भारत एक कृषि प्रधान देश है, और धान यहां की सबसे महत्वपूर्ण फसलों में से एक है. देश की आधी से ज्यादा आबादी चावल पर निर्भर है और करोड़ों किसान धान की खेती से अपनी आजीविका चलाते हैं. लेकिन आज के समय में किसानों को धान की खेती में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है- जैसे कम उत्पादन, कीट और रोगों का प्रकोप, जलवायु परिवर्तन, लागत में बढ़ोतरी, अधिक समय लेने वाली किस्में.
ऐसे में धान की सही किस्म का चुनाव बहुत जरूरी हो गया है. यही कारण है कि अब किसान पारंपरिक किस्मों के साथ-साथ उन्नत और वैज्ञानिक तरीकों से विकसित बीजों की ओर रुख कर रहे हैं. इन बीजों से उन्हें ज्यादा पैदावार, कम लागत और फसल की बेहतर सुरक्षा मिलती है. इसी कड़ी में कोकिला-33 एक नई उम्मीद बनकर सामने आई है. इसे शक्ति वर्धक हाइब्रिड सीड्स प्राइवेट लिमिटेड (SVHSPL) द्वारा तैयार किया गया है और यह किस्म धीरे-धीरे पूरे भारत में किसानों के बीच लोकप्रिय हो रही है.
धान की उन्नत किस्म कोकिला-33 क्या है?
कोकिला-33 की सबसे बड़ी खासियत इसकी कम अवधि (105-110 दिन) में तैयार होने की क्षमता है. जहां पारंपरिक किस्मों को पकने में 120-130 दिन लगते हैं, वहीं कोकिला-33 की 50% पुष्पन अवधि मात्र 88 दिन है. इसके पौधे की ऊंचाई 92-96 सेमी और मजबूत तना होता है, जिससे फसल गिरने का जोखिम नहीं रहता. दाने लंबे, पतले, और चमकदार होते हैं, जिससे बाजार में इसकी कीमत अधिक मिलती है.
अमेरिकन सूक्ष्म कवच तकनीक से उपचारित यह किस्म रोगों से लड़ने की क्षमता रखता है. कोकिला-33 किस्म पी.बी.-1692 और पी.बी.-1509 सेगमेंट की है, लेकिन किसानों द्वारा इसे इन दोनों किस्मों की तुलना में अधिक सराहा जाता है. प्रति एकड़ 30-32 क्विंटल तक की उपज और कम सिंचाई की आवश्यकता के कारण यह किसानों की पहली पसंद बन चुकी है.
बुवाई कब और कैसे करें?
नर्सरी का समय: 15 मई से 30 जून के बीच नर्सरी की बुवाई करें.
ट्रांसप्लांटिंग: नर्सरी बोने के 20–25 दिन बाद खेत में पौधे लगाएं.
बीज उपचार क्यों जरूरी है?
बुवाई से पहले बीज को फफूंदनाशक (fungicide) जैसे कार्बेन्डाजिम से उपचारित करना जरूरी है ताकि फसल जड़ की बीमारियों से बच सके. 1 लीटर पानी में 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम मिलाकर बीज या पौधों को भिगोना चाहिए.
बीज की मात्रा: प्रति एकड़ 8–10 किलो बीज
नर्सरी के लिए बीज और खाद प्रबंधन:
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25 वर्ग मीटर बेड पर 1 किलो बीज
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500 ग्राम यूरिया
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150 ग्राम डीएपी
खेत में रोपाई के समय दूरी रखें:
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कतार से कतार: 8 इंच
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पौधे से पौधा: 6 इंच
इससे पौधों को पर्याप्त धूप, हवा और जगह मिलती है और वे तेजी से बढ़ते हैं.
खाद और पोषण प्रबंधन (Fertilizer Management)
कोकिला-33 से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए सही समय और मात्रा में उर्वरक देना बहुत जरूरी है. प्रति हेक्टेयर खाद योजना निम्नलिखित है:
खाद का नाम |
मात्रा (किलो में) |
यूरिया |
115 किलो |
डीएपी |
60 किलो |
पोटाश |
25 किलो |
जिंक सल्फेट |
10 किलो |
उर्वरक देने का समय:
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ट्रांसप्लांटिंग के समय: पूरा डीएपी, पोटाश, जिंक और आधा यूरिया दें.
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बचा हुआ यूरिया दो बार में दें:
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पहली बार रोपाई के 10–15 दिन बाद
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दूसरी बार जब फसल में बालियां (panicle initiation) आने लगें
खरपतवार नियंत्रण (Weed Management)
खरपतवार यदि समय पर नियंत्रित न किया जाए, तो वे फसल की उपज में भारी कमी ला सकते हैं. कोकिला-33 की खेती में निम्नलिखित उपाय कारगर हैं:
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प्रारंभिक नियंत्रण:
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रोपाई के 3 दिन बाद Butachlor 50 EC – 1.2 लीटर/एकड़ या
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Pretilachlor 50 EC – 800 मिली/एकड़ का छिड़काव करें
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बाद की खरपतवारों के लिए:
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15–20 दिन बाद Bispyribac Sodium (Nomini Gold) – 100 मिली/एकड़ का छिड़काव करें
कीट प्रबंधन (Pest Management)
हालांकि, कोकिला-33 में कीटों के प्रति सहनशीलता है, लेकिन फिर भी कुछ कीट जैसे लीफ फोल्डर और स्टेम बोरर से बचाव जरूरी होता है.
