आलू कंदों में कुल शुष्क पदार्थ लगभग 75% स्टार्च होता है। स्टार्च संचयन का निर्धारण प्रकाश संश्लेषण के दर या पत्तियों के कंदों और प्रकाश संश्लेषण के स्थानांतरण तथा उनके स्टार्च में रूपांतरण होने पर निर्भर करता है। होमलैंड में जिंक और मैंगनीज के 10ppm मात्रा की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण के दर क्रमश 72 तथा 80% वृद्धि देखी गई है।
जिंक की कमी को पूरा करने के लिए इसके पूरक प्रयोग से
रेडियोधर्मी सुक्रोज, ग्लूकोज तथा फ्रक्टोज को स्टार्च में 14 रेडियोधर्मी कार्बन के समावेशन में वृद्धि पाई गई है।
सूक्ष्म तत्वों के प्रयोग से कंद संख्या, कंद आकर या फिर दोनों में वृद्धि होने से कंद की पैदावार में बढ़ोतरी होती है। जिंक, लोहा तत्व, बोरान तथा मोलिबडेनम के प्रयोग से छोटे आकार के कंद के बजाय मध्य तथा बड़े आकार के कंद अधिक पैदा होते हैं। तथा इनका कंद संख्या पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।
मृदा और पौधों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी तथा उनका निदान
आलू के पौधे तथा खेत में सूक्ष्म पोषक तत्वों की व्यवस्था को सुचारू रूप से सृजित करने तथा कार्यक्रम सुधार लाने के लिए इनका निदान आवश्यक है। आलू की खड़ी फसल में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी जांचने के लिए कई विधियां का प्रयोग किया जाता है।
देखकर या दृश्य निदान-
पौध बढ़वार या विकास अवस्था के दौरान यदि किसी सूक्ष्म तत्व की कमी अधिक हो या सीमांत अभाव अवस्था से नीचे गिर जाए तो उसके लक्षण पौधे पर दिखाई देते हैं। अलग-अलग पोषक तत्वों की कमी के लक्षण भी भिन्न-भिन्न होते हैं। प्रारंभ में जैसे ही लक्षण आते हैं उनका प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है।
कमी के लक्षण-
जिंक- आलू की फसल में जिंक की कमी के कारण नई पत्तियां में पर्णांगी हो जाती है। इसकी कमी से पौधों का विकास रुक जाता है जिससे पौधे का छोटे का आकार के हो जाते हैं विशेष कर पतियों को किनारे भुरे या पीले पड़ जाते हैं। सबसे छोटी पत्तियां ऊपर की तरफ प्याले की तरह मुड़ जाती है जिससे अन्तस्थ पत्तियां या सिरे की पत्तियों में पर्णांगी जैसा आभास होता है या वे फर्न सदृश दिखाई देते हैं। ग्रसित पौधे की पत्तियां छोटी तथा उनके ऊपरी पोरियां छोटी होती है।
लौह तत्व- इसकी कमी से ऊपरी छोटी पत्तियां हल्की पीले और बाद में सफेद रंग की हो जाती हैं। लोह तत्व की कमी से पति शीर्ष लंबे समय तक हरी ही रहती है। क्लोरोफिल निर्माण के लिए जब लोहे तत्व के सूक्ष्म मात्रा की शिराएं के साथ अवशोषण तथा स्थानांतरण होता है तो जालीदार हरी शिराएं दिखाई देती है। हरी शिराएं दिखाना लोह तत्व की कमी का एक लक्षण है।
मैंगनीज- मैंगनीज की कमी के प्राथमिक लक्षणों में नई पत्तियां पीली पड़ के हलकी मुड़ जाती है। छोटी क्लोरोटिक
पत्तियां गुलाबी रंग की हो जाती है जबकि निचले भाग की पुरानी पत्तियों में गहरे भूरे या काले धब्बे पड़ जाते हैं। मैंगनीज की कमी अधिक होने पर शिराओं के बीच में गहरे भूरे से काले रंग के धब्बे या चित्तियां विकसित हो जाती है जो बढ़कर मध्य शीरा और बड़ी शिराओं तक फैल जाती है। समय के साथ जैसे-जैसे मैगनीज की कमी बढ़ती जाती है पत्तियों के काले होने तथा मुड़ने की लक्षण भी बढ़ते जाते हैं। मैंगनीज की थोड़ी कमी के कारण पौधे के ऊपरी भाग कुछ क्लोरोटिक तो हो जाते हैं परंतु उनमें मृत धब्बे नहीं पढ़ते।
तांबा- जिस प्रकार के लक्षण मोलिबडेनम, मैंगनीज तथा लोहे तत्वों की कमी के कारण पौधे में होते हैं, इस प्रकार के लक्षण प्रारंभ में तांबे या कॉपर तत्व के कमी के कारण दिखाई देते हैं जो पौधों की नई छोटी पत्तियों में एक समान हल्के हरे रंग के रूप में आ जाते हैं। उसके बाद छोटी नई पत्तियां सापेक्षिक बड़ी पत्तियों के ऊपर की तरफ मुड़कर कप के आकार के हो जाती है। जिंक की कमी के कारण छोटी संकीर्ण पत्तियों पर दिखाई देने वाले लक्षण तांबे की कमी से भी दिखाई देते हैं।
बोरान- इसकी कमी से लटकी पत्तियां जैसे झाड़ी नुमा पौधे बनते हैं। ब्लेड्स क्रिनकल, कप के आकार तथा उत्तक के किनारो पर हल्का भूरा रंग दिखाई देता है। कैल्शियम की तरह उसकी कमी भी फसल बढ़वार के प्रभावित करती है। मध्य की अपरिपक्व छोटी पत्तियां विकृत हो जाती हैं तथा पौधे सूख कर नष्ट हो जाते हैं। बोरान की कमी के कारण बड़ी पत्तियां सिरे से थोड़ा ऊपर की तरफ मुड़ जाती हैं।
मोलिब्डेनम- इस तत्व की कमी के कारण पौधों की पत्तियों पर हरिमाहीन चिश्ती या धब्बे पड़ जाते हैं। साथ ही पौधे का विकास रुक जाता है जिससे पैदावार कम होती है।
आलू की फसल की समान बढवार बनाए रखने हेतु सूक्ष्म तत्वों की प्राप्ति का मुख्य स्रोत मृदा ही है। इसलिए आलू उत्पादक क्षेत्र में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी या अभाव की मात्रा की जानकारी का होना आवश्यक है। आलू उत्पादक क्षेत्र में मिट्टी में सबसे अधिक कमी जिंक, लोह तत्व की होती है। उसके पश्चात कापर या तांबे तथा उसके बाद मैगनीज पोषक तत्वों की होती है।
सूक्ष्म पोषक तत्वों के प्रति आलू की प्रभावशीलता विभिन्न मृदा में अलग-अलग होती है। आलू उत्पादक समस्त क्षेत्रों की मृदा में सबसे अधिक कमी जिंक की होती है।
लेखक -रबीन्द्र नाथ चौबे, ब्यूरो चीफ, कृषि जागरण, बलिया, उत्तरप्रदेश।