भारत एक कृषि प्रधान देश है. इसमें लगभग सभी प्रकार की फसलों की खेती की जाती है. देश की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या अपनी आजीविका हेतु कृषि पर ही निर्भर है. कृषि की सकल घरेलू उत्पादन(जी.डी.पी.) में भागीदारी लगभग 15 प्रतिशत है.
कृषि का आर्थिक महत्व के साथ सामाजिक महत्व भी है.कृषि को सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधियों में से एक माना जाता है. इसमें पानी और जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग करकेऔर अधिक का उत्पादन बढ़ाना शामिल है.फसल अवशेष कृषककी आय में वृद्धि करता है, तथा रोजगार के अवसरप्रदान करता है.फसल अवशेष का उचित प्रबंधन कर किसान इसका सही उपयोग कर सकते हैं. अवशेष को जलाना प्रकृति के साथ जमीन के लिए भी नुकसानदायक है.
अवशेष जलाने से मिट्टी का तापमान बढ़ने सेउर्वरा क्षमता का ह्रास होता है तथा अनेक प्रकार के लाभप्रदजीवाणु भी नष्ट होते हैं. यह पारिस्थितिक तंत्र (पर्यावरण) और मानव स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है.फसल अवशेषका उचितप्रबंधन कर इसे विटामिन स्वरूप प्रयोगकर सकते हैं.इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी और फसल उत्पादन एवं गुणवत्ता में वृद्धिकीअपार संभावनाएं हैं.
कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता की आवश्यकता थी क्योंकि अगर कृषि सफल नहीं होगी तो सरकार और राष्ट्र दोनों ही विफल हो जाएंगे ” -जवाहरलालनेहरू
हमारे देश में सालाना 650-700मिलियन टन फसल अवशेष पैदा होता है. कुल फसल अवशेष उत्पादन का 60 प्रतिशत धान्य फसलों से 15 प्रतिशत गन्ना, 18 प्रतिशत रेशा वाली फसलों से तथा 7प्रतिशत तिलहनी फसलों से प्राप्त होता है. सर्वाधिक फसल अवशेष जलाने की रिपोर्ट पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हैं.हाल की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार कृषि के विकसित राज्यों में मात्र 30 प्रतिशत किसान ही फसलअवशेषों का उचित प्रबन्धन कर रहे हैं.
फसल अवशेष उत्पादनआंकलन |
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क्रम संख्या |
फसल |
वार्षिक उत्पादन (मि.टन/वर्ष) |
अवशेष उत्पादन(मि.टन/वर्ष) |
1 |
धान |
103.06 |
154,59 |
2 |
गेहूँ |
94.04 |
159.86 |
3 |
मक्का |
21.02 |
31.53 |
4 |
जूट |
9.92 |
21.32 |
5 |
कपास |
30.52 |
91.56 |
6 |
मूँगफली |
6.89 |
13.78 |
7 |
गन्ना |
346.72 |
138.68 |
8 |
सरसों |
6.85 |
20.55 |
9 |
मिलेट्स (मोटे अनाज) |
2.29 |
3.63 |
|
कुल |
621.31 |
635.32 |
(गैड व सहयोगी 2009, बायोमास बायो एनर्जी 330:1532-1546 के आधार वर्ष 2015-16 के लिए गणना की गई है)
फसल अवशेष को जलाने के मुख्य कारण
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आगामी फसल की बुवाई के लिए समय की कमी, जैसे धान के बाद गेहूं.
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फसल अवशेषोंउठाने और इक्ठा करने के लिए मजदूरोंकी समस्या.
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फसल अवशेषों रखने के लिए अधिक जगह (भंडारण स्थान) का नहीं होना.
-
फसलअवशेष परली आदि को खेत से बहार ले जाने पर लागत खर्च बढ़ जाना.
-
फसल कटाई के लिए एग्रीकल्चरल मैकेनाईजेशन(मशीनीकरण) का उपयोग बढ़ाना.
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फसल अवशेष के लिए बाजार का आभावतथा उचित लागत मूल्ये नहीं मिलना.
-
पर्यावरण प्रदूषण के दुस्प्रभाव के बारे में जानकारी का आभाव.
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पशुपालन रूचिमें लगातार कमी होना.
-
फसल अवशेष को गलने-सड़ने में अधिक समय लगना.
-
पराली, सूखा भूसा के लिए भंडारण स्थान की कमी.
