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प्रमुख कीटों की पहचान

पोषक अनाज जो श्रीअन्न के नाम से भी जाना जाता है. पोषक अनाजों ज्चार, बाजरा, रागी, कोदो, चीना, कंगनी इत्यादि है जो एक प्रकार की बड़ी घास है जिनमें छोटे-छोटे दानें लगते हैं. इन दानों की गिनती मोटे अनाजों में होती है परन्तु ये पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं. मोटे अनाजों में फाइबर भी अधिक मात्रा में होता है और ये मधुमेह रोगियों के लिए अच्छा है. ये ग्लूटन फ्री होते हैं, इनमें प्रोटीन भी अच्छी मात्रा में होती है. ज्चार एवं बाजरे में कई पोषक तत्व होते है.

यह कैल्शियम, मैगनीज, फॉस्फोरस, फाइबर, मैग्नीशियम, जिंक, आयरन, फोलेट, विटामिन बी और कई तरह के एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है. इसके सेवन से न सिर्फ शरीर में उर्जा बनी रहती बल्कि भरपूर पोषण भी मिलता है. रागी में आयरन की पर्याप्त मात्रा मौजूद होती है, जो एनीमिया के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद है. इसके सेवन से शरीर में विटामिन सी का स्तर बढ़ जाता है जिससे रागी में मौजूद आयरन का पाचन ठीक से हो जाता है.

ज्वार तना छेदक

पहचानः ज्चार तना छेदक कीट का मौथ हल्के पीले-भूरे रंग का होता है. इसके अगले पंख तिनके के रंग के होते हैं जिनके अंत में बाहर की ओर दो पंक्तियों में काले बिन्दु पाये जाते है. इस कीट के नर के पिछले पंखों का रंग कुछ धुएंदार होता है और मादा में सफेद होता है. मादा के उदर के पीछे की तरफ अंतिम भाग में एक बालों का गुच्छा होता है और वह कुछ थोड़ा-सा चौड़ा होता है.

परपोषी पौधेः ज्चार, बाजरा, मक्का, गन्ना, सूडान घास, सरकंडा, सांवा, रागी इत्यादि.

हानि का स्वरूपः इस कीट के पिल्लू पहले पत्ती को खुरच-खुरच कर खाती है और बाद में सूई से छेदों के समान दिखाई पड़ते है. इसके बाद ये पिल्लू तने में छेद करके भीतर प्रवेश कर खाती है. यदि इस कीट का आक्रमण अंकुरण के बाद ही पौध अवस्था में हो जाता है तो उस समय ऊपर की पत्तियां सूख जाती है और अन्त में पौधा सूख जाता है. ऐसी दशा में सूखी हुई फुनगी को ‘मृत केन्द्र (Dead heart) ‘ का बनना कहते है. इनका प्रकोप बड़े पौधे पर होने से पौधे कमजोर हो जाते है जिसके कारण तेज हवा चलने पर गांठ से टूट कर गिर जाते हैं.

ज्वार तना छेदक

प्रबंधन:

  • फसल सुरक्षा के लिए कीट ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.
  • फसल की कटाई के बाद बचे हुए ठूंठों को नष्ट कर देना चाहिए.
  • प्रकाश प्रपंच (लाइट ट्रैप) खेतों में लगायें.
  • तना छेदक कीट से बचाव हेतु फेरोमोन ट्रैप 10/हेक्टेयर लगायें.
  • प्रकोप अधिक होने पर और पौधा 2-3 पत्ती का हो तो इमामेक्टिन बेन्जोएट 5 एस॰जी॰ का 2 ग्राम प्रति 5 लीटर पानी में या फ्लूबेन्डामाइड 480 एस०सी० का 1 मि०ली० प्रति 5 लीटर पानी में या डेल्टामेथ्रिन का 1 मि०ली० प्रति 4 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.

ज्वार की प्ररोह मक्खी

पहचानः यह मक्खी घरेलू मक्खी की अपेक्षा आकार में छोटी होती है. इनके स्कुटेलम में शूल (Spines) नहीं होते है परन्तु शूक (Bristles) पाये जाते है. नर स्पर्षिका पीली होती है, आधार पर थोड़ा गहरा हो जाता है.

परपोषी पौधेः ज्चार, मक्का, रागी इत्यादि.

