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बैंगन में कीट एवं उनके प्रबंधन

बैंगन भारत में सबसे प्रमुख सब्जियों में से एक है, जिसे लगभग सभी राज्यों में उगाया जाता है. भारत 28 प्रतिशत बैंगन का उत्पादन करता है बाकी का 15 प्रतिशत उत्पादन विश्व भर में होता है बैंगन भारत के साथ विश्व में खाये जाने वाली नामी सब्जियों में से एक है इसे पूरे वर्ष उगाया जा सकता है औषधिय गुण होने के कारण बैंगन को डायबिटीज जैसी बीमारियों में उपयोग किया जाता है बैंगन में पाए जाने वाले एंटी ऑक्सीडेंट तत्वों के कारण शरीर का इम्युनिटी सिस्टम बढ़ता है एवं शरीर स्वस्थ रहता है, परंतु इसकी खेती में बहुत सारे कीट एवं मकड़ी का प्रकोप होता है जो एक बड़ी समस्या है, जिससे उत्पादन और गुणवत्ता दोनों प्रभावित होती हैं. जिसकी वजह से कृषक इन समस्याओं से निजात पाने के लिए अत्यधिक रसायनों का प्रयोग करते हैं. ये रसायन कृषकों पर, उपभोक्ताओं पर कुप्रभाव डाल रहे हैं, एवं पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं जिससे पर्यावरण का संतुलन भी बिगाड़ रहा है.

समेकित कीट प्रबंधन को अपना कर कृषक बैंगन में रसायनों का दुरुपयोग रोक सकते हैं, खेतीबाड़ी में श्रम के खर्च को कम करते हुए लाभ को बढ़ा सकते है. इसके लिए कृषकों को बैंगन में लगने वाले हानिकारक कीट एवं मकड़ी की पहचान एवं उनके समेकित प्रबंधन करने की जानकारी होनी चाहिए.

बैंगन में प्रमुख कीट

1. तना एवं फल छेदक कीट

लक्षण:

  • कीट की सूंडी बैंगन के तने और फल में छेद कर भीतर प्रवेश कर जाती है.
  • तने में छेद से पौधा मुरझाने लगता है.
  • फलों में छेद एवं अंदर की सड़ी गूदी गुणवत्ता को नष्ट कर देती है.

जीवन चक्र:

  • मादा कीट पत्तियों की निचली सतह पर और कोमल तनों, फूलों, कलियों पर अंडे देती है. मादा अपने जीवन काल में 100-150 तक अंडे देती है
  • 3-5 दिन में अंडों से सूंडी निकलती है जो फल व तनों में प्रवेश करती है.
  • सूंडी 12-15 दिन बाद प्यूपा बनती है और 1 सप्ताह में नया कीट बाहर आता है.

2. तना छेदक कीट

जीवन चक्र:

  • मादा पतंगा तने की दरारों, छाल के नीचे या पत्तियों के पास अंडे देती है.
  • 3–5 दिनों में अंडे से लार्वा निकलता है.
  • सफेद रंग की, सिर पर भूरे रंग की सूंडी होती है, यह तने में घुसकर केंद्र की ओर सुरंग बनाता है. अवस्था 15–25 दिनों तक चलती है.

लक्षण:

  • पौधे मुरझा जाते हैं या अचानक सूख जाते हैं.
  • तने में छोटे छेद दिखाई देते हैं और कीट मल (फ्रास) निकलता है.
  • पौधे की वृद्धि रुक जाती है और शाखाएं गिरने लगती हैं.
  • संक्रमित पौधे फल नहीं दे पाते.

3. हड्डा भृंग कीट

जीवन चक्र:

  • वयस्क के पंख ताँबे तथा पीले रंग से घिरे होते हैं
  • इस कीट के अंडे की अवधि 2-4 दिन की होती है, अंडे रंग में पीले एवं पत्ती की निचली सतह पर गुच्छों में पाये जाते हैं
  • इसके मादा अपने जीवनकाल में लगभग 120-460 अंडे देती है
  • लारवा अवस्था 10-35 दिन की होती है एवं प्यूपा की अवस्था 5-6 दिन की होती है
  • इस कीट का जीवन काल लगभग 25-50 दिन का होता है तथा एक वर्ष में इसकी 6-7 पीढ़ियाँ पायी जाती है

लक्षण:

  • हड्डा भृंग के लारवा और वयस्क दोनों पत्तियों की ऊपरी सतह को छोड़कर बाकी भाग खा जाते हैं, जिससे पत्तियाँ जालीदार दिखाई देती हैं.
  • खाई गई पत्तियों पर छोटे-छोटे सफेद या भूरे धब्बे दिखाई देते हैं. गंभीर अवस्था में पत्तियाँ भूरी होकर गिर जाती हैं.
  • कभी-कभी फूलों और फलों को भी खुरचकर खाते हैं, जिससे गुणवत्ता खराब होती है.
  • पीले रंग का काँटेदार लारवा पत्तियों की निचली सतह से खुरचन करता है. तेज़ प्रजनन दर के कारण बहुत जल्द बड़े क्षेत्र में फैलाव हो सकता है.
  • जब पत्तियों का हरित भाग समाप्त हो जाता है, तो पौधे में फोटोसिंथेसिस कम हो जाता है, जिससे उसकी विकास दर रुक जाती है.

