बेर (जिजिफस मोरिटिआना) ने अर्द्ध शुष्क और शुष्क क्षेत्रों में बागवानी के परिदृश्य को बदल दिया है. वर्तमान समय में देश भर में सभी स्थानों पर वर्षा आधारित बेर के बगीचे देखे जा सकते हैं. इसका उत्पादन मुख्यतः हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु राज्यों में होता है. राजस्थान में सन् 2017-18 में बेर की खेती 2500 हेक्टेयर में की गई तथा सकल उत्पादन 42,847 मिलियन टन प्राप्त हुआ. शुष्क उद्यानिकी हेतु बेर की फसल अत्यधिक उपयोगी है क्योंकि एक बार पूरक सिंचाई द्वारा स्थापित होने के पश्चात् केवल वर्षा जल पर निर्भर रहकर भी फलों का उत्पादन संभव है.
जलवायु
बेर की खेती के लिये ऊष्ण एवं ऊपोष्ण जलवायु उपयुक्त है तथा इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है हलकी क्षारीय व कम लवणीय भूमि में भी बेर का समुचित उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है. बेर की फसल में शुष्क वातावरण तथा उच्च तापमान को सहन करने की विशेष क्षमता होती है. गर्मी के मौसम में बेर की फसल में पानी की आवश्यकता अत्यंत कम हो जाती है क्योंकि इस समय पौधे सुषुप्तावस्था में रहते हैं. बेर की विभिन्न किस्मों के फल जनवरी से मार्च माह तक पकते हैं.
शुष्क क्षेत्र में बेर की कृषि हेतु उन्नत किस्में
शुष्क क्षेत्र में बेर की खेती हेतु फलों के पकने के समय के आधार पर निम्नलिखित किस्में उपलब्ध हैं-
क्र.सं. |
किस्में का प्रकार |
किस्म का नाम |
समयावधि |
1 |
अगेती किस्में |
काजरी बेर-2018, गोला |
दिसम्बर-जनवरी |
2 |
मध्यम किस्में |
गोमा कीर्ति, कैथली, सेव, छुहारा, मुण्डिया |
जनवरी-फरवरी |
3 |
पछेती किस्में |
टिकड़ी, उमरान, इलायची |
फरवरी-मार्च |
बेर की खेती हेतु ध्यान रखने योग्य बातें
बेर की बागवानी के लिए कलिकायन विधि (budding) द्वारा तैयार पौधे स्थापित किये जाते हैं. इसके लिए मई-जून के महीने में खेत की तैयारी के बाद जुलाई माह में पौधों का प्रत्यारोपण किया जाता है, फिर वर्षा की स्थिति को देखते हुए 5 से 7 दिन के अंतराल पर सिंचाई कर सकते हैं. बेर में मूल वृंत से निकलने वाली शाखाओं की समय-समय पर कटाई-छटाई अति महत्वपूर्ण है क्योंकि फूल व फल नई शाखाओं पर ही बनते हैं. कटाई-छटाई का सर्वोत्तम समय मई-जून का महीना होता है. बेर के पेड को दूसरे वर्ष तक अच्छी तरह स्थापित हो जाने के बाद बहुत कम सिंचाई की आवश्यकता होती है. सामन्यतः बेर में सितम्बर माह में फूल आना शुरु होते हैं तथा अक्टूबर माह तक फल बन जाते हैं. बेर की फसल में मुख्यतया फल मक्खी, छालभक्षी कीट तथा चूर्णी फंफूदी (छाछया) रोग का प्रकोप होता है जिनका उचित प्रबंधन करना आवश्यक होता है.