हानि का स्वरूपः इस कीट के मैगट पहले तनो में छेद करते है और मुख्य प्ररोह को काट देते है. इस प्रकार बड़े पौाधों में ‘मृत केन्द्र (Dead heart)^ उत्पन्न हो जाता है और वे सूख जाते हैं. इस कीट से कभी-कभी 60-70 प्रतिशत तक हानि हो जाती है.

ज्वार की प्ररोह मक्खी

प्रबंधन:

  • बीज की अधिक मात्रा होनी चाहिए.
  • जिन पौधों पर मृत केन्द्र प्रकट हो उन्हें उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.
  • क्लोरपायरीफॉस 4 मि०ली० या इमीडाक्लोप्रीड 48 एफ॰एस॰ का 5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें.
  • प्रकोप अधिक होने पर फ्लूबेन्डामाइड 480 एस०सी० का 1 मि०ली० प्रति 5 लीटर पानी में या डेल्टामेथ्रिन का 1 मि०ली० प्रति 4 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.

ज्वार बाली बग

पहचानः यह बग पतले हरे रंग एवं नर्म शरीर का है जिसमें नेत्रक नहीं होते है.

परपोषी पौधेः ज्वार, धान, मक्का, रागी इत्यादि.

हानि का स्वरूपः इस कीट के निम्फ और वयस्क दोनों ही हानि पहुँचाते हैं. ये कच्ची बालियों के दानों के रस को चूस लेती जिससे वे सूख जाते हैं. इस प्रकार किसी-किसी बाली में बिल्कुल ही दानें नहीं पड़ते है.

प्रबंधन:

  • इस के नियंत्रण के लिये फसल पर नीम बीज चूर्ण का भुरकाव करना चाहिए.
  • इमिडाक्लोप्रीड 8 एस॰एल॰ का 1 मि॰ली॰ या थायोमिथोक्जेम 25 डब्लू॰जी॰ का 1 ग्राम प्रति 3 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए.

ज्वार पत्र लपेटक कीट

पहचानः इस कीट का वयस्क मॉथ होता है, जिसके पंखों पर भूरी धारियाँ पाई जाती है एवं शरीर पर सफेद धारियाँ होती है.

परपोषी पौधेः ज्वार, मक्का, रागी इत्यादि.

हानि का स्वरूपः इस कीट की हानिकारक अवस्था पिल्लू होती है. इसके पिल्लू निकलते ही पत्तियों के ऊपरी सतह को खाकर उसमें खुरचन सी बना देती है और फिर पत्ती पर घूमती है और उसको मोड़ना आरंभ कर देती है. यह रेशम की डोरी से पत्ती को मोड़कर बाँध देती है और अन्दर ही अन्दर पत्तियों को खाती रहती है. यह कभी भी पत्तियों में छेद नहीं करती और मुड़ी हुई पत्तियों के अन्दर रहती है. पत्तियों की ऊपरी नोंक सूख जाती है. खायी हुई पत्तियाँ सफेद पड़ जाती है और उनको देखने से मामूल पड़ता है मानो कागज का टुकड़ा हो. एक पिल्लू लगभग 5.6 पत्तियों को खाकर हानि पहुंचाती है.

ज्वार पत्र लपेटक कीट

प्रबंधन:

  • मुड़ी हुई पत्तियों का इकठ्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए.
  • इस के नियंत्रण के लिये फसल पर नीम बीज चूर्ण का भुरकाव करना चाहिए.
  • प्रोफेनोफॉस 50 ई॰सी॰ का 2 मि॰ली॰ प्रति लीटर पानी में या फिप्रोनील 1 मि॰ली॰ प्रति 3 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए.

गुलाबी तना छेदक

पहचानः इस कीट का मॉथ तिनके के रंग का होता है जिनपर भूरे चिन्ह होते है. अगले पंख के मध्य भाग में एक काली भूरी धारी एवं धब्बे पंख के किनारे की ओर होती है. इसके पिछले पंख सफेद रंग के होते है.

परपोषी पौधेः ज्चार, मक्का, बाजरा, रागी, जई, गेहूँ, धान, गन्ना इत्यादि.

