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Updated on: 28 May, 2024 12:01 PM IST
जैविक खाद , Image Source: Pinterest

महंगाई के समस्या का एक प्रमुख कारण कृषि उत्पादन में कमी है. जहां कुछ दशक पूर्व भारत में हरित क्रांति आई थी. देश में खाद्यानों का भंडार था. यहां तक कि हमारे देश से दूसरे देशों को खाद्यानों का निर्यात होता था. वही अचानक यह समस्या कैसे आई? यह विचार का विषय है. विश्व में खदानों के उत्पादन पर विचार किया जाए तो भारत की स्थिति बहुत ही चिंतनीय है. जहां पड़ोसी चीन में प्रति हेक्टेयर उत्पादन 80 से 100 क्विंटल है, वही हमारे देश में मात्र 40 से 50 क्विंटल है. इस संबंध में प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर स्वामीनाथन ने कहा कि "हमारे देश में कृषि भूमि की उपज क्षमता में 100 से 200% वृद्धि की संभावना है" अर्थात हम चीन से भी अधिक उत्पादन कर सकते हैं.

उपरोक्त संदर्भ में कृषि उत्पादन में परिवर्तन की आवश्यकता है अर्थात रासायनिक खेती की जगह पुनः जैविक खेती पर ध्यान देना अपेक्षित है. जैविक कृषि खेती की वह पुरानी पद्धति है जिसमें प्राकृतिक संसाधन का उपयोग करके जैविक खाद तैयार किया जाता है.  इसमें विशेष रूप से कृषि से उत्पादित वैसे पदार्थ, दिन का उपयोग खाद्यान्नों के तौर पर नहीं होता, उन पदार्थों को प्रकृति संवत सरल विधि से खाद तैयार किया जाता है.  इस संबंध में अनंत काल से गांव में एक कहावत प्रचलित है. केंचुए किसान के मित्र होते हैं. यह अब वर्तमान में कृषि वैज्ञानिकों ने प्रमाणित कर दिया है कि केंचुए खेती की उर्वरता बढ़ाने में जो सहायता करते हैं वह सामान्य यांत्रिक रूप से नहीं की जा सकती है. केंचुए की प्रजाति अफ्रीकन नाइट क्राउलर 1 घंटे में 100 बार भूमि के अंदर चक्कर लगाती हैं. इस प्रक्रिया द्वारा भूमि की उर्वरा प्रचुर मात्रा में बढ़ता है.

केंचुए से भूमि की उर्वरा प्रचुर मात्रा बढ़ती है

केंचुए से जैविक खाद का निर्माण वर्तमान सदी के देन है जिसमें इस जीव को एक उत्प्रेरक की तरह उपयोग किया जाता है. वैसे तो केंचुए की अनेक प्रजातियां उपलब्ध है किंतु जैविक खाद निर्माण के लिए अफ्रीकन नाइट क्राउलर सर्वोत्तम है. यह काले रंग का 6 से 7 इंची लंबा केंचुआ होता है जो सम्मान से भी छोटा व रंग में भिन्न होता है. इसका प्रजनन बहुत सरल एवं सुगम्य है. पहली बार में इसके अण्डे छोटे केंचुए में मिट्टी का क्रय करके एक वैज्ञानिक विधि से निर्मित गड्ढे में रखकर प्रजनन कराया जाता है. समान तौर पर इस केंचुआ के लिए 20 से 30 सेंटीग्रेड तापमान और उपयुक्त रहता है. किन्तु 2 से 4 सेंटीग्रेड कम ज्यादा तापमान पर भी यह जीवित रह सकता है. इसके प्रजनन में कच्चा गोबर काली मिट्टी के साथ में रहती है तथा समय पर पानी का छिड़काव कर गर्मी में करना लाभदायक रहता है.

