Peanut Cultivation: मूंगफली की उन्नत तरीके से खेती करने का तरीका और फसल प्रबंधन
मूंगफली की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती है फिर भी इसकी अच्छी तैयारी के लिए जल निकास वाली कैल्शियम एवं जैव पदार्थो से युक्त बलुई दोमट मिट्टी उत्तम होती है. मिट्टी का पीएच मान 6.0 से 8.0 उपयुक्त रहता है. मई के महीने में खेत की एक जुताई मिट्टी पलटनें वाले हल से करके 2-3 बार हैरो चलावें जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाएं. इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल करें जिससे नमी संचित रहें. खेत की आखिरी तैयारी के समय 2.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से जिप्सम का उपयोग करना चाहिए.
मूंगफली की खेती में खाद एवं उर्वरक प्रबंधन (Manure and fertilizer management in peanut cultivation)
मिट्टी परीक्षण के आधार पर की गयी सिफारिशों के अनुसार ही खाद एवं उर्वरकों की मात्रा सुनिश्चित की जानी चाहिए. मूंगफली की अच्छी फसल के लिए 5 टन अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए. उर्वरक के रूप में 20:60:20 कि.ग्रा./ हैक्टेयर नत्रजन, फॉस्फोरस व पोटाश का प्रयोग आधार खाद के रूप में करना चाहिए. मूंगफली में गंधक का विशेष महत्व है अतः जिप्सम की 250 कि.ग्रा. मात्रा प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग बुवाई से पूर्व आखरी तैयारी के समय प्रयोग करें.
बीजदर
मूंगफली की गुच्छेदार प्रजातियों का 100 कि.ग्रा. एवं फैलने व अर्द्ध फैलने वाली प्रजातियों का 80 कि.ग्रा. बीज (दाने) प्रति हैक्टर प्रयोग उत्तम पाया गया है.
मूंगफली का बीजोपचार (Peanut Seed Treatment)
बीजोपचार कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत + थाइरम 37.5 प्रतिशत की 2.5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से या 1 ग्रा. कार्बेन्डाजिम + ट्राइकाडर्मा विरिडी 4 ग्रा./कि.ग्रा. बीज को उपचार करना चाहिए. बुवाई से पहले राइजोबियम एवं फास्फोरस घोलक जीवाणु (पी.एस.बी.) से 5-10 ग्रा./कि.ग्रा. बीज के मान से उपचार करें. जैव उर्वरकों से उपचार करने से मूंगफली में 15-20 प्रतिशत की उपज बढ़ोत्तरी की जा सकती है.
मूंगफली की बुवाई विधि (Method of sowing peanuts)
मूंगफली की बुवाई जून के द्वितीय सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह में की जाती है. झुमका किस्म के लिए कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखना चाहिए. विस्तार और अर्धविस्तारी किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 45 से.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 15 सें.मी. रखना चाहिए. बीज की गहराई 3 से 5 से.मी. रखनी चाहिए. मूंगफली फसल की बोनी को रेज्ड/ब्रोड-बेड पद्धति से किया जाना लाभप्रद रहता है. बीज की बुवाई ब्रोड बेंड पद्धति से करने पर उपज का अच्छा प्रभाव पड़ता है. इस पद्धति में मूंगफली की 5 कतारों के बाद एक कतार खाली छोड़ देते है.इससे भूमि में नमीं का संचय, जलनिकास, खरपतवारों का नियंत्रण व फसल की देखरेख सही हो जाने के कारण उपज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
सिंचाई प्रबंधन
मूंगफली वर्षा आधारित फसल है अतः सिंचाई की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती है. मूंगफली की फसल में 4 वृद्धि अवस्था क्रमशः प्रारंभिक वानस्पतिक वृद्धि अवस्था, फूल बनना, अधिकीलन (पैगिंग) व फली बनने की अवस्था सिंचाई के प्रति अति संवेदनशील है. खेत में अवश्यकता से अधिक जल को तुरंत बाहर निकाल देना चाहिए अन्यथा वृद्धि व उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है.
मूंगफली में रोगों की रोकथाम (Prevention of diseases in peanuts)
मूंगफली में प्रमुख रूप से टिक्का, कॉलर और तना गलन और रोजेट रोग का प्रकोप होता है. टिक्का के लक्षण दिखते ही इसकी रोकथाम के लिए डायथेन एम-45 का 2 ग्रा./लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए. छिड़काव 10-12 दिन के अंतर पर पुनः करें. रोजेट वायरस जनित रोग हैं, इसके फैलाव को रोकने के लिए फसल पर इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली./लीटर पानी के मान से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.
मूंगफली की खुदाई एवं भंडारण (peanut digging and storage)
जब पौधों की पत्तियों का रंग पीला पड़ने लगे और फलियों के अंदर का टेनिन का रंग उड़ जाये तथा बीज खोल रंगीन हो जाये तो खेत में हल्की सिंचाई कर खुदाई कर लें और पौधों से फलियाँ को अलग कर लें. मूंगफली खुदाई में श्रमह्रास कम करने के लिए यांत्रिक ग्राउण्डनट डिगर उपयोगी है. मूंगफली में उचित भंडारण और अंकुरण क्षमता बनाये रखने के लिए खुदाई पश्चात् सावधानीपूर्वक सुखाना चाहिए. भंडारण के पूर्व पके हुए दानों में नमीं की मात्रा 8 से 10% से अधिक नहीं होना चाहिए. अन्यथा नमीं अधिक होने पर मूंगफली में एस्परजिलस प्लेक्स फफूंद द्वारा एफलाटाक्सिन नामक विषैला तत्व पैदा हो जाता है जो मानव व पशु के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है. यदि मूंगफली को तेज धूप में सुखाये तो अंकुरण क्षमता का हा्रस होता है.