दलहनी फसलों में मसूर का अहम स्थान है। मसूर में अन्य दालों की तरह अधिक मात्रा में प्रोटीन और विटामिन पाया जाता है। कम लागत में मसूर की खेती अधिक आमदनी देती है। लेकिन मसूर में लगने वाले रोग पैदावार को प्रभावित कर सकते हैं इसलिए फसल की देखभाल करना जरूरी है। मसूर की फसल में लगने वाले लगभग सभी कीट वही होते हैं जो रबी की दलहन फसलों में लगते हैं। इसमें मुख्य रूप से कटवर्म, एफिड और मटर का फली छेदक अधिक हानि पहुंचाते हैं। आइये जानते हैं फसल में लगने वाले रोग और बचाव के बारे में
1.मृदुरोमिल आसिता
यह पेरोनोस्फेरा लेंटिस से होता है पत्तियों पर सबसे पहले हल्के हरे से पीले निश्चित आकार के धब्बे बनते हैं। धब्बों के नीचे फफूंद की बढ़वार भूरे रंग की दिखती है जिससे पूरी पत्ती ढक जाती है। बाद में पत्तियां गिरने भी लगती हैं पत्तियों के झुलसने से उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
रोग की रोकथाम
रोकथाम के लिए उचित फसल चक्र अपनाया जाय। बुवाई से पहले 2.5 ग्राम थीरम से प्रति किग्रा बीज को शोधित करना चाहिए। लक्षण दिखने पर जिनेब और मैंकोजेब की 2.0 ग्राम मात्रा की प्रति लीटर पानी की दर आवश्यक मात्रा में घोल बनाकर 8 से 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
2.चूर्णिल असिता
यह इरीसाइफी पालीगोनी नामक फफूंद से होता है। कम तापक्रम और अधिक नमी की दशा में अधिक लगता है। पत्तियों के ऊपर हल्के सफेद पाउडर सा पूरी वायवीय भाग पर दिखाई पड़ता है। ऐसे ही लक्षण पत्तियों पर भी दिखते हैं पत्तियां सूखकर गिर भी जाती हैं
रोग की रोकथाम
रोग ग्रसित पौधों को इकठ्ठा करके जला देना चाहिए। उचित फसल चक्र अपनाएं। घुलनशील गंधक की 3.0 ग्राम या कैराथेन की 1.25 मिली० मात्रा की प्रति लीटर पानी में घोलकर 10 दिन के अंतराल में छिड़काव करें। रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का प्रयोग करें।
3.म्लानि या उकठा रोग
यह फ्यूजेरियम आक्सीस्फेरम उपजाति लेंटिस नामक कवक से होता है। बुवाई के 15 से 20 दिन बाद पत्तियों में पीलापन, मुरझाने और बाद में सूखने के रूप में प्रकट होता है। पौधा मर तक जाता है। रोगी पौधे की जड़ को यदि लम्बाई में फाड़कर देंखे तो बीचोबीच में भूरे रंग की लाइन दिखती हैं.
रोग की रोकथाम
उचित फसल चक्र और रोग प्रतिरोधी प्रजातियां अपनाएं। बुवाई से पहले थीरम+बावस्टीन (2:1) के 3.0 ग्राम मिश्रण से प्रति किग्रा० बीज को शोधित करें। ट्राइकोडर्मा की 2.5 किग्रा मात्रा को 65 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में खेत की तैयारी के समय मिलाएं।
4 किट्ट रोग
यह यूरोमाइसीज फैबी नामक कवक से होता है। रोग ग्रसित पौधे के तने विकृति की दशा में और बाद में भूरा होकर मर जाते हैं। पत्तियों के ऊपरी और निचली दोनों सतहों पर छोटे-छोटे बिखरे हुए और हल्के भूरे रंग के रूप में बनते हैं।
रोग की रोकथाम
रोग ग्रसित फसल के अवशेषों को इकठ्ठा करके नष्ट करें। 20 से 30 किग्रा गंधक धूल को प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करके रोग के द्वितीय प्रसारण को रोका जा सकता है। बुवाई से पहले थीरम की 2.0 ग्राम मात्रा से प्रति किग्रा बीज को शोधित करें। रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का चयन करें।
5. स्क्लेरोटीनिया झुलसा
यह स्क्लेरोटीनिया स्क्लेरोशियोरम नामक कवक होता है। सबसे पहले तनों पर जलाव शोषित धब्बे बनते हैं जो बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं रोग ग्रसित भाग पर पहले छोटी-छोटी बाद में बड़ी-बड़ी स्क्लेरोशिया बनती हैं कभी-कभी फलियों पर भी रोग के लक्षण दिखते हैं।
रोग की रोकथाम
रोग ग्रसित फसल के अवशेषों को इकठ्ठा करके नष्ट करें। बुवाई से पहले बीज को कार्बेन्डाजिम या कैप्टान की 2.0 ग्राम मात्रा से प्रति किग्रा० बीज को शोधित करें। लक्षण दिखते ही मेन्कोजेब की 2.5 ग्राम या कार्बेन्डाजिम की 1.0 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 8 से 10 दिन के अंतराल पर छिड़कें।
निंदाई-गुड़ाई
जब पौधा 6 इंच का हो तो एक बार डोरा चलाकर निंदाई करें. आवश्यकतानुसार 1-2 निंदाई करना चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण
फसल की बुवाई के एक या दो दिन बाद तक पेन्डीमेथलिन (स्टोम्प )की बाजार में उपलब्ध 3.30 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टयर की दर से छिडक़ाव करें। फसल जब 25 -30 दिन की हो जाए तो एक गुड़ाई कस्सी से कर देनी चहिए.
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फसल चक्र अपनाएं
अच्छी पैदावार के लिए मूंग की खेती में फसल चक्र अपनाना बेहद जरूरी है। वर्षा आधारित खेती के लिए मूंग-बाजरा और सिंचित क्षेत्रों में मूंग- गेहूं/जीरा/सरसों फसल चक्र अपनाना चाहिए। सिंचित खेतों में मूंग की जायद में फसल लेने के लिए धान- गेहूं फसल चक्र में उपयुक्त फसल के रूप में पाई गई है। जिससे मृदा में हरी खाद के रूप में उर्वराशक्ति बढ़ाने में सहायता मिलती है।