जाड़े का मौसम आने ही वाला है और आने वाले समय में ठंढक का प्रकोप और बढऩे वाला है. इस वर्ष मौसम वैज्ञानिकों ने लंबे समय तक जाड़े का असर होने के साथ ही इसके अधिक पड़ने की संभावना भी जताई है. इसका असर दिखने भी लगा है. दिन-प्रतिदिन तापमान में कमी आ रही है. सुबह और रात के तापमान में काफी गिरावट दर्ज की जा रही है. विशेषकर उत्तर भारत में जाड़े का प्रकोप कुछ अधिक ही रहता है. इसका प्रभाव इंसानों, जानवरों के साथ ही फसलों पर भी पड़ता है. अधिक सर्दी से फसलों की उत्पादकता पर विपरीत असर पड़ता है और परिणामस्वरूप कम उत्पादन प्राप्त होता है. इसलिए सर्दी के मौसम में फसलों को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है. फसलों को शीतलहर एवं पाले से बचाने के लिए क्या क्या किया जा सकता है, यह जानना बहुत ही आवश्यक है अन्यथा संभावित हानि से नहीं बचा जा सकता है.
जब वायुमंडल का तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस या फिर इससे नीचे चला जाता है तो हवा का प्रवाह बंद हो जाता है, जिसकी वजह से पौधों की कोशिकाओं के अंदर और ऊपर मौजूद पानी जम जाता है और ठोस बर्फ की पतली परत बन जाती है. इसे ही पाला पड़ना कहते हैं. पाला पड़ने से पौधों की कोशिकाओं की दीवारें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और कोशिका छिद्र (स्टोमेटा) नष्ट हो जाता है. पाला पड़ने की वजह से कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन और वाष्प की विनिमय प्रक्रिया भी बाधित होती है.
शीतलहर व पाले से फसलों व फलदार पेड़ों की उत्पादकता पर सीधा विपरीत प्रभाव पड़ता है. फसलों में फूल और फल आने या उनके विकसित होते समय पाला पड़ने की सबसे ज्यादा संभावनाएं रहती हैं. पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां और फूल झुलसने लगते हैं. जिसकी वजह से फसल पर असर पड़ता है. कुछ फसलें बहुत ज्यादा तापमान या पाला झेल नहीं पाती हैं जिससे उनके खराब होने का खतरा बना रहता है. पाला पड़ने के दौरान अगर फसल की देखभाल नहीं की जाए तो उस पर आने वाले फल या फूल झड़ सकते हैं. जिसकी वजह से पत्तियों का रंग भूरा रंग जैसा दिखता है. अगर शीतलहर हवा के रूप में चलती रहे तो उससे कम या बिलकुल ही नुकसान नहीं होता है, लेकिन हवा रूक जाए तो पाला पड़ता है जो फसलों के लिए ज्यादा नुकसानदायक होता है.
पाले की वजह से अधिकतर पौधों के फूलों के गिरने से पैदावार में कमी हो जाती है. पत्ते, टहनियां और तने के नष्ट होने से पौधों को अधिक बीमारियां लगने का खतरा रहता है. सब्जियों, पपीता, आम, अमरूद पर पाले का प्रभाव अधिक पड़ता है. टमाटर, मिर्च, बैंगन, पपीता, मटर, चना, अलसी, सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ आदि फसलों पर पाला पड़ने के दिन में ज्यादा नुकसान की आशंका रहती है. जबकि अरहर, गन्ना, गेहूं व जौ पर पाले का असर कम दिखाई देता है. जाड़े में उगाई जाने वाले पौधे 2 डिग्री सेंटीग्रेट तक का तापमान सहन कर सकते हैं. इससे कम तापमान होने पर पौधे की बाहर और अंदर की कोशिकाओं में बर्फ जम जाती है. ऐसे पौधे जिनके कोशिकवो के अन्दर दूध जैसा स्राव बहता है, यथा केला एवं पपीता 10 डिग्री सेंटीग्रेड से कम तापमान होने से ही उनकी वृद्धि प्रभावित होने लगती है , पौधे झुलसे हुए दिखाई देते है.
शीतलहर व पाले से फसल की सुरक्षा कैसे करें ?
नर्सरी के पौधों एवं सब्जी वाली फसलों को लो कास्ट पाली टनल में उगाना अच्छा रहता है या पॉलिथीन अथवा पुवाल से ढक देना चाहिए. वायुरोधी बोर की टाटियां को हवा आने वाली दिशा की तरफ से बांधकर क्यारियों के किनारों पर लगाने से पाले और शीतलहर से फसलों को बचाया जा सकता है.पाला पड़ने की संभावना को देखते हुए जरूरत के हिसाब से खेत में हलकी हलकी सिंचाई करते रहना चाहिए. इससे मिट्टी का तापमान कम नहीं होता है.
सरसों, गेहूं, चावल, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने के लिए सल्फर(गंधक) का छिडक़ाव करने से रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है और पाले से बचाव के अलावा पौधे को सल्फर तत्व भी मिल जाता है. सल्फर का पौधों में रोग रोधिता बढ़ाने में और फसल को जल्दी पकाने में भी सहायक होता है. दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों को बचाने के लिए खेत की मेड़ों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शीशम, बबूल और जामुन आदि लगा देने चाहिए जिससे पाले और शीतलहर से फसल का बचाव होता है.थोयोयूरिया @ 1 ग्राम प्रति 2 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव कर सकते हैं, और 15 दिनों के बाद छिडक़ाव को दोहराना चाहिए.
चूंकि सल्फर (गंधक) से पौधे में गर्मी बनती है अत: घुलनशील सल्फर @ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिडक़ाव करने से पाले के असर को कम किया जा सकता है. पाला पड़ने की संभावना वाले दिनों में मिट्टी की गुड़ाई या जुताई नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से मिट्टी का तापमान कम हो जाता है.
नोट : अगर आप विभिन्न फसलों की खेती करते हैं और इससे सालाना 10 लाख से अधिक की कमाई कर रहे हैं, तो कृषि जागरण आपके लिए MFOI (Millionaire Farmer of India Awards) 2024 अवार्ड लेकर आया है. यह अवार्ड उन किसानों को पहचानने और सम्मानित करने के लिए है जो अपनी मेहनत और नवीन तकनीकों का उपयोग करके कृषि में उच्चतम स्तर की सफलता प्राप्त कर रहे हैं. इससे जुड़ी अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर विजिट करें.