बेर का पोषक महत्त्व
बेर एक पौष्टिक फल है, जिसके ताजे फल में 81-97% गूदा पाया जाता है. इसके गूदे में 12-35% कुल घुलनशील ठोस पदार्थ, 0.13-1.42% अम्लता, 3.1-14.5% कुल शर्करा, 1.4-9.7% अवकरणीय शर्करा पाई जाती है. बेर का फल ऊर्जा, प्रोटीन, विटामिन (ए, बी-काम्प्लेक्स, सी), β.कैरोटीन तथा खनिज लवणों का मुख्य स्रोत है. बेर के फल में विटामिन सी की मात्रा 39-166 मिलीग्रामध् ग्राम पाई जाती है. बेर के फल में एंटी-ऑक्सडेंट्स की मात्रा भी बहुतायत से पाई जाती है जिनका मानव शारीर में अत्यधिक लाभकारी प्रभाव देखा गया है. विभिन्न एंटी-ऑक्सिडेंट्स जीवनशैली से जुड़े हुए गंभीर रोगों जेसे मधुमेह, हृदयरोग, गठिया, कैंसर आदि में अत्यंत लाभकारी सिद्ध हुए हैं. इस एंटी-ओक्सिडेंट्स के सेवन का गंभीर रोगों के प्रति सुरक्षात्मक प्रभाव देखा गया है. बेर के फल में कुल एंटी-ऑक्सिडेंट्स की मात्रा 35-60% के लगभग देखी गई है.
बेर की तुड़ाई
बेर के पेड़ों की कांटेदार शाखाओं से फलों को सुरक्षित तोड़ने के लिए एक फल प्लकर काजरी द्वारा विकसित किया गया है. बेर तुड़ाई यंत्र में एक स्टील पाइप (लंबाई 152 सेमी, व्यास 50 मिमी) होता है, जिसके एक छोर में दो जबड़े (जॉ) लगे़ होते हैं. ये जबड़े पाइप के दूसरे छोर पर लगे ब्रेक लीवर मैकेनिज्म से स्टील वायर के माध्यम से जुड़े होते हैं. बैग को टांगने के लिए इसमें दो हुक दिए गए हैं. फलों को जबड़े के बीच रखकर तोड़ा जाता है, जिससे यह फल बिना बाहरी त्वचा में क्षति के उपयोगकर्ता के हाथों में चोट के बिना स्टील पाइप के माध्यम से बैग में चला जाता है. यह तुड़ाई यंत्र 3.35 मीटर की ऊंचाई तक इस्तेमाल किया जा सकता है एवं इसे संभालना आसान है, जो इस यंत्र को बेर की तुड़ाई के लिए उपयोगी बनाता है. इसका वजन 1.6 किलोग्राम है एवं इसकी लागत लगभग 500/- रूपये है.
बेर का भण्डारण
सामान्यतः बेर के फलों को तुड़ाई के उपरांत भण्डारण कमरे के तापमान (25-35 डिग्री सेल्सियस) पर ही किया जाता है. फलों को किस्मों के आधार पर 4-15 दिनों के लिए कमरे के तापमान पर बिना किसी नुकसान के रखा जा सकता है. सनौर-5, पोंडा, रश्मि एवं उमरान किस्म के फल अधिक दिनों तक बिना किसी नुकसान के रखे जा सकते हैं. 10 डिग्री सेल्सियस तपमान और 79 प्रतिशत आर्द्रता फलों के भण्डारण के लिए अनुकूल है.
कटाई उपरान्त प्रौद्योगिकी तकनीक द्वारा बेर का मूल्य संवर्धन
1.बेर का श्रेणीकरण (बेर ग्रेडर):
श्रेणीकरण के लिए काजरी में निर्मित बेर ग्रेडर का उपयोग करते हैं. मैनुअल बेर ग्रेडर हल्के एंगल फ्रेम (38x38x4 मिमी), एमएस फ्लैट (38x3 मिमी) व एक्रिलिक शीट जाली (स्क्रीन) से बनता है. जिससे यह हल्का (60 किलोग्राम) हो जाता है. सौर उर्जा से संचालित संशोधित ग्रेडर को विशेष रूप से डिजाइन किए गए समायोज्य दोलन स्क्रीन (0.48 वर्गमीटर) के साथ बनाया गया है, जो वी-बेल्ट व्यवस्था के माध्यम से कंपन करता है. इसमें एक एसी मोटर (200 W, अतुल्यकालिक एकल चरण, 220 v और 50 हर्ट्ज) और एक प्रारंभिक बाहरी टॉर्क होता है. बॉल बेयरिंग पर लगे समायोज्य कैम से श्रेणीकरण प्रक्रिया आसान हो जाती है. बेर फलों के साथ इसकी क्षमता 500 किग्रा प्रतिघंटा है जिसमें शीर्ष जाली (>35मिमी), मध्य जाली (25-35 मिमी) और नीचे वाली जाली (<25 मिमी) पर क्रमशः 18%, 67% और 15% बेर के फल प्राप्त होते हैं.