पूरे उत्तर भारत में तालाबों में जलकुंभी ने अपने पड़ाव बना लिया है अर्थात यह जंगली खरपतवार पूरे तालाब से अपने आप में फैल जाती है. जलकुंभी पूरे देश में वैज्ञानिकों के लिए एक चिंता का विषय है क्योंकि दिन पर दिन इसका फैलाव एक कोने से दूसरे और बढ़ रहा है. ऐसे समय में इस खरपतवार को शुद्ध प्रयोग खाद बनाने में किया जा सकता है. यहां एक अनुपयोगी जैविक पदार्थ को उपयोगी बनाना है. अंत तक जो खरपतवार समस्या बना हुआ था, उसका सदुपयोग हरि का जैविक खाद बनाने में अप्रत्याशित सफलता का सकारात्मक उदाहरण है.

गोबर की खाद

जलकुंभी के खरपतवार पत्तों को उसकी प्राकृतिक अवस्था में तालाब से काटकर उसके छोटे-छोटे टुकड़े में काटकर सुखा लें. फिर आवश्यकतानुसार अर्थात 8*  6 * 4 का गड्ढा बनाकर जिसमें धरातल पक्का अवश्य होना चाहिए उसकी निचली तह में गोबर की खाद गिली गोबर की खाद की सतह बना लेना चाहिए. फिर छोटे-छोटे जलकुंभी की पत्तियों को गड्ढे में डालें, गड्ढे को ऊपर तक भर दें तथा उसके ऊपर गली काली मिट्टी की सतह बनाएं जिसमें गोबर भी मिला हो तो अच्छा है. इस मिश्रण में कछुआ को प्राप्त मात्रा में एक से डेढ़ किलोग्राम डाल दें, फिर इस गड्ढे को गोबर से लिप दें. इस गड्ढे को 50 से 60 दिन इसी प्रकार ही रहने दे. गर्मी के समय दो से तीन बार पानी का छिड़काव करें. बरसात में भारी वर्षा से गड्ढे को बचाए रखने के लिए उसे पर छप्पर फूस अथवा तीरपाल डाल दें.

जब केंचुए के खाद बना लेते हैं, अर्थात जलकुंभी को जैविक खाद बन जाती है तो केंचुए गड्ढे की सतह पर आ जाते हैं और खाद का रंग हल्का मटमैला हो जाता है. इस खाद के मिश्रण को गड्ढे से बाहर निकाल बाहर हल्की धूप में सुखा ले. खाद को यदि वाणिज्यिक स्तर पर बनाकर विक्रय करना है तो 1-2 सेंटीमीटर की छलनी में छान और सुखाकर छोटे-बड़े थैलों में भर सकते हैं. छलनी में केंचुए इकट्ठे हो जाए तो उन्हें पूर्ण उपयोग में ला सकते हैं. यहां स्पष्ट करना आवश्यक है कि केंचुए की खाद चाय की पत्ती जैसी, 1 सेंटीमीटर के लगभग आकार की आ जाए तो उसे पूर्ण रूप से सुखाकर थैलों में भरें गीली खाद नमी के कारण सड़ सकती है. शेष खाद को पूर्ण उपयोग में ला सकते हैं. यदि खाद का उपयोग अपने खेत में करना है तो सीधे खेत में डाली जा सकती है.

केंचुए की खाद में सम्मान कंपोस्ट की खाद से 40 से 45% अधिक पोषक तत्व होते हैं. साथ में ही एक और विशेषता होती है कि खेत को यह खाद अधिक उपजाऊ बनती है. व्यावहारिक प्रयोग से यह सिद्ध हो चुका है कि केंचुए की खाद के द्वारा सामान खाद से दुगना उत्पादन होता है. खाद को खेती में रबी के फसल में खरीफ की फसल के काटने के बाद 2 से 3 जताई के बाद डालें. यह खेत की निचली सतह में न केवल नमी बनाए रखती है, अपितु खेत की उर्वरा शक्ति बनाई भी रखती है.

लेखक:

रबीन्द्रनाथ चौबे, ब्यूरो चीफ,कृषि जागरण,बलिया, उत्तरप्रदेश ।

English Summary: Organic farming instead of chemical farming in hindi
Published on: 28 May 2024, 12:05 PM IST

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