हानि का स्वरूपः इस कीट के पिल्लू अण्डों से बाहर निकलकर भूमि के पास पर्णच्छद में छेदकर तने में प्रवेश कर उसे खाती है. जिस स्थान से यह पिल्लू प्रवेश करता है वहाँ इस पिल्लू का मल इकट्ठा हो जाता है. तने में प्रवेश करके पिथ खाती है जिसके फलस्वरूप पौधे पीले पड़ जाते है एवं पौधों की बढ़वार रूक जाती है. इसके मध्य की पत्तियां सूख जाती है और मृत केन्द्र बन जाता है और बाहर खींचने पर अलग होकर निकल जाती है.

गुलाबी तना छेदक

प्रबंधन:

  • मई-जून के महीने मे गहरी जुताई करें.
  • प्रकाष प्रपंच (लाइट ट्रैप) खेतों में लगायें.
  • तना छेदक कीट से बचाव हेतु फेरोमोन ट्रैप 10/हेक्टेयर लगायें.
  • प्रकोप अधिक होने पर इमामेक्टिन बेन्जोएट 5 एस॰जी॰ का 2 ग्राम प्रति 5 लीटर पानी में या फ्लूबेन्डामाइड 480 एस०सी० का 1 मि०ली० प्रति 5 लीटर पानी में या प्रोफेनाफॉस 50 ई०सी० का 2 मि०ली० प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.

पहचानः इस कीट का मॉथ तिनके के रंग का होता है जिनपर भूरे चिन्ह होते है. अगले पंख के मध्य भाग में एक काली भूरी धारी एवं धब्बे पंख के किनारे की ओर होती है. इसके पिछले पंख सफेद रंग के होते है.

परपोषी पौधेः ज्चार, मक्का, बाजरा, रागी, जई, गेहूँ, धान, गन्ना इत्यादि.

हानि का स्वरूपः इस कीट के पिल्लू अण्डों से बाहर निकलकर भूमि के पास पर्णच्छद में छेदकर तने में प्रवेश कर उसे खाती है. जिस स्थान से यह पिल्लू प्रवेश करता है वहाँ इस पिल्लू का मल इकट्ठा हो जाता है. तने में प्रवेश करके पिथ खाती है जिसके फलस्वरूप पौधे पीले पड़ जाते है एवं पौधों की बढ़वार रूक जाती है. इसके मध्य की पत्तियां सूख जाती है और मृत केन्द्र बन जाता है और बाहर खींचने पर अलग होकर निकल जाती है.

प्रबंधन:

  • मई-जून के महीने मे गहरी जुताई करें.
  • प्रकाष प्रपंच (लाइट ट्रैप) खेतों में लगायें.
  • तना छेदक कीट से बचाव हेतु फेरोमोन ट्रैप 10/हेक्टेयर लगायें.
  • प्रकोप अधिक होने पर इमामेक्टिन बेन्जोएट 5 एस॰जी॰ का 2 ग्राम प्रति 5 लीटर पानी में या फ्लूबेन्डामाइड 480 एस०सी० का 1 मि०ली० प्रति 5 लीटर पानी में या प्रोफेनाफॉस 50 ई०सी० का 2 मि०ली० प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.

बाजरे का मिज

पहचानः इस कीट का वयस्क छोटी मक्खी होता है जो काफी सक्रिय रहता है. इस कीट का उदर भाग चमकीले नारंगी रंग का होता है एवं पंख पारदर्शी होते है.

हानि का स्वरूपः ये मिज फूलों पर अंडे देते है जिससे फूलों के पराग गिर जाते है. दानों से उजले प्यूपा के कोष निकले दिखाई देते हैं. इसके मैगोट (पिल्लू) दानों को खाते है जिससे दाने खखरी हो जाते है.

प्रबंधन:

  • लाइट ट्रैप लगाना चाहिए.
  • नीम आधारित कीटनाशी जैसे नीम बीज चूर्ण अर्क का 5 प्रतिशत का छिड़काव करना चाहिए.
  • रासायनिक कीटनाशी में इन्डोक्साकार्ब 5 एस॰सी॰ का 0.5 मि॰ली॰ प्रति लीटर पानी या प्रोफेनोफॉस 50 ई॰सी॰ का 2 मि॰ली॰ प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए.

लेखक:

डॉ. किरण कुमारी
कीट विज्ञान विभाग

बिहार कृषि विश्‍वविद्यालय, सबौर

English Summary: Nutri cereals insect pests identification and management
Published on: 06 August 2025, 12:29 PM IST

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