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Updated on: 13 December, 2019 3:59 PM IST

मानव जीवन के भोजन में सब्जियों का अपना एक महत्व होता हैं. राजस्थान व भारत में उगाई जाने वाली सब्जियों में भिण्डी का प्रमुख स्थान हैं. भिण्डी रबी व खरीफ दोनों समय में आसानी से ऊगाई जा सकती हैं. भिण्डी की फसल में कीटों का प्रकोप भी कुछ ज्यादा ही होता हैं, अत: सही समय पर इनकी पहचान करके उचित प्रबन्धन करें तो काफी हद तक फसल को बचाकर अच्छी ऊपज ले सकते हैं. भिण्डी के प्रमुख कीट निम्न हैं –

फल छेदक : इस कीट का प्रकोप वर्षा ऋतु में अधिक होता है. प्रारंभिक अवस्था में इसकी इल्ली कोमल तने में छेद करती है जिससे पौधे का तना एवं शीर्ष भाग सूख जाता है. फूलों पर इसके आक्रमण से फूल लगने के पूर्व गिर जाते है. इसके बाद फल में छेद बनाकर अंदर घुसकर गूदा को खाती है. जिससे ग्रसित फल मुड़ जाते हैं और भिण्डी खाने योग्य नहीं रहती है.

प्रबंधन

क्षतिग्रस्त पौधो के तनो तथा फलों को एकत्रित करके नष्ट कर देना चाहिए.

मकड़ी एवं परभक्षी कीटों के विकास या गुणन के लिये मुख्य फसल के बीच-बीच में और चारों तरफ बेबीकॉर्न लगायें .

फल छेदक की निगरानी के लिये 5 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर लगायें.

फल छेदक के नियत्रंण के लिये टा्रइकोगा्रमा काइलोनिस  एक लाख प्रति हैक्टयेर की दर से 2-3 बार उपयोग करें तथा साइपरमेथ्रिन (4 मि.ली./10 ली.) या इमामेक्टिन बेन्जोएट (2 ग्रा./10 ली.) या स्पाइनोसैड (3 मि.ली./10 ली.) का छिड़काव करें.

क्युनालफॉस 25 प्रतिशत ई.सी. क्लोरपायरिफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. अथवा प्रोफेनोफॉस 50 प्रतिशत ई.सी. की 5 मिली मात्रा प्रति लीटर पानी में घो ल क र छिडकाव करें तथा आवश्यकतानुसार छिडकाव को दोहराएं.

फुदका या तेला :

इस कीट का प्रकोप पौधो के प्रारम्भिक अवस्था के समय होता है. शिशु एवं वयस्क पौधे की पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं, जिसके कारण पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और अधिक प्रकोप होने पर मुरझाकर सूख जाती हैं.

प्रबंधन

नीम की खली 250 कि.ग्रा. प्रति हेक्टयेर की दर से अंकुरण के तुरंत बा द मिटटी मे मिला देना चाहिए तथा बुआई के 30 दिन बाद फिर मिला देना चाहिए .

बुआई के समय कार्बोफ्युराँन 3 जी 1 कि.ग्रा. प्रति हेक्टयेर की दर से मिट्टी में मिलाने से इस कीट का काफी हद तक नियंत्रण होता है.

सफेद मक्खी :

ये सूक्ष्म आकार के कीट होते है तथा इसके शिशु एवं प्रौढ पत्तियों, कोमल तने एवं फल से रस को चूसकर नुकसान पहुंचाते है. जिससे पौधो की वृध्दि कम होती है तथा उपज में भी कमी आ जाती है. ये कीट येलो वेन मोजैक वायरस बीमारी फैलाती है.

प्रबंधन

नीम की खली 250 कि.ग्रा. प्रति हैक्टयेर बीज के अंकुरण के समय एवं बुआई के 30 दिन के बाद नीम बीज के पावडर 4 प्रतिशत या 1 प्रतिशत नीम तेल का छिडकाव करें.

आरम्भिक अवस्था में रस चूसने वाले किटों से बचाव के लिये बीजों को इमीड़ाक्लोप्रिड या थायामिथोक्साम द्वारा 4 ग्रा. प्रति किलो ग्राम की दर से उपचारित करें.

कीट का प्रकोप अधिक लगने पर आक्सी मिथाइल डेमेटान 25 प्रतिशत ई.सी. अथवा डायमिथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. की 5 मिली मात्रा प्रति लीटर पानी में अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस.एल अथवा एसिटामिप्रिड 20 प्रतिशत एस. पी. की 5 मिली./ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें एवं आवश्यकतानुसार छिडकाव को दोहराएं.

रेड स्पाइडर माइट  

यह कीट पौधों की पत्तियों की निचली सतह पर भारी संख्या में कॉलोनी बनाकर रहता हैं. यह अपने मुखांग से पत्तियों की कोशिकाओं में छिद्र करता हैं . इसके फलस्वरुप जो द्रव निकलता है उसे चूसता हैं. क्षतिग्रस्त पत्तिायां पीली पडकर टेढ़ी मेढ़ी हो जाती हैं. अधिक प्रकोप होने पर संपूर्ण पौधा सूख कर नष्ट हो जाता हैं.

प्रबंधन

इसकी रोकथाम हेतु डाइकोफॉल 5 ईसी. की 2.0 मिली मात्रा प्रति लीटर अथवा घुलनशील गंधक 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें एवं आवश्यकतानुसार छिडकाव को दोहराएं.

रमेश कुमार साँप (विद्यावाचस्पति), डॉ. वीर सिंह (आचार्य एवं विभागाध्यक्ष)   
कीट विज्ञान विभाग (कृषि महाविद्यालय, बीकानेर, राजस्थान–334006)
सुरेन्द्र कुमार, (वरिष्ठ अनुसंधान अध्येता), कृषि अनुसंधान केंद्र श्री गंगानगर, राजस्थान

English Summary: okra cultivation: Major pests and their management in okra fields
Published on: 13 December 2019, 04:05 PM IST

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