गन्ना किसानों को हर साल गन्ने की खेती (Sugarcane Farming) में रोगों का प्रकोप झेलना पड़ता है, जिसके चलते उनके खेत में लगा गन्ना पूरी तरह से सड़ जाता है. नतीजतन, फसल ख़राब (Crop Damage) की वजह से किसान को भारी नुकसान झेलना पड़ता है. ऐसे में उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद, शाहजहांपुर ने गन्ने में होने वाले रोगों से बचाव के लिए दिशा निर्देश जारी किए हैं.
लाल सड़न रोग (Red Rot Disease)
लाल सड़न एक फफूंद जनित रोग है. इस रोग के लक्षण माह अप्रैल से अगस्त तक पत्तियों के नीचले भाग यानी लीफ शीथ के पास दिखाई देते हैं. इसमें गन्ने के ऊपर की तरफ मध्य सिरे पर लाल रंग के धब्बे होते हैं. इसके बाद अगस्त माह से ग्रसित गन्ने की अगोले पत्ती एक किनारे से दूसरे किनारे तक सूखना शुरू हो जाती हैं. फलस्वरूप धीरे-धीरे पूरा अगोला सूख जाता है. तने के अन्दर का रंग लाल होने के साथ उस पर सफेद धब्बे भी दिखाई देते हैं. तना अन्दर से सूंघने पर सिरके और अल्कोहल जैसी गन्ध आती है.
प्रबंधन के उपाय (Red Rot Disease Management)
किसान अवमुक्त रोग रोधी गन्ना किस्म (Best Variety of Sugarcane) की ही बुवाई करें. लाल सड़न से अधिक प्रभावित क्षेत्रों में ऐसी किस्म को उगाएं, जहां इस पर कम प्रभाव पड़े. 0238 किस्म की बुवाई न करें. इसके स्थान पर अन्य स्वीकृत गन्ना किस्म की रोग रहित नर्सरी तैयार कर बुवाई का कार्य करें.
बुवाई के पूर्व कटे हुए गन्ने के टुकड़ों को 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डजिम 50 WP अथवा थायोफेनेट मेथिल 70 WP के साथ रासायनिक शोधन अवश्य करें. मृदा का जैविक शोधन मुख्यतः ट्राइकोडर्मा अथवा स्यूडोमोनॉस कल्चर से 10 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से 100-200 कि.ग्रा. कम्पोस्ट खाद में 20-25 प्रतिशत नमी के साथ मिलाकर अवश्य करें.
बुवाई के पूर्व कटे हुए गन्ने के टुकड़ों को सेट ट्रीटमेन्ट डिवाइस (0.1 प्रतिशत कार्बेन्डजिम 50 WP या थायोफेनेट मेथिल 70 WP, 200 Hgmm पर 15 मिनट) या हॉट वाटर ट्रीटमेन्ट (52 डिग्री से.ग्रे पर 2 घण्टे) या एम.एच.ए.टी. (54 डिग्री से.ग्रे, 95-99 प्रतिशत आद्रता पर 2 घण्टे 30 मिनट) के साथ शोधन अवश्य करें.
अप्रैल से अगस्त मांग तक अपने खेत की लगातार निगरानी करते रहें. पत्तियों के मध्य सिरा के नीचे रूद्राक्ष/मोती के माला जैसे धब्बे के आधार पर पहचानकर पौधो को जड़ सहित निकालकर नष्ट कर दें तथा गड्ढे में 10 से 20 ग्राम ब्लिचिंग पाउडर डालकर ढक दें अथवा 0.2 प्रतिशत थायोफेनेट मेथिल के घोल की ड्रचिंग करें.
रोग दिखाई देने पर उपरोक्त प्रक्रिया माह जुलाई-अगस्त में भी अनवरत जारी रखें. माह अप्रैल से आखिरी जुलाई व अगस्त तक 0.1 प्रतिशत थायोफेनेट मेथिल 70 WP या कार्बेन्डाजिम 50 WP का पर्णीय छिड़काव करें.
अधिक वर्षा होने पर लाल सड़न से संक्रमित खेत का पानी किसी दूसरे खेत मे रिसाव रोकने हेतु उचित मेड़ बनायें. लाल सड़न से प्रभावित क्षेत्रों में 10 प्रतिशत संक्रमण से अधिक वाले रोगग्रस्त फसल की पेड़ी न लें.
लाल सड़न से संक्रमित खेत में तुरन्त कोई अन्य रोग रोधी गन्ना किस्म की बुवाई कम से कम एक साल तक न करें व सुविधानुसार गेहूं-धान-हरी खाद या उपयुक्त फसलों के साथ फसल चक अपनाकर ही बुवाई करें.
संक्रमित गन्ने की कटाई के बाद संक्रमित अवशेषों को खेत से पूर्णरूपेण बाहर करके नष्ट कर दें तथा गहरी जुताई कर फसल चक अपनाएं. अन्य प्रदेशों से बीज गन्ना लाने से पूर्व वैज्ञानिकों/शोघ संस्थानों से अनुशंसा प्राप्त करनी चाहिए.
