इसके प्रयोग से काली क्षारीय भूमियों में पाया जाने वाला सोडियम कार्बोनेट, सोडियम सल्फेट में बदल जाता है जो घुलकर नीचे चला जाता है. जिप्सम का प्रयोग करने से पहले भूमि को बारीक पीसकर खेत में एक समान बिखेरकर जुताई कर दी जाती है. जिप्सम प्रयोग के बाद खेत में पर्याप्त नमी बनाये रखना आवश्यक है.
जिप्सम के प्रयोग से लाभ:
जिप्सम के प्रयोग से निम्नलिखित लाभ हैं:
1.जिप्सम प्रयोग से मृदा में उपस्थित हानिकारक लवणों का निशान होकर मृदा में सुधार होना.
2. मृदा में लाभदायक जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होने से वायुमण्डल की नत्रजन का यौगिकीकरण होना.
3. मृदा के पी. एच. मान में सुधार होना तथा जल शोषण शक्ति का बढ़ जाना.
4. मृदा में वायु संचार की वृद्धि होने से पौधों की वृद्धि एवं विकास सुचारू रूप से होना.
5. मृदा में उपस्थित अन्य पोषक तत्वों का आसानी से उपलब्ध हो जाना.
सामान्यतः जिप्सम का प्रयोग सभी प्रकार की फसलों में किया जा सकता है. जिप्सम प्रयोग करने से इन्हें मृदा सुधारक के साथ-साथ मुख्यतः जिंक (जस्ता) तथा सल्फर की आपूर्ति भी करता है. जिंक तथा सल्फर देकर ही धान, गेहूं, दलहनी, तिलहनी तथा सब्जियों की फसलों का इन पोषक तत्वों की आपूर्ति करके फसलों की उपलब्धता में वृद्धि करते हैं.
सामान्यतः ऊसर भूमियों को छोड़कर तिलहनी व दलहनी फसलों में 3 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की दर से जिप्सम के प्रयोग की संस्तुति की जाती है.
बुंदेलखंड के झांसी एवं चित्रकूट धाम मण्डल में गत वर्षों में कम वर्षा होने तथा भूमि के जल का हैण्डपंप कुओं एवं नलकूपों द्वारा भू-जल का अधिक दोहन करने से भूमि जल का जल स्तर दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है जिससे कुओं आदि में जल कम हो गया है अथवा सूख गये है.
उक्त समस्या के निराकरण हेतु भू-जल सम्मान के सस्ते उपाय जैसे- रिचार्ज पिट द्वारा कुओं के जल स्तर में वृद्धि हेतु उसके ऊपरी साईड पर गढ्ढों का निर्माण एवं नलकूपों का जल स्तर बढ़ाने के लिये नलकूप के चारों तरफ गड्ढा खोदकर जल के स्तर की वृद्धि एवं जल स्तर को नियंत्रण किया जा सकता है.
1. रिचार्ज पिट द्वारा –
इस विधि के माध्यम से उन क्षेत्रों में जहां पर भूमि का जल स्तर मध्यम गहराई पर होता है तथा भूमि की गहराई में कठोर परत के आ जाने से वर्षा के पानी का रिसाव नहीं हो पाता है. यहां पर तीन मीटर या उससे अधिक गहराई में आने वाली भूमि की तहों की कठोर परत को तोड़ देने से अधिक रिसाव दर से भूमि में पानी का पुनर्भरण होता है, बरसात में बहने वाले नाले के पानी को इस विधि द्वारा आसानी से भूमि के जल स्तर में वृद्धि हेतु उपयोग किया जा सकता है.
रिचार्ज पिट तैयार करने के लिए बरसात में बहने वाले नाले अवरोध बांध के ऊपर अथवा तालाब में दो प्रकार के रिचार्ज पिट बनाकर जल का पुनर्भरण किया जा सकता है.
पहली विधि:-
इसमें नाले/अवरोध बांध/तालाबों में 2 मीटर व्यास के गट्टे तथा 3 मीटर गहराई की साईज में गछे की खुदाई की जाती है. तथा उसमें नीचे से पहले मीटर में (20 से 25 कि० प्रा० ) यो बोल्डर तथा दूसरे मीटर में 40 मीमी0 गिट्टी / प्रेविल तथा 0.50 मीटर में मोटी वालू/रेत/मोरंग भर दी जाती है एवं 0.50 मीटर खाली रखा जाता है.
दूसरी विधि:-
इसमें भी नाले/अवरोध वध/तालाब में जहां पर 3 मीटर से अधिक गहराई में रिचार्ज पिट से पानी का पुनर्भरण किया जाता है. इसमें 1.2 मीटर व्यास का गढ़वा तथा मीटर गहराई तक खुदाई की जाती है, इसके पश्चात गढ्ढे के बीचों बीच 10 सेमी व्यास का चोर 5 मीटर या उससे अधिक गहराई का किया जाता है. बोर तथा गढ्ढे के 0.30 मीटर गहराई में 03 से 06 मिमी0 साइज के रोविल/कंकड़ भरे जाते हैं तथा रोग भाग में मोटी बालू रेती भर दी जाती है.
2. कुआं से भू-जल रिचार्ज-
कुओं में भू-जल रिचार्ज के लिये अत्यंत सरल तकनीक उपलब्ध है. इस तकनीक में बरसात के पानी के बहाव को मोड़कर कुआं के पास लाया जाता है. कुओं में खेत के पास की सड़क अथवा अपने ही खेत को बहकर बाहर जाते हुये पानी को आसानी से मोड़कर डाला जा सकता है.
