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Updated on: 10 January, 2020 5:27 PM IST

फूलों की खेती को आर्थिक दृष्टि से देखा जाये तो किसान के आय का बहुत अच्छा स्रोत है. इसके जरिये कम समय और कम लागत में अधिक मुनाफा आसानी से कमाया जा सकता है . फूलों की व्यवसायिक खेती किसान भाइयों के लिए आर्थिक दृष्टि से बहुत ही लाभदायक है, और इससे हम कई प्रकार के उत्पाद बना कर बाजार में बेच सकते है, जिससे हम अतिरिक्त मुनाफा कमा सकते है . फूलों में विभिन्न प्रकार के रोग लगने की वजह से फूलों  की मांग पर बहुत असर पड़ता है और इसके साथ-साथ फूलों की कीमत भी कम हो जाती है . इसलिए फूलों  में सही समय पर इसकी रोगो का रोकथाम बहुत ही जरुरी है . सामान्यतः फूलों  की खेती में मुख्य रूप से कई प्रकार के रोग देखने को मिलते है जो निम्नलिखित है 1. तनगलन रोग:

यह रोग फफूंद से होता है. जिसका मुख्य कारक फाइटोफ्थोरा पैरासिटिक’ नामक फफूंद है. इससे बेलों के निचले सतह पर सड़न शुरू हो जाती है. इस रोग से पौधे बहुत ही जल्दी मुरझाकर नष्ट हो जाते है.  

रोकथाम : इसकी रोकथाम के लिए सबसे पहले हमें जहां पर पौधा लगा होता है वहाँ पर पानी की निकासी बहुत ही अच्छा रखना चाहिए. पौध के पास पानी रुकने की वजह से मुख्यतः यह बीमारी होती है . रोगी पौध को सामान्यतः जड़ से उखाड़कर जला देना चाहिए या फिर किसी भी तरीके से पूरी तरह से नष्ट कर देना चाहिए . फूल की बुवाई से पूर्व भूमि को बोर्डो मिश्रण से भूमि का शोधन करना चाहिए. फसल पर तनगलन दिखने पर हमको तुरंत 0.5 प्रतिशत बोर्डो मिश्रण का फसल पर छिड़काव करना चाहिए.

2. पर्णगलन रोग:

यह रोग भी फफूंद से होता है. जिसका मुख्य कारक फाइटोफ्थोरा पैरासिटिकनामक फफूंद है. इस कवक की वजह से फूलों की पत्तियों पर गहरे भूरे रंग की छोटे- छोटे आकर के धब्बा बन जाते है, बाद में ये बड़े आकर लेते है और फूल को बहुत ही नुकसान पहुंचाते है.

रोकथाम: इसकी रोकथाम के लिए सबसे पहले हमे रोगी पौध को सामान्यतः जड़ से उखाड़कर पूरी तरह से नष्ट कर देना चाहिए.  इस रोग का सबसे मुख्य कारण सिंचाई का पानी होता है इसलिए हमेशा शुद्ध पानी सिंचाई  करने के लिए प्रयोग करना चाहिए.  फसल पर रोग दिखने पर हमको तुरंत 0.5 प्रतिशत बोर्डो मिश्रण का फसल पर छिड़काव करना चाहिए.

3. चूर्णिल आसिता (पाउडरी मिल्ड्यू):

यह रोग भी फफूंद से होता है.  इस रोग के कारण पौधों के पत्ती, फूल, तना और कलियों पर सफेद रंग का पाउडर जैसा एक परत दिखाई देता है. इस रोग से संक्रमित होने के कारण फूलों की कालिया खिलाती नहीं है.  इस रोग में सफेद परत बन जाने के कारण प्रकाश संश्लेषण प्रभावित होता है, जिससे फूल की उपज पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है. एकाएक जलवायु में परिवर्तन होने के कारण चूर्णिल आसिता रोग लगता है.