फसल अवशेष का उपयोग
कृषि वैज्ञानिक एवं कृषि विशेषज्ञों के अनुसार फसल अवशेष से अच्छी गुणवत्ता का खाद तैयार किया जा सकता है. ऐसा करने से किसानों को यूरिया डालने की आवश्यकता भी कम होगी. जिससे किसान का पैसा बचेगा और उसे हर समय खाद खेत पर ही उपलब्ध हो जाएगी. वहीं पशु चारे के रूप में भी अवशेष उपयोग किया जा सकता है. इसके अलावा फसल अवशेष को मशीन से काटकर खेत में बिखेर दे ताकि वे मिट्टी में मिलकर खाद का रूप ले सके. इससे खेत की उत्पादकता क्षमता में वृद्धि होगी और फसल अवशेष को जलाने की समस्या से भी मुक्ति मिलेगी. जो की समय की मांग के हिसाब से बहुत मत्वपूर्णहै.
फसल अवशेषजलाने से पोषक तत्वका हॉस
फसलों की कटाई और गहाई के बाद खेत में बचा भूसा, तना, डंठल, जमीन पर पड़ी हुई पत्तियों वछिल के आदि फसल अवशेष कहलाते हैं.सबसे ज्यादा फसल अवशेष अनाज वाली फसलों में तथा सबसे कम अवशेष दलहनी फसलों से मिलते हैं.फसल अवशेषों में औसतन 1 टन धान फसल अवशेष जलाने से लगभग 400 किलोग्राम कार्बन,5 किलोग्राम नत्रजन,1 किलोग्राम फॉस्पोरस और15 किलोग्राम पोटाश का नुकसानहोता है.1 टन धान फसल अवशेष से लगभग 11 किलोग्राम यूरिया,10 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट,25 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाशके बराबर (नत्रजन फॉस्पोरसऔर पोटाश) और पर्याप्त मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक, कॉपर आयरन और मैगजीन प्राप्त होते हैं.यह जल में घुलनशील पोषक तत्व का बेहतरीन स्त्रोत है जिसका समुचित प्रबंध कर उन्हें पोषक तत्वों के अधिक मूल्यवान स्त्रोत के रूप में प्रयोग उपयोग किया जा सकता है. फसल अवशेषों के साथ 15-20 किलोग्राम यूरिया खाद डालने से अच्छी जैविक खाद मिलती है.
फसल अवशेष जलाने से मृदा में पोषक तत्वों का हॉस(मिलियन टन) |
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क्रम संख्या |
मृदा में अनुमानित पोषक तत्व संतुलन |
2000 वर्ष |
2020 वर्ष |
1 |
रासायनिक उर्वरकों का उपयोग |
18 |
29 |
2 |
फसल द्वारा पोषक तत्व अवशेष |
28 |
37 |
3 |
शेष |
10 |
08 |
4 |
कार्बनिक पदार्थों से पोषक तत्वों की अनुमानित उपलब्धता |
05 |
07 |
स्रोतःटंडन2004(Fertilizers’ in Indian Agriculture: from 20th & 21st century. FDCO, New Delhi, page no. 239)
फसल अवशेष जलाने से मृदा में नुकसान
आमतौर से फसल अवशेष जलाने सेभूमि की उर्वराशक्ति में लगभग100 प्रतिशत नाइट्रोजन, 25 प्रतिशत फास्फोरस, 20 प्रतिशत पोटाश 60 प्रतिशत सल्फर का ह्रास होता है. इससे जमीन में उपलब्धजैविक पदार्थ नष्ट हो जाते तथामिट्टी में मौजूद जीवाणु कीटों का नुकसान होता है. फसल अवशेष जलाने से कार्बन मोनोडाइआक्साइड, कार्बनडाइआक्साईड, राख, सल्फर डाईआक्साइड, मीथेन अन्य विषैली गैस उत्पन्न होती हैं.
फसल अवशेष जलाने से पोषक तत्वों का नुकसान |
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क्रम संख्या |
फसल अवशेष |
नत्रजन कानुकसान मि.टन/वर्ष |
फास्फोरस कानुकसानमि.टन/वर्ष |
पोटाश का नुकसानमि.टन/वर्ष |
कुलमि.टन/वर्ष |
1 |
धान |
0.236 |
0.009 |
0.200 |
0.45 |
2 |
गेहूँ |
0.079 |
0.004 |
0.061 |
0.14 |
3 |
गन्ना |
0.079 |
0.001 |
0.033 |
0.84 |
|
कुल |
0.394 |
0.14 |
0.295 |
0.143 |
स्रोतः जैन निवेदिता व सहयोगी एरोजोल एंड एयर क्वालिटी रिसर्च 422-430, 2014
फसल अवशेष जलाने से होने वाली हानियां
फसल अवशेष को जलाने के कारण तापमान 50-60 डिग्री होने से फसलस्वरूप, आर्गेनिक कार्बन जल जाने के कारण मृदा सतह सख्त हो जाती है.मृदा में वायु-संचरण में कमी तथा मिट्टी में पाए जाने वाले उपयोगी सूक्षमजीवाणु व पोषक तत्व समाप्त हो जाते हैं.फसल अवशेष जलाने से एरोसॉल के कण निकलते हैं, जो कि हवा को प्रदूषित करते हैं. परालीजलाने के दौरान हानिकारक गैसों के उत्सर्जन से पर्यावरण संकट उत्पन्न होता है.