4. सफेद मक्खी

लक्षण:

  • पत्तियों की निचली सतह पर बैठकर रस चूसती है.
  • पीली पत्तियों का मुरझाना व वृद्धि में बाधा.
  • यह वायरस जनित रोग (जैसे कि लहरिया रोग) फैलाने में सहायक होती है.

जीवन चक्र:

  • 4-5 दिन में निम्फ निकलते हैं. 
  • इसके निम्फ चमकदार अंडाकार तथा पीले रंग के 0.31 मि.मी. लम्बे होते हैं.
  • पूर्ण वयस्क बनने में लगभग 10-15 दिन लगते हैं.

5. लीफहॉपर

लक्षण:

  • दोनों वयस्क एवं निम्फ पत्तियों की निचली सतह में रहकर पत्तियों का रस चूसते हैं.
  • ये कीट पत्तियों का रस चूसने के अलावा पत्तियों में विशाक्त लार मिला देते हैं.
  • ज्यादा रस चूसने की वजह से पत्तियों में सिकुड़न, मड़ोर, भूरापन एवं अंततः पत्तियाँ जली हुई प्रतीत होती हैं, जिसे 'हॉपर बर्न' कहते हैं.

जीवन चक्र:

  • मादा लीफहॉपर पत्तियों की निचली सतह पर, विशेषकर मुख्य शिरा या उससे जुड़ी शिराओं के पास, सूक्ष्म अंडे देती है.
  • अंडे पौधों की ऊतक में डाले जाते हैं और साधारणतः 3-5 दिन में फूटते हैं.
  • अंडों से निकलने वाले शिशु वयस्क जैसे दिखाई देते हैं, पर इनमें पंख नहीं होते. ये बहुत सक्रिय होते हैं और पत्तियों की निचली सतह पर रहकर रस चूसते हैं.
  • निम्फ अवस्था में ये 4-5 बार रूपांतरण करते हैं और 7-10 दिन में वयस्क बनते हैं.
  • वयस्क पीलापन लिए हुए हरे रंग के छोटे-छोटे कीट होते हैं.

6. थ्रिप्स

लक्षण:

  • नई कोमल पत्तियों पर हमला.
  • पत्तियाँ सिकुड़ती और रंग बदलती हैं.
  • फसल की वृद्धि रुक जाती है.

7. माहू

लक्षण:

  • झुंड में पत्तियों की निचली सतह पर रहकर रस चूसते हैं.
  • पत्तियाँ पीली और मुड़ी हुई दिखाई देती हैं.
  • मधुरस के कारण फफूंद की वृद्धि होती है.

समेकित कीट प्रबंधन की रणनीति

बैंगन में कीट प्रबंधन के लिए एकीकृत उपाय सबसे प्रभावी माने जाते हैं. इसमें निम्नलिखित विधियाँ शामिल हैं:

1. कृषि क्रियाएँ:

  • गर्मियों के समय में जब खेत खाली रहते हैं तब गहरी जुताई करके मृदा में उपस्थित कीटों की विभिन्न अवस्थाओं को नष्ट किया जा सकता है
  • कुछ कीट फसलों के अवशेषों तथा खरपतवारों पर पाये जाते है अतः उनको नष्ट करके उन पर उपस्थित कीटों का नियंत्रण किया जा सकता है
  • फसल चक्र को अपनाकर फसल विशेष पर लगने वाले कीटों का नियंत्रण किया जा सकता है.
  • बैंगन की ऐसी प्रजाती का चयन करें जिसमें कीटों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता हो. इनमें पूसा पर्पल वलस्टर, पूसा पर्पल लाँग, पूसा पर्पल राउंड, पंजाब चमकीला आदि प्रभेदों में तना एवं फल छेदक कीट के प्रति औसत प्रतिरोधक के होते हैं. ऐसे प्रभेद का चुनाव करें जिनकी पत्तियाँ रोएँदार हो तो फुदको का आक्रमण कम होगा.
  • फसल की बुवाई के समय में परिवर्तन करके भी फसल को कीटों के आक्रमण से बचाया जा सकता है.
  • कीटों से प्रभावित या ग्रसित भागों को जैसे फल, पत्तियों, टहनियों को काटकर नष्ट कर देना चाहिये या जला देना चाहिये.
  • समय पर रोपाई करें ताकि कीट प्रकोप से बचा जा सके.
  • मक्का, बाजरे जैसी फसल को बॉर्डर पर लगाने से सफेद मक्खी के लिए अवरोध पैदा होता है. भिंडी को बॉर्डर पर लगा कर हरा फुदका को भिंडी पर ट्रेप करें एवं उसी पर कीटनाशक का प्रयोग करें.
  • उचित जल प्रबंधन से कीड़ों की संख्या को नियंत्रित किया जा सकता है.
  • मिश्रित खेती को अपनाना चाहिए. मिश्रित खेती करने से बैंगन में तना एवं फल छेदक कीट की आक्रामकता कम होती है. बैंगन के साथ धनिया या सरसों की खेती कर इन कीटों के प्रकोप को घटाया जा सकता है.

