पश्चिम बंगाल का प्रमुख खाद्य चावल और मछली है. बंगाली समाज चावल के साथ मछली खाना पसंद करता है. यहां की मिट्टी और जलवायु धान और मछली उत्पादन के लिए बहुत ही अनुकूल है. पश्चिम बंगाल ही एक मात्र ऐसा राज्य है जहां रबी और खरीब दोनों मौसम में धान की खेती होती है. यहां साल में धान की तीन फसलें होती है. आउस, अमन और बोरो तीन तरह की धान की खेती होने के कारण ही पश्चिम बंगाल धान उत्पादन में शीर्ष पर है. लेकिन इधर देखा जा रहा है कि मत्स्य पालन में अधिक लाभ होने के कारण धान के किसान अपनी कृषि जमीन को मछली पालन केंद्र में तब्दील करने में ज्यादा रूचि लेने लगे हैं.
मैं यहां इसका दो उदाहरण देना चाहूंगा जो राज्य में धान की कृषि जमीन संकूचित होने की पुष्टि करता है. पूर्व मेदिनीपुर और दक्षिण 24 परगना में धान की अच्छी खेती होती है. लेकिन तटवर्ती क्षेत्र के इन दोनों जिलों में नदी-नाले तालाब और जलाशयों की भरमार भी है. इसलिए इन जिलों में मछली पालन के लिए पहले से ही प्राकृतिक परिवेश मौजूद है. पश्चिमी मेदिनीपुर और दक्षिण 24 परगना के मछुआरे समुद्र से भी विभिन्न प्रजाति की मछलियों का शिकार कर उसे बाजार में पहुंचाते हैं. कहने का मतलब यह है कि दोनों जिलों में मछली पालन के लिए पहले से ही प्राकृतिक परिवेश और विस्तृत क्षेत्र में जलाशय मौजूद हैं. अलग से कृषि जमीन को मत्स्य पालने के लिए इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं है. लेकिन आश्चर्य है कि धान की खेती करने वाले किसान अपनी कृषि भूमि पर तालाब खोदवा कर मछली पालन करने लगे हैं.
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक पूर्व मेदिनीपुर के नंदीग्राम में 11 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि है. पिछले दो ढाई वर्षों में 6 हजार एकड़ कृषि भूमि मछली पालन केंद्र में तब्दील हो गई है. चार-पांच वर्ष पहले यहां मछली पालन करने वाले लोगों की संख्या करीब तीन से साढ़े तीन हजार थी. लेकिन आज मछली पालन करने वाले किसानों की संख्या बढ़कर सात हजार हो गई है.
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नंदीग्राम के किसान हाजी शेख आलमगीर को धान की खेती बढ़ाने में जैविक खाद का प्रयोग करने के लिए 2017 में पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से ‘कृषक सम्मान’ से पुरस्कृत किया गया था. आज शेख आलमगीर नंदीग्राम में व्यापक स्तर पर मछली पालन करने के लिए जाने जाते हैं. वह नंदीग्राम वनमेय एंड बागदा एक्वा कल्चर समिति के अध्यक्ष भी है जो मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए काम करती है. समिति के मुताबिक धान के किसानों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. इसलिए वे अब मछली पालन में ज्यादा रुचि लेने लगे हैं. धान की खेती में नुकसान की आशंका भी बनी रहती है. लेकिन मछली पालन में लाभ निश्चित है. धान की खेती की तुलना में मछली पालन में कम समय लाभ ज्यादा है. समिति के सदस्यों का कहना है कि एक बीघा जमीन में धान की खेती में सब खर्च बाद देकर किसानों के हाथ में मुश्किल से 3500 रुपए आते हैं. लेकिन उसी एक बीघा जमीन को यदि को किसान मत्स्य पालन के लिए किसी मछली व्यवसायी को जमीन लीज पर देता है तो उसे सालाना 25 हजार रुपए मिलेंगे. मछली पालन में किसानों के लिए कोई जोखिम नहीं है. इसलिए वे मछली पालन में ही रुचि ले रहे हैं.
तटवर्ती जिला दक्षिण 24 परगना में भी यह स्थिति है. अक्सर चक्रवाती तूफान की चपेट में आने के कारण फसलों की भारी क्षति होती है. इस बार चक्रवाती तूफान आने के कारण एक विस्तृत क्षेत्र में समुद्र का खारा पानी घुस गया. अभी भी दक्षिण 24 परगना और नंदीग्राम के हजारों एकड़ भूमि में समुद्र का खारा पानी जमा है. खेतों में खारा पानी घुस जाने से धान के बीज नष्ट हो जाते हैं और इससे किसानों को बहुत नुकसान होता है. वर्षों पहले चक्रवाती तूफान ‘आइला’ उसके बाद ‘बुलबुल’ और फिर इस बार ‘अंफान’ के कारण दक्षिण 24 परगना में भारी तबाही होने के बाद किसान अपने निचली कृषि जमीन में धान की खेती नहीं कर उसका इस्तेमाल मत्स्य पालन में करने लगे हैं. धान की खेती संकुचित होने से रोकने के लिए कृषि विभाग को कारगर कदम उठाना चाहिए. इसलिए कि अधिक मात्रा में कृषि भूमि का चरित्र बदलता है तो यह खेती-किसानी के लिए शुभ नहीं है.