बांस की खेती किसानों के लिए कमाई का एक बेहतरीन सोर्स है. ऐसा इसलिए, क्योंकि एक बार लगाने के बाद बांस से कई सालों तक कमाई की जा सकती है. यही वजह है की इसे ग्रीन गोल्ड कहा जाता है. भारत में पहले बांस की कटाई पर रोक थी. इसे अपराध की श्रेणी में रखा गया था, लेकिन अब इसे घासों की श्रेणी में कर दिया गया है, ताकि किसान इसकी खेती से कमाई कर सकें. इसी बीच शोधकर्ताओं ने मीठे बांस की एक विशेष प्रजाति को तैयार करने में सफलता हासिल की है, जो किसानों की आय को कई गुना तक बढ़ा सकती है. खास बात यह है की इससे एथेनॉल भी बनाया जा सकता है, जिससे आने वाले समय में देश के साथ-साथ किसानों को बड़ा फायदा होगा.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह शोध बिहार के जिला भागलपुर में टीएनबी कॉलेज स्थित प्लांट टिश्यू कल्चर लैब (पीटीसीएल) में किया गया है. यहां मीठे बांस के पौधे व्यावसायिक दृष्टि से वृहद स्तर पर तैयार किये जा रहे हैं. किसान इस व्यवसाय को अपनाकर अपनी आय को दोगुना कर सकेंगे. अब इससे ग्रामीण आर्थिकी को समृद्ध करने हेतु नई संभावनाओं का आगमन होगा. बांस की खेती बिहार की अर्थव्यवस्था को बदलने में पूरी तरह सक्षम हो सकती है, क्योंकि वर्तमान समय में इस बांस की मांग अधिक है. आज विश्व में कई देशों में इससे खाद्य उत्पाद भी बनाए जाते हैं. इसके साथ ही इस प्रजाति का उपयोग दवाइयां बनाने में भी किया जा रहा है.
सभी मौसम और मिट्टी में कर पाएंगे खेती
बांस की इस प्रजाति की खेती किसी भी मौसम व सभी प्रकार की मृदा में की जा सकेगी. परीक्षण के दौरान एनटीपीसी से निकले राख के ढेर पर भी इसके पौधे उगाने में शोधकर्ताओं को सफलता हासिल हुई है.
दवाई और खाद्य उत्पादों में भी उपयोगी
खाद्य प्रसंस्करण इकाई के माध्यम से बांस के इन पौधों से विभिन्न प्रकार के खाद्य उत्पाद तैयार किये जा सकेंगे. इनका उपयोग चीन, ताईवान, सिंगापुर, फिलीपींस आदि देशों में बड़े स्तर पर चिप्स, अचार, कटलेट जैसे उत्पाद तैयार करने में किया जाता है. अब भारत में भी इसका उपयोग व्यावसायिक तौर पर हो सकेगा. इससे खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को काफी बढ़ावा मिलेगा. इसके साथ ही इन पौधों से एंटीऑक्सीडेंट और कैंसर जैसे रोगों की दवाइयां भी बनाई जा सकेंगी.
एथेनॉल उत्पादन में मिलेगी मदद
बांस के पौधे कार्बन डाइऑक्साइड को अच्छी तरह से अवशोषित कर कार्बनिक पदार्थ बनाते हैं. ये पदार्थ मृदा में मिलकर, मृदा की उर्वराशक्ति भी बढ़ाते हैं. बांस की सहायता से बायो एथेनॉल, बायो सीएनजी एवं बायोगैस उत्पादन पर भी शोध प्रगति पर है. भारत में बांस की 135 से अधिक व्यावसायिक प्रजातियां पाई जाती हैं और इनका औद्योगिक उपयोग भी है. बांस की खेती से पेपर इंडस्ट्री, फर्नीचर सहित अन्य उद्योगों को काफी बढ़ावा मिलता है. निकट भविष्य में बांस को प्लास्टिक का सबसे बड़ा विकल्प माना जा रहा है.