कृषि क्षेत्र में हर दिन किसानों के जुगाड़ और तकनीक की खबरें सामने आती रहती हैं. कभी यह जुताई करने के लिए घोड़े और बैल की जोड़ी बना देते हैं, तो कभी कटाई करने के लिए देसी मशीन. ऐसे में एक ख़बर राजस्थान से भी आ रही है जहां सुंदरम वर्मा नामक किसान ने मात्र 1 लीटर पानी में पूरा पेड़ उगाया है. अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसी कौनसी तकनीक है जिससे कम पानी में फसल उगाना संभव है तो आपको बता दें कि इसका खुलासा नीचे लेख में विस्तार से किया गया है.
कौन है सुंदरम वर्मा (Who is Sundaram Verma)
प्रसिद्ध भारतीय पर्यावरणविद् और पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित सुंदरम वर्मा ने कृषि जागरण से अपनी क्रांतिकारी कृषि तकनीक के बारे में बात की, जिसे 'ड्राई लैंड फार्मिंग' (Dry Land Farming) कहा जाता है. वर्मा राजस्थान के सीकर में दंता नामक गांव के रहने वाले किसान हैं. इन्होंने 1972 में स्नातक की पढ़ाई पूरी की और इसके तुरंत बाद इन्होंने अपने क्षेत्रों में काम करना शुरू कर दिया था. वर्मा बताते हैं कि वे कृषि वैज्ञानिकों के सामने आने वाली समस्याओं के बारे में सवाल उठाते थे और इससे उनके साथ उनके संबंध मजबूत होते थे.
पानी की कमी के चलते खुद से ही ली प्रेरणा (Inspired by Self due to Lack of Water)
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इन्होंने ये एक्सपेरिमेंट और खोज अपने आगे आने वाली परेशानियों से किया है, क्योंकि राजस्थान जैसे क्षेत्रों में किसान अक्सर पानी की कमी से झुझते हैं.
क्या सिर्फ एक लीटर पानी से बाजरा उगाया जा सकता है (Grow Millet in Just 1 Litre Water)
1982 तक वर्मा की पहचान राज्य के प्रसिद्ध युवा किसानों में हो चुकी थी. उनकी शिक्षा ने भी उन्हें अपनी पूरी क्षमता का एहसास कराने में मदद की. उन्हें नई दिल्ली में एक सम्मानित प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के लिए चुना गया जहां उन्होंने शुष्क भूमि खेती (Dry Land Farming Techniques) सीखी थी. इस तकनीक का उपयोग मानसून के पानी को बाद में सर्दियों में खेती के लिए इस्तेमाल करने के लिए किया जाता था.
वर्मा ने महसूस किया कि उनके पैतृक राज्य राजस्थान में मानसून के मौसम में उगाई जाने वाली फसलों (Monsoon Season Crops) के लिए भी पर्याप्त पानी नहीं है. वर्मा ने इसके बाद जो किया वह पेड़ों पर, फसलों पर इस्तेमाल होने वाली सूखी खेती के सिद्धांतों को लागू करना था. जिसके बाद उनके प्रयोग सफल हुए. उन्होंने कई क्षेत्रों में कई प्रकार के पौधों के साथ अपने निष्कर्षों का परीक्षण किया और वैज्ञानिक नीति अपनाकर पौधों के ऊपर काम करते रहे.
राजस्थान के तकनीकी किसान (Techniques of Farmer)
वर्मा अब तक राजस्थान में पचास हजार से अधिक पेड़ लगा चुके हैं. प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त करने के बाद, उन्हें अन्य किसानों के साथ सहयोग करने और उन्हें पेड़ उगाने की अपनी तकनीक सिखाने के लिए कई प्रस्ताव मिले.