गांव के सूखे कुआं को रिचार्ज करने हेतु कुओं के ऊपर की ओर से 3 से 6 मीटर दूरी पर 3 मीटर लम्बा, 3 मीटर चौड़ा और 3 मीटर गहरा गड्ढा खोदा जाता है. गढ्ढे के नीचे से गढ्ढे और कुआं को 3 इंच व्यास के पाईप से जोड़ दिया जाता है. खोदे गये गड्ढे में नीचे की ओर से मीटर तक बड़े पत्थर, मीटर तक गिट्टी तथा सबसे ऊपर आधा मीटर में बालू रेती भर दी जाती है. सबसे ऊपर फिल्टर का आधा मीटर भाग खाली रखा जाता है ताकि बरसात का पानी उसमें मर सके. अब खेत में गिरने वाले बरसात के पानी का बहाव नाली बनाकर इस फिल्टर की ओर मोड़ दिया जाता है.
बरसात के समय पानी छानकर कुओं में आता है और कुबे के माध्यम से भूमिगत जल में रिचार्ज किये गये कुओं में रबी की फसल में एक पानी अधिक दिया जा सकता है.
यदि खेत के पास कोई नाला हो तो बरसात में उसके बहते हुए पानी को भी कुआं में डालकर रिचार्ज के लिए उपयोग किया जा सकता है. इस नाले में भी बोल्डर चेक या इस प्रकार की अन्य स्थान किफायती एवं अस्थायी संरचनाओं के रूप में आता है. इस प्रकार में भण्डारण किया जा सकता है. यह रोका हुआ पानी कुओं द्वारा रिचार्ज करने के काम में लिया जा सकता है.
प्रथम मानसून वर्षा से अगस्त माह के अन्त तक साधारणतः कम से कम 4-5 बार पानी रिचार्ज की व्यवस्था युक्त खाली कुओं में भरकर जमीन की उन्हीं परतों में चला जायेगा. जहां से वह कुओं में सामान्य तौर पर झिररियों के रूप में आता है जिस प्रकार बारिस के मौसम के बाद रिचार्जिंग के रूप में अतिरिक्त रूप में जमा किया गया पानी सिंचाई के लिये आवश्यकता पर पहले से अधिक मात्रा में लिया जा सकता है.
इस पानी में गाद एवं मिट्टी के बारीक कण मिले होते हैं. चूंकि इन कणों के कुएं की तली या दीवारों पर जमने से भू-जल रिचार्ज की मात्रा घटने का अंदेशा होगा और अन्त में वह रुक ही जायेगा. इसलिए गाद तथा मिट्टी के इन कणों को कुओं में जाने से पहले ही रोकना जरूरी होता है. इसलिए पानी के खेत में प्रवेश या निकलने के स्थान पर 3 मीटर लम्बाई एवं उतनी ही चौड़ाई तथा कोपरा जैसी अपेक्षाकृत अधिक अपराग्यम परते आने तक अथवा 3.5 मीटर गहरा एक पोखर या गड्डा बनाकर उसमें बड़े- बड़े पत्थर गिट्टी तथा रेत की परतें बिछाकर फिल्टर बनाया जा सकता है, जिसे समीपस्थ नाले एवं रिचार्जिंग के लिये प्रयुक्त कुआं से जोड़ा जा सकता है.
कई स्थानों पर बारिश के पानी के गिरने की दर तेज होने की वजह से या कुओं में अपेक्षाकृत कम रिसने वाली परतें होने पर उससे पानी के रिचार्ज होने की दर अपेक्षाकृत कम होने के कारण कुआं वैसे ही भर जाता है. ऐसे स्थानों पर बरसात के अतिरिक्त पानी को कुएं में डालने से पहले उससे अलग समुचित स्थान पर इकट्ठा करने की व्यवस्था करनी होगी. वैकल्पिक तौर पर, यदि कुएं की गहराई अपर्याप्त महसूस हो तो उसे भी बढ़ाने पर सोचा जा सकता है.
नलकूपों से रिचार्ज
इस सरल तकनीक द्वारा बरसात के फालतू बह जाने वाले पानी को ट्यूवबैल के पास बनाये गये फिल्टर के माध्यम से शुद्ध करके भू-जल में मिलाया जाता है. इस विधि में बरसाती पानी को नलकूप की ओर मोड़ा जाता है और रेत बजरी, कांकर इत्यादि के फिल्टर से उसे छानकर नलकूप के ज़मीन के अन्दर उतारने की कोशिश की जाती है, जिससे वह भू-जल भण्डार बढ़ाने में सहायक हो.
ट्यूबवेल के क्रासिंग पाईप के चारों तरफ 1.25 मीटर (सवा मीटर) गोलाई का तीन मीटर गहरा खोदना होता है. इससे 3 मीटर गहराई तक का क्रासिंग पाईप साफ नजर आने लगता है. अब इस क्रासिंग पाईप पर ऊपर से तीन मीटर गहराई तक चारों तरफ 5 से 10 सेमी0 यो अन्तर से 8 से 10 मि.मी. साईज के छेद किये जाते हैं. छिद्रित क्रासिंग पाईप (लगभग 3 मीटर लम्बे) पर नारियल की रस्सी गोल-गोल घुमाते हुए कसकर बांध दी जाती है. इससे पानी के साथ मिट्टी के महीन कण, बालू एवं अन्य गंदगी नलकूप में नहीं जा पाती है.
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