2.बेर के फलों को सुखाना
परंपरागत रूप से, फलों को सौर ऊर्जा के द्वारा सुखाया जाता है. इस विधि द्वारा सुखाये उत्पाद की गुणवत्ता बहुत खराब होती है क्योंकि फल सूखने के बाद बहुत कठोर हो जाते हैं और इस प्रक्रिया में फलों पर धूल के कण भी जमा हो जाते हैं. यह विधि सभी फलों को सुखाने के लिए उपयुक्त नहीं हैं. काठा या उमरान, छुहारा, बगवाड़ी, मेहरान, सनौर-2 और सनौर-3 किस्म के फल अच्छे निर्जलीकृत उत्पाद देने के लिए उपयुक्त हैं. सुनहरे पीले से लाल भूरे रंग के फल निर्जलित उत्पादों की सर्वोत्तम गुणवत्ता देते हैं. निर्जलीकरण से पहले ब्लांचिंग (2.6 मिनट के लिए उबलते पानी में फलों को डुबोना) और सल्फरिंग (3.5-10 ग्राम सल्फर पाउडर प्रति किग्रा फल जलाकर 3 घंटे के लिए सल्फर डाई ऑक्साइड के धुएं में फलों को रखना) करने से उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार होता है. खुले आसमान में सूर्य की उपस्थिति में बेर के फलों को सुखाने के लिए 7-10 दिन लगते हैं जबकि सौर शुष्क द्वारा फलों को 4-5 दिनों में एवं कृत्रिम शुष्कक द्वारा 20-35 घंटों में ही सुखाया जा सकता है.
3.फलों के गूदे से बने उत्पाद का विकास
पेय पदार्थ तैयार करने के लिए बेर की रसदार किस्मों के फलों का उपयोग किया जाता है. फलों को पहले छीलकर गूदे को गुठली से अलग छोटे-छोटे टुकड़ों में काट दिया जाता है और उसके बाद समान मात्रा में पानी में मिलाकर 20-30 मिनट के लिए गर्म किया जाता है. इस लसदार मिश्रण को मलमल के कपड़े में बांधकर रस को अलग कर दिया जाता है. रस को लम्बे समय तक भण्डारण के लिए रासायनिक परिरक्षकों को मिलाकर पाश्चुरीकृत किया जाता है. रस का उपयोग स्क्वैश, जैम और शरबत तैयार करने के लिए किया जाता है. बेर के रस में रंग और स्वाद की कमी होती है, इसलिए इसे स्वादानुसार अनार और करौंदा के रस के साथ मिश्रित करके बेहतर-गुणवत्ता वाले स्क्वैश तैयार किये जा सकते हैं.
4.बेर कैंडी का विकास
बेर कैंडी को चुनिंदा किस्मों जैसे उमरान, बनारसी कराका और कैथली के फलों से बनाया जा सकता है. पूरी तरह से परिपक्व एवं कठोर फलों को कैंडी बनाने के लिए चुना जाता है. फलों को समान रूप से चीनी के अवशोषण के लिए नुकीली सुइयों से चुभोकर 2-3 मिनट के लिए ब्लान्चिंग की जाती है. इसके पश्चात् फल को शीतल जल में डुबोकर ठण्डा किया जाता है. चीनी को फलों में अवशोषित करने के लिए नरम हुए फल को पहले 30 डिग्री ब्रिक्स वाले चीनी के सिरप में डुबोया जाता है और धीरे-धीरे अधिक चीनी डालकर लगभग 65-75 डिग्री ब्रिक्स तक बढ़ा दिया जाता है. कैंडी बनाने के लिए चीनी की सघनता 70-75 डिग्री ब्रिक्स तक बढा दी जाती है और फलों को 10-15 दिनों के लिए इस सिरप में ही रखा जाता है. अंत में, फलों को सिरप से अलग कर हवा में सुखाया जाता है और वायु रहित कांच के जार या पॉलिथीन में पैक कर दिया जाता है.
लेखक: शेख मुख्तार मंसूरी, ओम प्रकाश, सोमा श्रीवास्तव, पी. आर. मेघवाल एवं दिलीप जैन
भा.कृ.अनु.प. - केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी), जोधपुर (342003)
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