पोक्का बोईंग रोग (Pokka Boing Disease)
यह फफूंदी जनित रोग है. इस रोग के स्पष्ट लक्षण विशेष रूप से माह जुलाई से सितम्बर (वर्षाकाल) तक प्रतीत होते हैं. पत्र फलक के पास की पत्तियों के उपरी व नीचली भाग पर सिकुड़न के साथ सफेद धब्बे दिखाई देते हैं. इसकी नीचे की पत्तियां मुरझाकर काली सी पड़ जाती है और पत्ती का ऊपरी भाग सड़कर गिर जाता है. ग्रसित अगोला के ठीक नीचे की पोरियों की संख्या अधिक व छोटी हो जाती है. पोरियों पर चाकू से कटे जैसे निशान भी दिखाई देते हैं.
प्रबंधन के उपाय (Pokka Boing Disease Management)
निम्नलिखित में से किसी एक फफूंदीनाशकों का घोल बनाकर 15 दिन के अन्तराल पर दो बार छिड़काव करें. इस रोग के लक्षण प्रतीत होते ही कार्बेन्डाजिम 50 WP का 0.1 प्रतिशत (400 ग्राम फफूंदीनाशक) का 400 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ की दर से. अथवा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 WP के 0.2 प्रतिशत (800 ग्राम फफूंदीनाशक) का 400 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ की दर से.
पत्ती की लालधारी/ बैक्टीरियल टॉप रॉट रोग (Leaf reddening / bacterial top rot disease)
यह बैक्टीरिया जनित रोग है तथा इस रोग का आपतन जून से वर्षा ऋतु के अन्त तक रहता है. पत्ती के मध्यशिरा के सामानान्तर गहरे लाल रंग की जलीय धारियाँ दिखाई देती हैं. इसका संक्रमण गन्ने के अगोले के बीच की पत्तियाँ सूखने लगती हैं तथा बाद में पूरा अगोला ही सूख जाता पौधे के शिखर कलिका से तने का भीतरी भाग ऊपर से नीचे की ओर सड़ जाता है. गूदे के सड़ाव से अत्यन्त दुर्गन्ध आती है तथा तरल पदार्थ सा प्रतीत होता है.
प्रबंधन के उपाय (Leaf Reddening Management)
यांत्रिक प्रवन्धन में संक्रमित पौधों को काटकर खेत से निकाल दें. रसायनिक प्रबन्धन हेतु कॉपर ऑक्सी क्लोराइड 50 WP का 0.2 प्रतिशत (800 ग्राम फफूंदीनाशक) और स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का 0.01 प्रतिशत (40 ग्राम दवा) का 400 लीटर पानी के घोल के साथ प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के अन्तराल पर दो बार छिड़काव करें अथवा 0.01 प्रतिशत स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (40 ग्राम दवा) का 400 लीटर पानी के मिश्रण के साथ प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के अन्तराल पर दो बार छिड़काव करें.
घासीय प्ररोह रोग (Grass Shoot Disease)
यह रोग फाइटोप्लाज्मा द्वारा संकमित होता है तथा इसका प्रभाव वर्षाकाल में अधिक होता है. रोगी पौधों के पत्तियों का रंग सफेद हो जाता है. गन्ने बौने और पतले हो जाते हैं तथा ब्यॉत बढ़ जाने से पूरा थान झाड़ी नुमा हो जाता है.
प्रबंधन के उपाय (Grass Shoot Disease Management)
ग्रसित पौधों को खेत से निकालकर दूर नष्ट करें. आद्र वायु उष्मोपचार शोधन तकनीकी के अर्न्तगत बीज गन्ने को 54 डिग्री से.ग्रे. वाय् का तापमान, 95-99 प्रतिशत आद्रता पर 2 घण्टे 30 मिनट तक उपचारित करें. जल उष्मोपचार से बीज गन्ने को 52 डिग्री से.ग्रे. तापमान पर 2 घण्टे के लिये शोधन करें. रोग की अधिकता की दशा में वाहक कीट के नियंत्रण हेतु कीटनाशक इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. दर 200 मिली प्रति हे. का 625 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.
कण्डुआ रोग (Kandua Disease)
यह फफूंदी जनित रोग है. रोगी पौधों की पत्तियाँ छोटी, नुकीली तथा पंखे के आकार की होती जाती है. गन्ना लम्बा एवं पतला हो जाता है. गन्ने की अगोले के उपरी भाग से काला कोड़ा निकलता है, जो कि सफेद पतली झिल्ली द्वारा ढका होता है.
प्रबंधन के उपाय (Kandua Disease Management)
बुवाई के समय गन्ना के ट्कडों को प्रोपिकोनाजोल 25 ई. सी. या कार्बेन्डाजिम 50 WP के 0.1 प्रतिशत घोल में 5-10 मिनट तक उपचारित करो. ग्रसित पौधों में बन रहे काले कोड़ों को बोरों से ढककर खेत से निकालकर दूर नष्ट करें. प्रोपिकोनाजोल 25 ई.सी. के 0.1 प्रतिशत घोल का 15 दिनों के अन्तराल पर दो बार छिड़काव करें. आद्र वायु उष्मोपचार या जल उष्मोपचार से शोधन करें.
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