रोकथाम: इस रोग का प्रभाव फसल पर दिखाई देने पर सावधानी पूर्वक फफूंद नाशक का प्रयोग सही मात्रा में करना चाहिए. केराथेन 1.0 मि.ली. 12 से 15 दिन के अंतराल पर पौधों पर 2-3 छिड़काव करना चाहिए.

4. पत्ती धब्बा:

यह रोग भी फफूंद से होता है. रोग के कारण पौधों के पत्ती, तना और फूल पर भूरे या काले और बैगनी रंग के धब्बे दिखाई देते है. रोगग्रस्त पत्तियां पीली हो जाती है और मुरझाकर गिर जाती है.  इस रोग को सर्वप्रथम पौधे के निचले पत्तियों पर देखा जा सकता है. बाद में तने पर भूरे रंग का दिखाई देता है जोकि बाद में पूरी तरह से काले रंग में परिवर्तित हो जाता है.

रोकथाम: मैंकोजेब 2 मि.ली./लीटर 15 दिन के अंतराल पर पौधों पर 2-3 छिड़काव करना चाहिए . फसल को हमेशा सही समय पर लगाना चाहिए जिससे रोग के रोकथाम में आसानी होगी.

5. आद्र गलन:

आद्र गलन रोग मुख्यतः नर्सरी में लगता है . इससे नर्सरी में छोटे पौधे प्रभावित होते है . इस रोग के प्रभाव से पौधे का तना जोकि जमीन की सतह से जुड़ा होता है काला पड़कर सड़ने लगता है. आद्रगलन रोग मुख्यतः भूमि और बीज के माध्यम से लगता है.

रोकथाम: बीज की बुआई नर्सरी में करने से पहले बीज को 3 ग्राम थीरम/ किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करके नर्सरी डालना चाहिए.

6. शीर्ष भाग का सूखना:

इस रोग की वजह से पौधों से फूलों के कटाई के बाद ऊपरी भाग से निचली भाग की तरफ सूखता है और इस रोग के प्रभावित भाग काले रंग के हो जाते है जो बाद में पूरे तरह से सूख जाते है . यह रोग ज्यादातर गुलाब पौध में लगता है एवं अधिकतर यह रोग गुलाब के पुराने पौधों में लगता है. रोकथाम: रोगग्रस्त भाग को सेकटियर से काटकर अलग कर देना चाहिए और कटे हुए भाग पर चौबटिया पेस्ट लगाना चाहिए.

7. ग्रीवा गलन:

यह भी फफूंद से होता है. जिनका मुख्य कारक ‘स्केलरोशियम सेल्फसाई’ नामक फफूंद है. इस रोग के प्रभाव से बेलों में गहरे घाव विकसित हो जाते है, पत्ते पीले पड़ जाते हैं और फसल पूरी तरह से नष्ट हो जाती है.

रोकथाम: रोग जनित पौध को उखाड़कर पूर्ण रूप से नष्ट कर देना चाहिए. फसल के बुवाई के पूर्व भूमि शोधन करना चाहिए. फसल पर प्रकोप निवारण हेतु डाईथेन एम0-45 का 0.5 प्रतिशत घोल का छिडकाव करना चाहिए.

8. उकठा रोग:

उकठा रोग से प्रभावित पौध पूरी तरह से सूख कर नष्ट हो जाता है. उकठा रोग फसल में कभी भी लग सकता है .

रोकथाम: इसकी रोकथाम के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए. गर्मी के समय जब खेत खाली हो तो खेत की गहरी जुताई करके कुछ समय के लिए छोड़ देना चाहिए. खेत में जब फसल हो तो गुड़ाई सावधानी पूर्वक करना चाहिए ताकि पौधों के जड़ो में चोट न लगे. क्योंकि, इससे रोग का प्रकोप बढ़ता है.

लेखक- राजमणि सिंह, मुफत लाल मीणा एवम शत्रुंजय यादव 

उद्यान विज्ञान विभाग

बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय

केंद्रीय विश्वविद्यालय, विद्या विहार, रायबरेली रोड, लखनऊ- 226025

English Summary: plant disease: common flower diseases, symptoms and their prevention
Published on: 10 January 2020, 05:35 PM IST

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