Treat Seeds: रबी फसलों में बीजोपचार एक महत्वपूर्ण कृषि पद्धति है, जिससे बीजों को रोगों और फफूंद से सुरक्षित रखा जाता है और स्वस्थ अंकुरण होता है. बीजोपचार में बीजों को थायरम, कैप्टान, कार्बेंडाजिम, मेटालैक्सिल आदि रसायनों से उपचारित किया जाता है. दरअसल, बीजोपचार से अंकुरण दर में सुधार होता है, पौधों की तेज से वृद्धि के साथ उत्पादन में भी बढ़ोतरी होती है. फसल में रोग के कारक फफूंद रहने पर फफूंदनाशी से जीवाणु रहने पर जीवाणुनाशक से सूत्रकृमि रहने पर सौर उपचार या कीटनाशी से उपाचर किया जाता है.
वही, मिट्टी में रहने वाले कीटों से बीज की सुरक्षा के लिए कीटनाशी से बीज उपचार किया जाता है. वैज्ञानिक तरीकों से बीजोपचार करने में 01 रुपया खर्च करते हैं, तो फसल सुरक्षा में की जानेवाली खर्च में 10 रुपये की शुद्ध बचत होती है. अत: किसानों से अनुरोध है कि बीजोपचार करके ही बीज की बुआई करें.
फसल का नाम |
कारक |
जैविक उत्पाद/रसायन की मात्रा प्रति किलो बीज |
दलहन फसल |
· फफूंदजनित रोग · मिट्टीजनित कीट के लिए · नाइट्रोजन फिक्सेशन बैक्टेरिया के लिए
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· ट्राइकोडर्मा का 5 मिली/ग्राम या कार्बोन्डाजिम 50% घु.चू. का 2 ग्राम · क्लोरपायरीफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. का 6 मि.ली. · राइजोबियम कल्चर (प्रत्येक दलहन का अलग-अलग कल्चर होता है) का 5-6 ग्राम |
मक्का (रबी) सब्जी एवं अन्य |
· फफूंदजनित रोग · मिट्टीजनित कीट के लिए
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· ट्राइकोडर्मा का 5 मिली/ग्राम या कार्बोन्डाजिम 50% घु.चू. का 2 ग्राम · क्लोरपायरीफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. का 6 मि.ली. |
तेलहन फसले/ तोरी/सरसों/ सूर्यमुखी |
· फफूंदजनित रोग · मिट्टीजनित कीट के लिए
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· ट्राइकोडर्मा का 5 मिली/ग्राम या कार्बोन्डाजिम 50% घु.चू. का 2 ग्राम · क्लोरपायरीफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. का 6 मि.ली. |
गेहूं फसल |
· फफूंदजनित रोग · सूत्रकृमि (नेमाटोड) · मिट्टीजनित कीट के लिए
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· ट्राइकोडर्मा का 5 मिली/ग्राम या कार्बोन्डाजिम 50% घु.चू. का 2 ग्राम · 10 प्रतिशत नमक के घोल में बीज को डुबोए फिर छानकर साफ पानी में 2-3 बार धोलें. · क्लोरपायरीफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. का 6 मि.ली. |
सभी फसल |
सूत्रकृमि (नेमाटोड) |
नीम की निबोली का चूर्ण का 100 ग्राम |
आलू फसल में बीजोपचार
आलू फसल में अगात एवं पिछात झुलसा रोग से बचाव के लिए मैन्कोजेब 75 प्रतिशत WP का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से बीज को लगभग आधे घंटे तक डूबाकर उपचारित करें. उसके बाद उपचारित बीज को छाया में सूखाकर 24 घंटे के अंदर बुआई कर देना चाहिए.
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नोट: उपर्युक्त विधियों से यदि फसलों के बीज उपचार संभव न हो तो किसान घरेलू विधि में एक लीटर ताजा गौमूत्र दस लीटर पानी में मिलाकर भी बीजोपचार कर सकते हैं. इसके लिए किसान चाहे तो अपने नजदीकी कृषि विभाग या फिर कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर सकते हैं.