हालांकि, इन योजनाओं को कोविड -19 महामारी के कारण विफल कर दिया गया था. अपने अनूठे निष्कर्षों का विस्तार करने के उनके प्रयास अभी तक नहीं रुके हैं. किसान उनसे सीखने के लिए उनके खेत पर गए हैं और उन्होंने खुद निर्देशों के जरिए उनकी मदद की है. वर्मा ने कृषि जागरण से बात करते हुए कहा कि, “हम अपने प्रयासों में निरंतर हैं.”
वर्मा के नाम कई सम्मान हैं. उन्हें द इंटरनेशनल डेवलपमेंट रिसर्च सेंटर, कनाडा, द इंटरनेशनल क्रॉप साइंस, नई दिल्ली और कई अन्य अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और राज्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है.
किसानों के लिए शुष्क खेती की सलाह (Suggestion for Dry Land Farming)
वर्मा इस बात पर जोर देते हैं कि सभी किसान अपनी कृषि गतिविधियों में संतुलन बनाए रखें. वह उनसे विभिन्न प्रकार की फसलें उगाने और पेड़ लगाने के महत्व को समझने का आग्रह करते हैं. इससे किसानों को ना केवल उन्हें मौद्रिक लाभ होगा बल्कि इससे पर्यावरण संरक्षण का कार्य भी उचित रूप से हो सकेगा.
क्या है शुष्क भूमि खेती (Dry Land Farming)
शुष्क भूमि खेती का तात्पर्य, बिना सिंचाई के पूरी तरह से प्राकृतिक वर्षा के तहत फसलों की खेती करना है. शुष्क क्षेत्रों में कम और अनियमित वर्षा होती है और सिंचाई की कोई सुनिश्चित सुविधा नहीं होती है. शुष्क भूमि पर खेती करना कृषि अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अधिकांश मोटे अनाज की फसलें, दलहन, तिलहन और कच्ची कपास इन्हीं भूमि पर उगाई जाती हैं. शुष्क क्षेत्रों में मात्र 500 और 1100 मिमी के बीच ही पूरे सालभर में वर्षा होती है.
शुष्क भूमि खेती में ध्यान देने वाली बातें (Tips to follow in Dry Land Farming)
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मिट्टी और जल संसाधनों का संरक्षण करने के लिए सबसे बेहतर तकनीक में से एक है.
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हमें उच्च उपज देने वाली और सूखा प्रतिरोधी फसल किस्मों को विकसित करने की आवश्यकता है.
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कम लागत और स्थानीय रूप से अनुकूल कृषि उपकरण की जरूरत है.
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विवेकपूर्ण और महंगे रसायनों के उपयोग को संतुलित करें.
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आदानों की खरीद के लिए उचित वित्तीय उपलब्धता और शिक्षा होनी चाहिए.
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फसलों को कवर करने के लिए अच्छी मार्केटिंग और मूल्य नीति की जरूरत है.
भारत में शुष्क भूमि की खेती की समस्याएं (Drawbacks of Dry Land Farming)
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उपज की गुणवत्ता
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सीमित फसलों का चयन
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नमी का दबाव और अनिश्चित वर्षा
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वर्षा जल का प्रभावी भंडारण
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शुष्क कृषि उत्पादों का निपटान
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संरक्षित नमी का उपयोग
शुष्क भूमि कृषि तकनीक (Techniques for Dry Land Farming)
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मुख्य रूप से संग्रहित मिट्टी (Stored Soil) के संरक्षण सहित समय पर तैयारी और बीज बोने का कार्य करना चाहिए.
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उन्नत फसलों की किस्मों का उपयोग करना चाहिए जो तनाव का सामना कर सकें. मिट्टी में नमी संरक्षण के लिए गहरी जुताई, सतही खेती और स्टबल मल्चिंग का अभ्यास किया जाना चाहिए.
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वर्षा, सतह और भूजल का उपयोग किया जाना चाहिए. इसके साथ ही, शुष्क अवधि में उपयोग के लिए जल संचयन की प्रक्रिया काफी कारगर है. ऐसे में वाटरशेड एक प्राकृतिक जल विज्ञान इकाई है जो जल संचयन के लिए एक उत्कृष्ट उपकरण है. उचित वाटरशेड प्रबंधन न केवल पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) और अधिक क्षरण (Erosion) को रोक सकता है, बल्कि निम्नीकृत (Degraded Land) भूमि को बहाल किया जा सकता है.