एक सर्वे रिपोर्ट अनुसार 1 टन पराली को जलाने से तीनकिलोग्रामपार्टिकुलेट मैटर, 60 किलोग्राम कार्बन मोनोऑक्साइड,1460 किलोग्राम कार्बनडाइऑक्साइड, 199 किलोग्राम राख और 2 किलोग्राम सल्फरडाइऑक्साइड उत्पन्न होता है. इससे लोगों को सांस लेने में समस्या उत्पन्न होने के साथ-2 आंखों में जलनवसूजन, अस्थमा, नाक एवंगले की समस्या जैसे कई रोग उत्पनहोते हैं.एक अनुमानित तौर पर फसल अवशेष जैसे सूखी लकड़ी, पत्तियां, घास-फूस जलाने से वातावरण में 40 प्रतिशत कार्बनडाइऑक्साइड, 32 कार्बन मोनोऑक्साइड, कणिकीय पदार्थ 2.5प्रतिशततथा 50 प्रतिशत हाइड्रोकार्बन पैदा होता है.
फसल अवशेष जलाने से वायु प्रदूषण होता है.
मृदा में अनेक लाभदायक सूक्ष्म जीव एवं केंचुआ (अर्थवोर्म) नष्ट हो जाते है.
फसल अवशेष को जलाने के कारण एजोटोबैक्टर, एजोस्प्रिलम, स्यूडोमोनस आदि प्रजाति के जीवाणु जलने से मर जाते हैं.
लाभप्रद जीवाणु औरआवश्यक पोषक तत्व नष्ट होने के कारण फसल मेंबीमारियाँ (उखेड़ा, झूलसा रोग, झोंका रोग, ब्लास्ट आदि)तथा कीट-पतंगो का प्रकोप बढ़ने की संभावना बढ़जाती है.
मृदा में कार्बनिक पदार्थ (ह्यूमस) की कमी हो जाती हैं.
मृदा की उपजाऊपन क्षमता घट जाती है.
फसल अवशेष से लाभ
पराली को जलाने की बजाए मिट्टी में मिला देने सेअनेक फायदे हैं. यदि 1 टन पराली जमीन में मिलाते हैं तो 10-15 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30-40 किलोग्राम पोटाश, 5-7 किलोग्राम सल्फर एवं 600-800 किलोग्राम ऑर्गेनिक कार्बन के रुप में पोषक तत्वों की प्राप्ति होती है.
मृदा में जीवाश्म पदार्थ की मात्रा में वृद्धि होती है.
मृदा में लाभदायक सूक्ष्मजीवों की संख्या एवं क्रियाशीलता बढ़ती है.
मृदा की उपजाऊ क्षमता एवं मृदा के पोषक तत्वों में वृद्धि होती हैं.
मृदा की जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है.
फसल अवशेषों को जलाने से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं
अस्थमा और दमा जैसी सांस से सम्बन्धित बीमारियों के मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है.
स्मॉग जैसी स्थिति पैदा हो जाती है जिससे सड़क पर दुर्घटना होती है.
रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है.
थायराइड हार्मोन स्तर में परिवर्तन होता है.
गर्भ अवस्था के दौरान बच्चे के दिमागी स्तर पर दुष्प्रभाव पड़ता है.
इस प्रदूषण से पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन का स्तर घटता है.
स्त्रियों में प्रजनन संबंधी रोग बढ़ जाते हैं.
चर्म रोग की शिकायत बढ़ जाती है.
सल्फर डाईऑक्साइड व नाइट्रोजन ऑक्साइड के कारण आँखों में जलन.
ग्रीन हाउस गैसों का अधिक मात्रा में उत्सर्जन से वैश्विक तपन को बढ़ावा.
ओजोन परत का ह्रास.
हाल के वर्षों में फसल अवशेष जलाने के वजह से कैंसर जैसी बिमारी के मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है.
विकल्प एवं समाधान
कार्बनिक पदार्थ की उपलब्धता में वृद्धि – कार्बनिक पदार्थ ही एकमात्र ऐसा स्रोत है जिसके द्वारा मृदा में उपस्थित विभिन्न पोषक तत्व फसलों को उपलब्ध हो पाते हैं तथा कम्बाइन द्वारा कटाई किए गए प्रक्षेत्र उत्पादित अनाज की तुलना में लगभग 1.30गुना अन्य फसल अवशेष होते हैं. ये खेत में सड़कर मृदा कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि करते हैं.
