मटर एवं अन्य दलहनी फसलें पोषण से भरपूर और कृषि के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होती हैं. हालांकि, इन फसलों को जड़ सड़न रोग और पौधों के पीला पड़ने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. यह समस्याएं विशेष रूप से ठंडी और गीली मिट्टी में या जलजमाव की स्थिति में उत्पन्न होती हैं. इनके कारण न केवल उत्पादन में भारी कमी होती है बल्कि फसल की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है. इस लेख में इन समस्याओं के लक्षण, कारण और प्रभावी प्रबंधन उपायों पर विस्तार से चर्चा की गई है.
मटर में जड़ सड़न और पीला होने के लक्षण
- जड़ों का सड़ना: जड़ें काले या भूरे रंग की हो जाती हैं और गलने लगती हैं.
- जड़ प्रणाली का सिकुड़ना: जड़ों में गांठों का आकार छोटा हो जाता है, जिससे पोषक तत्वों का अवशोषण बाधित होता है.
- पौधों का पीला पड़ना: पौधों की निचली पत्तियां पीली हो जाती हैं और बाद में पूरी तरह मुरझा जाती हैं.
- पौधों का कमजोर होना: पौधे कमजोर दिखते हैं और उनकी वृद्धि रुक जाती है.
- पौधों का गिरना: गंभीर संक्रमण की स्थिति में पौधे गिरने लगते हैं और पूरी फसल नष्ट हो सकती है.
मटर में जड़ सड़न और पीला होने के मुख्य कारण
- कवकीय रोगजनक: फ्यूसैरियम, राइजोक्टोनिया, और पिथियम जैसे मिट्टी में पाए जाने वाले कवक.
- जीवाणुजनित रोगजनक:रल्स्टोनिया और अन्य रोगाणु.
- खराब मृदा स्वास्थ्य:अत्यधिक नमी, जलजमाव, और भारी मिट्टी रोग को बढ़ावा देती है.
- अत्यधिक सिंचाई और जलभराव:जड़ों के सड़ने का मुख्य कारण.
जड़ सड़न एवं पीला होने की समस्याओं का प्रबंधन
समस्या के प्रबंधन के लिए समग्र और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है. इसमें जैविक, रासायनिक और सांस्कृतिक उपायों का समुचित मिश्रण शामिल है.
- फसल चक्रण का पालन करें
एक ही खेत में लगातार मटर या अन्य दलहनी फसलें न लगाएं. दलहनी फसलों के बाद गैर-दलहनी फसलें (जैसे गेहूं या मक्का) लगाएं. इससे रोगजनकों का जीवन चक्र टूटता है.
- मृदा स्वास्थ्य में सुधार करें
मिट्टी की जल निकासी का ध्यान रखें. जैविक खाद (कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट) का उपयोग कर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाएं. मिट्टी परीक्षण कर आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति करें.
- प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग
रोग प्रतिरोधी बीजों और किस्मों का चयन करें. स्थानीय कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क कर क्षेत्रीय उपयुक्त किस्मों की जानकारी लें.
- बीज उपचार
बुवाई से पहले बीजों को फफूंदनाशकों से उपचारित करें. कार्बेंडाजिम या थायरम (2-3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) का उपयोग करें. जैविक विकल्प के रूप में ट्राइकोडर्मा के घोल का प्रयोग करें.
- सिंचाई प्रबंधन
जलभराव से बचें और अधिक सिंचाई न करें. सिंचाई की समय-सारणी फसल की आवश्यकताओं के अनुसार बनाएं.
- जैविक नियंत्रण
ट्राइकोडर्मा हरजियानम और पसिलोमायसिस लिलासीनस जैसे जैविक एजेंटों का उपयोग करें. मिट्टी में जैविक नियंत्रण एजेंटों का नियमित छिड़काव करें.
- पोषक तत्वों का संतुलित प्रबंधन
नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का सही अनुपात में उपयोग करें. माइक्रोन्यूट्रिएंट्स जैसे जिंक और बोरॉन की कमी को पूरा करें.
- क्षेत्र की स्वच्छता बनाए रखें
संक्रमित पौधों और फसल अवशेषों को हटाकर नष्ट करें. कृषि उपकरणों को उपयोग के बाद अच्छी तरह से साफ करें.
- रासायनिक नियंत्रण
आवश्यकता पड़ने पर कार्बेंडाजिम या मेटालेक्सिल (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) का उपयोग करें. रसायनों का उपयोग पर्यावरणीय प्रभावों को ध्यान में रखते हुए सीमित करें.
- नियमित निगरानी
फसल की नियमित निगरानी करें. प्रारंभिक अवस्था में लक्षणों की पहचान कर उपचार करें.