उपाय:
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खेत में रोपाई के समय:
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Cartap Hydrochloride 4G – 15 किलो/एकड़ या
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Fipronil 0.3G – 20 किलो/एकड़
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हमला अधिक होने पर:
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Triazophos 39.5% EC – 20 मिली/200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें
रोग नियंत्रण (Disease Management)
कोकिला-33 धान की किस्म ज्यादातर बीमारियों के प्रति सहनशील (resistant) है. लेकिन अगर मौसम में नमी (high humidity) ज्यादा हो जाए, तो बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट और शीथ ब्लाइट जैसी बीमारियां लग सकती हैं.
इनसे बचाव के लिए यह उपाय करें:
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200 मिली ट्रायसाइक्लाजोल और डाइफेनोकॉनाज़ोल (Tricyclazole + Difenoconazole) फफूंदनाशक (fungicide) को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़काव करें.
अगर सिर्फ शीथ ब्लाइट की समस्या हो, तो:
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200 मिली वैलिडामाइसिन (Validamycin) को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़कें.
यह छिड़काव रोगों को फैलने से रोकता है और फसल को स्वस्थ बनाए रखता है.
कोकिला-33 की खेती कर चुके किसानों के अनुभव
उत्तर प्रदेश के एटा जिले के रहने वाले प्रगतिशील किसान अनुज यादव एक प्रगतिशील किसान हैं जो खेती में नए प्रयोग करने में विश्वास रखते हैं. उन्होंने कोकिला-33 को पहली बार 2023 में आज़माया. उनका अनुभव बहुत सकारात्मक रहा. उन्होंने बताया,"इस किस्म के दानों में अद्भुत चमक होती है और पूरा खेत एक समान बालियों से भरा हुआ नजर आता है. मुझे फसल में किसी भी तरह का रोग या कीट प्रकोप देखने को नहीं मिलता. सिंचाई की जरूरत भी कम पड़ती है और फसल पर मेरा कुल खर्च पहले की तुलना में कम आता है. यही वजह है कि इस साल भी मैंने कोकिला-33 को बोने का फैसला किया है. यह किस्म मेरे जैसे छोटे किसानों के लिए बहुत फायदेमंद है."
20 बीघा खेत में कोकिला-33 की खेती करने वाले उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के रहने वाले प्रगतिशील किसान रमाकांत त्रिवेदी ने बताया कि कोकिला-33 ने उनकी खेती की दिशा बदल दी. "इस किस्म की नर्सरी केवल 25 दिनों में तैयार हो गई, और पौधों की ऊंचाई मध्यम होने से फसल कभी गिरी नहीं. दुकानदार ने मुझे बताया था कि यह 105-110 दिनों की किस्म है और सच में फसल 105 दिन में पूरी तरह तैयार हो गई. बालियों का आकार और दानों की गुणवत्ता इतनी अच्छी थी कि खरीददार भी खुश हो गए. मैं आने वाले वर्षों में भी सिर्फ इसी किस्म पर भरोसा करूंगा."
पंजाब के संगरूर जिले के रहने वाले प्रगतिशील किसान तरसेम सिंह, जो वर्षों से धान की खेती करते आ रहे हैं, कोकिला-33 को लेकर खासे उत्साहित हैं. उन्होंने बताया,"यह किस्म कम पानी में भी शानदार उपज देती है. इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि फसल गिरती नहीं और पूरे सीजन में कोई भी रोग नजर नहीं आता. क्वालिटी इतनी अच्छी है कि मंडी में मेरे धान को ऊंची कीमत मिलती है. मैं अब अन्य किसानों को भी सलाह देता हूं कि वे कम से कम एक बार इस किस्म को जरूर आज़माएं."
PB 1509 / PB 1692 श्रेणी की अन्य उन्नत किस्में
शक्ति वर्धक कंपनी सिर्फ कोकिला-33 ही नहीं, बल्कि इसी श्रेणी की कुछ और बेहतरीन किस्में भी किसानों को उपलब्ध कराती है, जो अलग-अलग समय और क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हैं.
कोकिला-11
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यह किस्म 108 से 113 दिन में पक जाती है.
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यह जल्दी और मध्यम अवधि वाले क्षेत्रों (early और medium duration zones) के लिए उपयुक्त है.
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अगर देखभाल अच्छी हो, तो यह किस्म प्रति एकड़ अच्छी उपज देती है.
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इसमें कीटों और रोगों के खिलाफ अच्छी सहनशक्ति होती है.
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इसके दाने लंबे और चमकदार होते हैं.
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यह अलग-अलग मौसम और मिट्टी की स्थिति में भी अच्छा प्रदर्शन करती है.
कोकिला-22
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यह किस्म 100 से 105 दिनों में तैयार हो जाती है, यानी यह जल्दी पकने वाली किस्म है.
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इससे किसान कम समय में फसल काट सकते हैं और अगली फसल जल्दी लगा सकते हैं.
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यह किस्म हल्की और मध्यम मिट्टी में भी अच्छे से उगती है.
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जिन क्षेत्रों में कम समय में फसल लेनी होती है, वहां यह बहुत उपयोगी है.
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सही प्रबंधन करने पर इस किस्म से 20 क्विंटल प्रति एकड़ या उससे अधिक उपज मिल सकती है.
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यह कम समय में अधिक कमाई चाहने वाले किसानों के लिए बेहतरीन विकल्प है.
धान की उन्नत किस्म कोकिला-33 क्यों चुनें?
कोकिला-33 केवल एक धान का बीज नहीं है, बल्कि यह किसानों के लिए खेती का एक ऐसा समाधान है जो उन्हें फसल में अधिक विश्वास, कम लागत और अधिक आमदनी देने में मदद करता है. यह किस्म खासतौर पर उन किसानों के लिए उपयोगी है जो पारंपरिक खेती से आगे बढ़कर आधुनिक तकनीक अपनाना चाहते हैं और खेती को लाभदायक बनाना चाहते हैं.