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कंटूर बंडिंग, टेरेसिंग, भूमि ढलान और भूमि समतलन द्वारा मृदा संरक्षण के लिए जुताई का अभ्यास करना चाहिए.
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पानी बचाने के लिए ड्रिप सिंचाई की तकनीक (Drip Irrigation) और पानी के नुकसान को कम करने के लिए नहरों की लाइनिंग का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
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मिश्रित फसल और फसल चक्र (Integrated Farming & Crop Rotation) जैसी कृषि संबंधी पद्धतियां जो की उपज में वृद्धि करती हैं उन फसलों का अभ्यास करना चाहिए.
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इसके अलावा, एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन (Integrated Nutrient Management) पर विशेष जोर देने के साथ अभ्यास किया जाना चाहिए.
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मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए जैव उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए.
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खरपतवार और किट नियंत्रण के लिए इंटरग्रटेड वीड मैनेजमेंट तकनीक अपनाई जानी चाहिए.
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शुष्क भूमि वाले क्षेत्रों को गैर-औपचारिक व्यवसाय जैसे कि पशुपालन, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन, सामाजिक वानिकी आदि को अपनाना चाहिए.
भारत में शुष्क भूमि खेती का योगदान (Dry Land Farming in India)
ध्यान देने वाली बात यह है कि, भारत के खेती वाले क्षेत्र में शुष्क भूमि कृषि का योगदान करीब 68 प्रतिशत है जो 40% मानव और 60% पशुधन आबादी का समर्थन करती है. यह 44 प्रतिशत खाद्य आवश्यकताओं का उत्पादन करती है और यही वजह है कि ड्राई लैंड फार्मिंग भारत की खाद्य सुरक्षा (Food Security) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
समस्या (Problem)
हालांकि, मानसूनी वर्षा के असामान्य व्यवहार के चलते बार-बार सूखा पड़ता है जो गरीब किसानों को प्रभावित करता है. इससे कम जल धारण क्षमता, पोषक तत्वों की कमी, भूजल तालिका में गिरावट, खराब मिट्टी जैसे कारक सामने आ जाते हैं. नतीजतन किसानों की फसल उपज कम होती है और भूमि अवक्रमण ज्यादा होता है.
निष्कर्ष (Conclusion)
सबसे अधिक लाभकारी और पर्यावरण की दृष्टि से उपयुक्त भूमि उपयोग को तैयार करने में एक बहु-विषयक दृष्टिकोण के माध्यम से भूमि संसाधनों का प्रबंधन, शुष्क भूमि कृषि के लिए फसल उत्पादकता, लाभप्रदता और स्थिरता को अधिकतम करने के लिए सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ड्राईलैंड एग्रीकल्चर (CRIDA) के दृष्टिकोण की जरुरत है. इसमें जैव-भौतिक और सामाजिक-आर्थिक संसाधनों की विशेषता, एकीकृत वाटरशेड विकास, वर्षा जल उपयोग दक्षता में सुधार, आकस्मिक फसल योजना, पशुधन खेती के माध्यम से कृषि का विविधीकरण, वैकल्पिक भूमि उपयोग, एकीकृत मिट्टी-पोषक-जल-फसल प्रबंधन, और कुशल कृषि उपकरण हो सकते हैं. भारत में शुष्क भूमि कृषि की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करना है. इनके अलावा, एक फ्रेमवर्क विकसित करना, ऋण उपलब्धता और इनपुट आपूर्ति प्रणाली में सुधार, फसल बीमा का विस्तार और किसानों की भागीदारी मोड में ऑन-फार्म अनुसंधान सह पायलट परियोजनाओं को शुरू करने पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है.