आधुनिक खेती के दौर में किसान बाजार की मांग पर मुनाफा वाली फसलों का उत्पादन कर रहे हैं. फल और सब्जियों के उत्पादन से अच्छी कमाई हो रही है. फलों में अनानास की खेती भी अच्छा मुनाफा देती है, जो पूरे 12 महीने की जा सकती है. इस फल की मांग भी बाजार में पूरे 12 महीने रहती है. ऐसे में अनानास की खेती किसानों के लिए लाभ का सौदा साबित हो सकती है. आइये जानते हैं मुनाफा कमाने के लिए खेती का सही तरीका.
अनानास की खेती में लागत और कमाई- एक हेक्टेयर खेत में 16-17 हजार पौधे लगाए जा सकते हैं, जिससे 3-4 टन अनानास का उत्पादन होता है. एक फल लगभग 2 किलो का होता है, जिसका मूल्य बाजार में 150-200 रुपए तक मिल जाता है. प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज में भी काफी अच्छी मांग है. अनानास का उपयोग जूस, डिब्बा बंद स्लाइस आदि में होता है.
कैसा होता है अनानास का पौधा- अनानास का पौधा कैक्टस प्रजाति का होता है. यह एक खाद्य उष्णकटिबंधीय पौधा है. मूलत: पैराग्वे एवं दक्षिणी ब्राज़ील का फल है. अनानास को ताजा काट कर भी खाया जाता है और शीरे में संरक्षित कर या रस निकाल कर भी.
अनानास के फायदे- अनानास में उच्च एंटीआक्सीडेंट होते हैं, प्रचुर मात्रा में विटामिन-सी होता है. शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और साधारण ठंड से सुरक्षा मिलती है. सर्दी समेत कई अन्य संक्रमण का खतरा कम होता है. ये शरीर के भीतरी विषों को बाहर निकलता है. क्लोरीन की भरपूर मात्रा होती है. पित्त विकारों में विशेष रूप से और पीलिया यानि पांडु रोगों में लाभकारी है. गले और मूत्र के रोगों में भी लाभदायक है.
खेती के लिए जलवायु- अनानास की खेती के लिए नम जलवायु की जरूरत होती है. अधिक बारिश की जरूरत होती है. अनानास में ज़्यादा गर्मी और पाला सहने की क्षमता नहीं होती. इसके लिए 22- 32 डिग्री से. तापमान उपयुक्त रहता है. दिन-रात के तापमान में कम से कम 4 डिग्री का अंतर होना चाहिए. 100-150 सेंटीमीटर बारिश की ज़रूरत होती है. अनानास के लिये गर्म नमी वाली जलवायु उपयुक्त रहती है.
खेती के लिए मिट्टी- अनानास की खेती के लिए अधिक जीवांश वाली बलुई दोमट मिट्टी या रेतीली दोमट मिट्टी है. जल भराव वाली भूमि में खेती नहीं करनी चाहिए. इसके लिए अम्लीय मिट्टी का ph मान 5- 6 के बीच होना चाहिए.
खेती का उचित समय- इसकी खेती साल में दो बार हो सकती है. पहली जनवरी से मार्च तक और दूसरी मई से जुलाई के बीच में कर सकते हैं. वहीं जिन इलाकों में नमी युक्त मध्यम गर्म जलवायु होती है वहां इसकी खेती पूरे 12 महीने हो सकती है.
खेती के लिए उन्नत किस्में- भारत में अनानास की कई किस्में प्रचलित हैं. जायनट क्यू, क्वीन, रैड स्पैनिश, मॉरिशस मुख्य किस्म हैं. क्वीन बहुत जल्दी पकने वाली किस्म है. जायनट क्यूइस किस्म की खेती पछेती फसल के रूप में होती है. रेड स्पैनिशइस किस्म में रोगों का प्रकोप काफी कम होता है. मॉरिशस एक विदेशी किस्म है.
खेत की तैयारी-
सबसे पहले ग्रीष्मकाल में मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की गहरी जुताई करें, फिर कुछ दिन के लिए खुला छोड़ें. खेत में गोबर की सड़ी खाद डालकर मिट्टी में मिला दें. खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बनाएं.
पौधे रोपने का तरीका- अनानास की रोपाई दिसंबर-मार्च के बीच अधिकांश क्षेत्रों में होती है लेकिन स्थिति अनुसार बदलती है। बहुत अधिक वर्षा के समय रोपाई न करें. खेत तैयार करने के बाद खेत में 90 सेमी दूरी पर 15- 30 सेमी गहरी खाइयां बनाएं. रोपाई के लिए अनानास के सकर, स्लीप या अनानास का ऊपरी भाग उपयोग में लाएं. इसका रोपण करने से पहले इन्हें 0.2 प्रतिशत डाईथेन एम 45 के घोल से उपचारित करें पौधे से पौधे की दूरी 25 सेमी, लाइन से लाइन की दूरी 60 सेमी खाइयों के बीच रखें.
उर्वरक की मात्रा- जुताई के समय ही गोबर की सड़ी खाद, वर्मी कंपोस्ट या कोई भी जैविक खाद डालकर मिट्टी में मिलाएं. इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप में 680 किलो अमोनियम सल्फेट, 340 किलो फास्फोरस और 680 किलो पोटाश साल में 2 बार पौधों को दें.
सिंचाई व्यवस्था- बारिश के मौसम में सिंचाई की ज्यादा जरूरत नहीं होती. सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन विधि को अपनाना सबसे उपयुक्त है. पौधों के अंकुरित होने के बाद 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए.
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अनानास में रोग प्रबंधन- वैसे तो अनानास के पौधों में बहुत कम रोग लगते हैं. लेकिन कुछ रोग पौधे को हानि पहुंचा सकते हैं. अनानास में जड़ गलन रोग की रोकथाम के लिए खेत में जल भराव न होने दें ओर रोग लगने पर बोर्डों मिश्रण का छिडक़ाव खेत में करें. काला धब्बा रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मैंकोजेब या नीम के तेल की निर्धारित मात्रा में छिड़काव करें.