सूरजमुखी एक तिलहनी फसल है. इसकी खेती मुख्य रुप से भारत के कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और बिहार के राज्यों में की जाती है. देश में पहली बार सूरजमुखी की खेती 1969 में उत्तराखंड में की गई थी. यह एक ऐसी तिलहनी फसल है, जिसकी खेती किसी भी मौसम में की जा सकती है. किसान इस फसल को खरीफ, रबी और जायद तीनों समय में उगा सकते हैं.
बीज का चयन
सूरजमुखी के बीज को खेतों में बोने से पहले इसका उपचार अत्यन्त जरुरी होता है. इसके लिए सूरजमुखी के बीज को 24 घंटे के लिए पानी में भीगों दें और ठीक बुवाई से पहले इसे खूब अच्छी तरह से सुखा लें. बता दें बीजों पर फफूंद से बचाव के लिए कुछ ग्राम मेटालैक्सिल की छिड़काव जरुर करें.
सिंचाई का तरीका
सूरजमुखी को पूरी तरह से विकसित होने में 8 से 10 बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है. पहली बुवाई के 15 से 20 दिन बाद पौधों पर स्प्रिकलर करना चाहिए और फिर जरुरत अनुसार बाद में 10 से 15 दिन के अन्तराल पर पौधों में पानी देते रहना चाहिए. आपको बता दें कि सूरजमुखी के पौधों में फूल निकलते समय इनका वजन काफी बढ़ जाता है तो इस समय इनका विशेष ख्याल रखना होता है.
कीटों से सुरक्षा
सूरजमुखी के पौधों में दीमक, हरे फुदके और डसकी बग आदि जैसे कीड़ों के लगने की संभावना बहुत रहती है. इसके नियंत्रण के लिए रसायन जैसे मिथाइल ओडिमेंटान, 25 ई सी या फेन्बलारेट आदि रसायनों को पानी में डालकर पौधों पर जरूर छिड़काव करना चाहिए.
फसल की कटाई
सूरजमुखी के पौधों की कटाई सही समय पर करनी चाहिए. देर से कटाई करने पर इन पर दीमक लगने की खतरा बना रहता है. यह फसल तब काटी जाती है जब इसके पत्ते सूख जाए और पौधे का सिर वाला हिस्सा पीला हो जाए.
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बीजों का भंडारण
सूरजमुखी के बीज को थ्रेसर की मदद से अलग कर लेने के बाद इसका भंडारण घर के किसी सूखे स्थान पर करना चाहिए. इसके बीजों से तेल निकालने के लिए बीज का अच्छी तरह से सूखना बहुत ही जरुरी होता है. बीजों से 3 से 4 महीने के अंदर तेल अवश्य निकाल लेना चाहिए अन्यथा तेल में कड़वाहट आ जाती है.