रबी सीजन में किसान सबसे अधिक भरोसा गेहूं की खेती पर करते हैं, क्योंकि यह उनकी आमदनी की मुख्य फसल मानी जाती है. मध्य प्रदेश देश के प्रमुख गेहूं उत्पादन केंद्रों में से एक है, जहां से गेहूं की आपूर्ति न केवल देशभर में, बल्कि विदेशों तक भी की जाती है. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, 10 से 30 नवंबर तक का समय गेहूं की बुवाई के लिए सबसे अनुकूल माना गया है. यदि किसान इस अवधि में उचित बीज चयन और संतुलित उर्वरक प्रबंधन करें, तो वे 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज प्राप्त कर सकते हैं.
खेत में है पानी? तो चुनें ये उन्नत किस्में
किसानों को दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है- पहली श्रेणी में वे किसान आते हैं जिनके पास पानी की कमी है और सिंचाई की सुविधा सीमित है. दूसरी श्रेणी के किसान वे हैं जिनके खेतों में सिंचाई की अच्छी व्यवस्था है. ऐसे किसानों के लिए HI 1544 और JW 322 जैसी उन्नत गेहूं किस्में बेहद लाभकारी साबित हो सकती हैं. इन किस्मों से न केवल अधिक उत्पादन मिलता है, बल्कि पौधे भी अधिक मजबूत रहते हैं और रोगों से बेहतर तरीके से लड़ पाते हैं.
115 से 125 दिनों में तैयार होने वाली नई किस्में
यदि किसान कम समय में फसल तैयार करना चाहते हैं तो उनके लिए JW 3465, JW 3382, HI 1650, HI 1655 और HI 1665 जैसी नई किस्में लाभदायक हो सकती हैं. इन किस्मों की बुवाई 40 किलो प्रति एकड़ की दर से की जाती है. ये फसलें लगभग 115 से 125 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं और अच्छी देखरेख में 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज देती हैं.
क्या हैं इन किस्मों की खासियतें?
इन उन्नत गेहूं किस्मों को खासतौर पर सिंचित क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है.
-
अधिक उपज क्षमता: भरपूर पानी होने पर ये किस्में अपेक्षाकृत अधिक उत्पादन देती हैं.
-
रोग प्रतिरोधक क्षमता: ये फसलें कई सामान्य बीमारियों से सुरक्षित रहती हैं.
-
तेजी से वृद्धि: पौधे तेजी से बढ़ते हैं और समय पर कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं.
-
बाजार में बेहतर मूल्य: इन किस्मों से उपजी फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है, जिससे किसान को मंडी में अच्छा दाम मिलता है.
उर्वरक का सही प्रयोग कैसे करें?
जब किसान इन किस्मों की बुवाई करें, तो उन्हें बीज की मात्रा 40 किलो प्रति एकड़ से अधिक नहीं लेनी चाहिए. इसके साथ ही DAP, यूरिया और पोटाश जैसे उर्वरकों का संतुलित उपयोग आवश्यक है. अधिक उर्वरक का प्रयोग फसल को नुकसान पहुंचा सकता है. इसके अलावा, समय-समय पर सिंचाई और निराई करना भी जरूरी है, जिससे फसल की वृद्धि और उत्पादन क्षमता बनी रहे.