सरकार फसल अवशेष न जलाने हेतु सख्त नियम लागू करें ताकि प्रदूषण कम हो सके.नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) द्वारा किसानों से आर्थिक जुर्माना वसूला जा रहा है- जो कि इस प्रकार है;
2 एकड़ से कम 2500 रुपए, 2 से 5 एकड़ तक ₹5000 रुपए, 5 एकड़ से अधिक15000 रुपए है.
फसल अवशेषों को खेत में पुनः जोतकर मृदा स्वास्थ्य को बढ़ाया जा सकता है.
अवशेषों को एकत्रित कर ईंधन, कम्पोस्ट, पशुओं के चारे के रूप में, घर की छतऔर मशरूम उत्पादन आदि कार्यों में उपयोग किया जा सकता है.
इन अवशेषों से जैविक ईंधन भी तैयार कर सकते हैं.
ऊर्जा उत्पादन के स्वरूप बायोगैस उत्पादनबढ़ाने में.
परली आदि को पैकिंग मैटेरियल के रूप मेंप्रयोग किया जा सकता है.
इन अवशेषों को सूक्ष्म जीवाणुओं के द्वारा सड़ाने का एक सरल उपाय है, जिससे उपजाऊ कम्पोस्ट तैयार कर मृदा की भौतिक संरचना एवं उर्वरता दोनों को बढ़ाया जा सकता है.
फसल विविधिकरण को बढ़ावा देने एवं खाद्य सुरक्षा को हासिल करने के लिए मक्का,बाजरा, ज्वार अच्छा विकल्प है.
सी.एच.सी. फार्म मशीनरी मोबाइल ऐप
वेस्ट डीकंपोजर का प्रयोग (राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र, गाजियाबाद)
पूसा डी-कंपोजर कैप्सूल का प्रयोग करना (भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली)
धान के बाद गेहूं की - सीधी बिजाई(जीरो टिलेज मशीन)
धान की पराली का उपयोग सब्जियों एवं हाई वैल्यू क्रॉप, मल्चिंग के रूप में किया जा सकता है.
निष्कर्षः
देश के किसानों को अपनी मृदा की सेहत, अपनी व पशुओं की सेहत का ख्याल रखने और सामाजिक व राष्ट्रीय दायित्व के निर्वाह के लिए फसल अवशेषों के प्रबन्धन का समुचित उपाय करना चाहिए.
फसल अवशेषों को जलाने सेभूमि की उपजाऊ शक्ति कम होती है क्योंकि भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने वाले लाभदायक जीवाणु आग से जल जाते हैं. फलस्वरुप अवशेषों को जलाने से नुकसान ही होता है, कोई फायदा नहींहोता है. इसलिए इनको जनाना नहीं चाहिए.
किसानों को फसल अवशेषों के जलाने पर पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव के बारे में बताना होगा.
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, हरियाणा–एक सफलप्रयास
केन्द्र सरकार की'प्रोमोशन ऑफ एग्रीकल्चरल मैकेनाईजेशन फॉर-'इन सीटू क्रॉप रेजीडयू मैनेजमेन्ट' स्कीमके तहत हरियाणा में किसानों को फसल अवशेष प्रबन्धन के लिए कृषि यंत्र अनुदान पर दिए जा रहे हैं. फसल अवशेष प्रबंधन कृषि यंत्रों जैसे:
सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम (एस एम एस)
हैप्पी सीडर
पैडी स्ट्रा चोपर
थ्रेडर/मल्चर
सर्बमास्टर/रोटरी शलेशर
रिवर्सेबल एम बी प्लो
सुपर सीडर
जीरो टिलेज मशीन
स्ट्रॉबेलर और रेक
क्रॉपरीपर (रीपर कम बाईंडर)
इसके अतिरिक्त स्कीम के बारे में जानकारी संबंधित कृषि उप निदेशक/कृषि सहायक अभियन्ता के कार्यालय अथवा टोलफ्री नम्बर 18001802117/0172-2521900 और 18001801551 पर सम्पर्क कर सकते हैं. अथवा कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के पोर्टल पर उपलब्ध है.
http://www.agriharyanacrm.com,
http://www.agriharyana.org, https://www.agricoop.nic.in
लेखक
बिशन सिंह, जितेन्द्र, रूबी, प्रियंका
कृषि विकास अधिकारी, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, (हिसार) हरियाणा
पी. एच. डी. स्कॉलर, कृषि महाविद्यालय, एच. ए. यू . हिसार, हरियाणा
दूरभाष9991764299, *Email- bishanhau@gmail.com