2. यांत्रिक उपाय:

  • हाथ से कीट या अंड समूहों को नष्ट करें.
  • प्रकाश ट्रैप के द्वारा तना एवं फल छेदक कीटों और चिपचिपे ट्रैप के द्वारा एफिड, सफेद मक्खी का नियंत्रण किया जा सकता है. .
  • गंध पाश (फेरोमोन ट्रेप) का प्रयोग करें. 12 गंधपाश प्रति हे0 की दर से लगावें. इससे तना एवं फल छेदक कीड़ों की संख्या में कमी आती है.
  • खेतों में पंक्षी आश्रय लगाने पक्षी बैठते हैं एवं कीड़ों को चुन चुन कर खाते हैं.

3. जैविक नियंत्रण:

  • बायोपेस्टिसाइड जैसे बीटी (Bacillus thuringiensis) और नीम आधारित कीटनाशकों का छिड़काव.
  • बिभेरिया बैसीयाना : यह फफूंद आधारित कीटनाशक है- 4 ग्राम/ली० पानी में घोल कर छिड़काव करें.
  • ट्राईकोग्रामा : यह कीट आधारित कीटनाशक है इसमें ट्राइकोग्रामा कीट, शत्रु कीट के अंडों में अपने अंडे देती है जिससे शत्रु कीट के अंडे नष्ट हो जाते हैं. टाइकोग्रामा ग्रसीत अंडों को 10 लाख अंडा प्रति हे0 की दर से लगाकर बैंगन के तना एवं फल छेदक कीट को नियंत्रित किया जा सकता है.
  • न्यूकलीयर पॉलीहेड्रोसिस वाइरस (एन० पी० भी०): यह वाइरस आधारित कीटनाशक है. यह वाइरस सुंडियों में बीमारी फैलाते हैं. इसका 4 मिली/ली० पानी में मिलाकर छिड़काव करें.

4. रासायनिक नियंत्रण (आवश्यकता पड़ने पर ही):

  • हमेशा अनुशंसित मात्रा में और सही समय पर कीटनाशकों का प्रयोग करें.
  • एक ही रसायन का बार-बार प्रयोग करने से बचें.
  • छिड़काव के बाद फसल को कुछ समय तक उपयोग न करें.
  • चुसने वाले कीटों के लिए इमिडाक्लोप्रीड 17.8 % SL @ 0.3 मिली / ली० पानी, थायोमेथोकसीन 25% WG @ 25 ग्राम एआई/हेक्टेयर या एसीटामेप्रीड 20% एस पी @ 25 मिली/एकड़ दवा का छिड़काव किया जा सकता है.
  • फल छेदक कीट के लिए स्पाइनोसैड 45% SC @ 0.2 मिली/ली० पानी में,  इन्डोक्साकार्ब 14.5% SC @ 0.5 मिली / ली० पानी या इमामेंक्टीन बेंजोएट 5% SG @ 0.4 ग्राम/ली० पानी का छिड़काव एक के बाद एक 15 दिनों के अंतराल पर आवश्यकतानुसार करना चाहिए.

निष्कर्ष

बैंगन की सफल खेती के लिए कीट प्रबंधन अत्यंत आवश्यक है. केवल रासायनिक नियंत्रण पर निर्भर रहने की बजाय जैविक, यांत्रिक एवं कृषि उपायों के समन्वित प्रयोग से फसल को कीटों से बेहतर सुरक्षा दी जा सकती है. इससे न केवल उत्पादन बढ़ेगा बल्कि पर्यावरण और उपभोक्ता स्वास्थ्य की भी रक्षा होगी.

लेखक:

डॉ बी. सी. अनु1, डॉ अर्पिता नालिआ2 एवं डॉ एम एल मीणा3
1वि.व.वि, कीट विज्ञान, कृषि विज्ञान केन्द्र, तुर्की, मुजफ्फरपुर
2वि.व.वि, फसल उत्पादन, कृषि विज्ञान केन्द्र, तुर्की, मुजफ्फरपुर
3वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केन्द्र, तुर्की, मुजफ्फरपुर

English Summary: Pests in brinjal and their management
Published on: 05 August 2025, 11:34 AM IST

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